कइयों की प्रतिष्ठा दांव पर
- Vijay Kumar Jha
धनबाद और गिरिडीह संसदीय क्षेत्र में यह चुनाव मात्र प्रधानमंत्री चयन का ही नहीं, बल्कि कई बड़े नेताओं की इज्जत बचाने का भी एक अवसर है। इस कड़ी में सबसे पहले बात करते हैं धनबाद सीट से कांग्रेसी उम्मीदवार कीर्ति झा आजाद की, जिनकी उम्मीदें तो बड़ी है, लेकिन उनकी राह आसान नहीं। भाजपा से निकाले जाने के बाद फिर से सांसदत्व-सुख पाने की चाह में कांग्रेसी टिकट का जुगाड़ लगाते हुए कीर्ति झा आजाद मिथिलांचल से कोयलांचल पहुंच तो गये हैं, लेकिन चुनाव के आखिरी दौर तक भी उनकी चुनावी राह कठिन ही दिखती रही। मुख्य वजह ददई दुबे का टिकट कटना बताया जा रहा है और इन्हें टिकट मिलने के बाद से ही शुरू अपनों के राजनीतिक विरोधात्मक संकटों से आजाद को आजादी नहीं मिलती दिख रही। हालांकि कीर्ति और उनके कुछ समर्थकों ने क्षेत्र में मेहनत तो काफी की और जनसम्पर्क के क्रम में हर भीतरघात से उबरने तथा जन-जन का साथ मिलने के दावा जरूर किया, परंतु उनके चुनाव-प्रबंधन से कार्यकर्ता काफी निराश दिखे। इसलिये श्री आजाद के लिये यहां सबसे बड़ा प्रतिष्ठात्मक संघर्ष माना जा रहा है। सियासी गलियारे में चर्चा यहां तक है कि भीतरघात का यह प्रकोप धनबाद संसदीय क्षेत्र में कहीं कांग्रेस की नैया न डुबो दे।
बूथ-खर्च पर भी आफत!
जानकारों की मानें तो कांग्रेस प्रत्याशी कीर्ति आजाद के झुंझलेपन वाले व्यवहार से बहुत से लोग खफा हैं। चुनावी बूथ-खर्च पर भी आफत है और कार्यकताओं को सम्मान की बात तो दूर। अब लोग खुद अपना पैसा लगाकर भला क्यूं उनका प्रचार करें? बता दें कि कीर्ति को बतौर प्रत्याशी पहली बार जो प्रदेशस्तरीय एक नेता यहां लेकर पहुंचे थे और बड़ी तैयारी के साथ उन्हें जिताने की योजना बनायी थी, उनके ‘बड़े कद’ को भी मान नहीं मिला। वैसे कीर्ति के झुंझलेपन का शिकार तो खुद यहां के मीडियाकर्मी भी उसी दिन हुए थे, जब उन्हें यहा शिबू सोरेन के आवास पर काले झंडे दिखाये गये और उनके समर्थन में विरोधियों को फरसा लेकर दौड़ाते हुए भगाया गया था। अब उन्हें कार्यकताओं के कोप का शिकार होना पड़ रहा है। कांग्रेस के ही कतिपय लोगों का मानना है कि यदि आलाकमान ने धनबाद से टिकट की दौड़ में खड़े पूर्व सांसद ददई दुबे, पूर्व मंत्री राजेन्द्र प्रसाद सिंह, डा. सीके ठाकुर, राजेश ठाकुर या किसी अन्य को प्रत्याशी बनाया होता तो यह स्थिति नहीं होती। जाहिर है वर्तमान परिस्थितियों में ‘कीर्ति’ के लिए ‘पताका’ फहारा पाना उतना आसान नहीं दिख रहा
सिंह के ‘किंग’ बनने का आखिरी मौका!
