जनमत- घंटी आधारित सहायक प्राध्यापक और उनका भविष्य

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Dr. Sanjay Kr. Jha
Sr. Sociologist, Jamshedpur (Jharkhand)

झारखंड राज्य में उच्च शिक्षित मेधावी युवा जो पीएचडी/नेट/जेआरएफ उत्तीर्ण कर विश्वविद्यालयों के विभिन्न अंगीभूत महाविद्यालयों में वर्ष 2017-18 से घंटी आधारित (संविदा) शिक्षक के पदों पर अपनी सेवा अर्पित कर रहे हैं, लाखों विद्यार्थियों का कैरियर संवार रहे हैं और उच्च शिक्षा में गुणात्मक सुधार ला रहे हैं, आज उन्हीं शिक्षकों का भविष्य अंधकार में प्रतीत हो रहा है। विदित हो कि राज्य में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक सुधार लाने एवं जीईआर दर में वृद्धि हेतु कृतसंकल्पित सरकार ने विश्वविद्यालयों में सीबीएससी प्रणाली को लागू करते हुए तात्कालिक की व्यवस्था हेतु (जब तक जेपीएससी से स्थायी असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति नहीं होती है) स्वीकृत रिक्त पदों पर घंटी आधारित (संविदा) शिक्षकों की नियुक्ति की है। शिक्षकों की पर्याप्त संख्या हेतु उच्च तकनीकी शिक्षा एवं कौशल विकास विभाग के निर्देश के आलोक में राज्य के सभी विश्वविद्यालयों में कुलपति महोदय की अध्यक्षता में गठित साक्षात्कार समिति के माध्यम से विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के मानदेय व अहर्ता के आधार पर लगभग 1000 घंटे आधारित (संविदा) शिक्षकों की नियुक्ति तात्कालिक रूप से की गई।


राज्य बनने के बाद से ही यहां के उच्च शिक्षित मेधावी युवा, जो पीएचडी/नेट/जेआरएफ उत्तीर्ण करके असिस्टेंट प्रोफेसर बनने का सपना संजोए बैठे हैं, वे कहीं न कहीं वंचना का शिकार हो रहे हैं, साथ ही कुंठित भी। ऐसा क्यों हो रहा है? अगर गहराई से चिंतन किया जाए तो राज्य में विगत दो दशकों में सिर्फ एक बार 2007-2008 में जेपीएससी के माध्यम से व्याख्याताओं की नियुक्ति होना और इन नियुक्तियां का भी सीबीआई व माननीय न्यायालय के अधीन आच्छादित रहना, द्वितीय नियमित रूप से रिक्तियों का प्रकाशन ना होना (दो दशकों में सिर्फ एक बार) और अंततोगत्वा अपने को घंटी आधारित (संविदा) शिक्षक के रूप में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में कृत संकल्पित सरकार का साथ देकर शिक्षा की गुणवत्ता बनाए रखने का अपना कर्तव्य अदा करना इसके कारण हो सकते हैं। फलस्वरूप ऐसे शिक्षक जो राज्य के लाखों विद्यार्थियों या नयी पीढ़ी में गुणात्मक शिक्षा का हस्तांतरण कर रहा हो, विधिवत रूप से स्वीकृत पदों पर सेवा दे रहा हो, फिर भी उनका भविष्य तात्कालिक हो तो निश्चय ही वे सापेक्ष वंचना का शिकार होंगे। विदित हो कि झारखंड लोक सेवा आयोग ने जुलाई 2018 में एक विज्ञापन के द्वारा सहायक प्राध्यापकों की भर्ती के लिए विज्ञापन प्रकाशित किया था, जो कुछ कारणों से स्थगित किया जा चुका है, परंतु जेपीएससी के विगत विज्ञापन से स्पष्ट होता है कि राज्य में कार्यरत घंटी आधारित शिक्षकों को किसी भी प्रकार का अधिकार नहीं दिया गया है, जबकि मध्य प्रदेश हिमाचल प्रदेश व अन्य राज्यों में अधिकार देते हुए स्थाई नियुक्ति में उन्हें प्राथमिकता देकर उनके भविष्य को संवारा गया है। उच्च शिक्षा में लागू सीबीसीएस प्रणाली के तहत शिक्षक-छात्र अनुपात भी सही होना चाहिए तथा अद्यतन स्वीकृत रिक्त पदों को भी भरा जाना चाहिए।

राज्य में सहायक शिक्षकों के पद पर होने वाली नियुक्तियों में जहां नए युवाओं को अवसर मिलने चाहिए, वहीं ढलती उम्र की दहलीज पर पहुंचने सहायक प्राध्यापकों की सेवा भी नियमित की जानी चाहिये। कोई भी लोक कल्याणकारी राज्य ‘यूज एंड थ्रो’ की नीति को नहीं अपनाती और तो और जब इन घंटी आधारित (संविदा) शिक्षक की नियुक्ति विधिवत रूप से हुई है तो उन्हें प्रोत्साहन, प्रलोभन एवं प्रेरणा के तौर पर मध्य प्रदेश के तर्ज पर नियमित नियुक्तियों में अधिकार देते हुए इनकी सेवा को स्थायी करना एक लोक कल्याणकारी राज्य का कर्तव्य बन जाता है। इससे इन शिक्षकों को एक नैसर्गिक न्याय और अपने सपनों को रंग भरने का अवसर मिल जाता और राज्य के विभिन्न अंगीभूत महाविद्यालयों में शिक्षक-छात्र अनुपात भी सही हो पाता।
(लेखक युवा समाज-शास्त्री हैं।)

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