दूसरी तरफ, भाजपा उम्मीदवार पीएन सिंह इस ओवर कांफिडिन्स में हैं कि मोदी लहर है और इस लहर से होकर उनकी वैतरणी तो पार घाट लग ही जायेगी। ग्राउंड रिपोर्ट तो यह है कि चास में दशकों की बिजली समस्या, चीरा चास की बदहाल सड़कें, विस्थापितों की समस्या आदि कई ऐसे मुद्दें हैं, जिन्हें लेकर सीधे तौर पर लोगों में थोड़ी न थोड़ी नाराजगी जरूर है, परंतु मोदी-राज में खास तौर से पाकिस्तान को करारा जवाब और अन्य कार्यों को लेकर गांव-गांव तक लोगों में एक चर्चा का माहौल जरूर है। कुछ चुनावी पंडितों की मानें तो पीएन सिंह के लिये यह आखिरी चुनाव हो सकता है, क्योंकि इसके बाद उम्र की सीमा उन्हें भी आडवाणी की तरह मार्गदर्शक बनना पड़ सकता है। ऐसे में इसमें कोई दो राय नहीं कि सिंह का फिर से किंग बनना उनकी इज्जत से जुड़ा बड़ा सवाल है।
महाखेमाबंदी का किला भेदना आसान नहीं

गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र की बात करें तो महागंठबंधन के उम्मीदवार जगरनाथ महतो को चुनौती देने के लिए राजग की महाखेमाबंदी की ओर से राज्य सरकार के मंत्री चन्द्र प्रकाश चौधरी आजसू पार्टी के उम्मीदवार के रूप में मैदान में खड़े हैं। चन्द्र प्रकाश चौधरी को भाजपा के साथ-साथ लोजपा का समर्थन प्राप्त है, जबकि महागठबंधन की ओर से झामुमो प्रत्याशी जगरनाथ महतो को कांग्रेस, राजद आदि का साथ मिला हुआ है। पिछले लोकसभा चुनाव में जगरनाथ महतो दूसरे स्थान पर रहे थे। जबकि इस बार उन्हें हराने के लिये चौतरफा महाखेमाबंदी की गयी है। मोदी फैक्टर, पूर्व में नाराज हुए रवीन्द्र पांडेय का फिर से साथ होना और झामुमो से बगावत कर मांडू विधायक जय प्रकाश पटेल का खुलकर आजसू प्रत्याशी के पक्ष में आना चौधरी के लिये फायदेमंद साबित हो सकता है और यह किला भेद पाना यूपीए के लिये आसान नहीं दिख रहा। इस लड़ाई में चुनाव से ठीक एक हफ्ता पहले पूर्व माधवलाल सिंह गेमचेन्जर की भूमिका निभाने में लगे रहे। आजसू प्रत्याशी चंद्रप्रकाश चौधरी और झामुमो प्रत्याशी जगरनाथ महतो के बीच कांटे की टक्कर में माधवलाल के जनाधार को अहम माना जा रहा है। गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र में छह विधानसभा बेरमो, गोमिया, टुंडी, बाघमारा, गिरिडीह और डुमरी आते हैं। इसमें बेरमो, गिरिडीह और बाघमारा से भाजपा के विधायक हैं। गोमिया और डुमरी से झामुमो के विधायक हैं। टुंडी से आजसू पार्टी के विधायक हैं। ग्राउंड जीरो से जो रिपोर्ट सामने आ रही है, उनके मुताबिक बेरमो, टुंडी और डुमरी में झामुमो प्रत्याशी जगरनाथ महतो आजसू पार्टी को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। वहीं, गिरिडीह और बाघमारा विधानसभा क्षेत्र में आजसू प्रत्याशी चंद्रप्रकाश चौधरी की हवा चल रही है। गोमिया में भले ही झामुमो की बबीता देवी विधायक हैं। मगर यहां माधवलाल सिंह का अपना जनाधार है। पिछले दिनों आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो माधवलाल सिंह के घर पहुंचे थे। उन्होंने गिरिडीह संसदीय सीट के चुनाव में आजसू प्रत्याशी चंद्रप्रकाश चौधरी के लिए आशीर्वाद मांगा था। इसके दो दिन बाद ही जगरनाथ भी माधवलाल से आशीर्वाद लेने पहुंच गये। माना जा रहा है कि माधवलाल विधानसभा चुनाव में आजसू उम्मीदवार उतार दिये जाने से काफी नाराज हैं। ऐसे में एनडीए प्रत्याशी को उनका आशीर्वाद मिल पायेगा अथवा नहीं, यह कहना कठिन है। दूसरी ओर जगरनाथ महतो के साथ परेशानी यह है कि भले ही गोमिया में उनकी पार्टी का विधायक है, मगर झामुमो का संगठन गोमिया विधानसभा क्षेत्र में कमजोर है। इसलिए गोमिया इलाके में जगरनाथ महतो को कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। कुल मिलाकर गिरिडीह क्षेत्र में जगरनाथ के अलावा चन्द्रप्रकाश चौधरी, लम्बोदर महतो और माधवलाल की भी इज्जत जुड़ी है। आजसू के अस्तित्व की लड़ाई भी गिरिडीह में मानी जा रही है। अब इसका परिणाम क्या होगा, इसके लिये 23 मई तक का इंतजार करना ही होगा। वैसे गिरिडीह में ‘महागठबंधन’ के लिए ‘महाखेमाबंदी’ का किला भेज पाना आसान नहीं दिख रहा।
- Varnan Live (12/05/19)