असम की राजधानी गुवाहाटी से लगभग 7 किलोमीटर दूर स्थित तंत्र साधना और अघोरियों का गढ़ माने जाने वाला कामाख्या मंदिर मैया के भक्तों की अगाध आस्था का केन्द्र है। नीलाचंल पर्वत पर स्थित मां कामाख्या देवी का यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है।
धर्म-पुराणों के अनुसार माना जाता है कि इस जगह भगवान शिव का मां सती के प्रति मोह भंग करने के लिए विष्णु भगवान ने अपने चक्र से माता सती के 51 भाग किए थे जहां पर यह भाग गिरे वहां पर माता का एक शक्तिपीठ बन गया। इसी कारण यहां पर माता की योनि गिरी अौर इसके कारण इसे कामाख्या नाम दिया गया। इस मंदिर के ऐसे कई रोचक रहस्य हैं, जिन्हें जानकर आप आश्चर्यचकित हो जायेंगे।
कामाख्या मंदिर सभी शक्तिपीठों का महापीठ है। यहां पर दुर्गा या अम्बें मांकी कोई भी मूर्ति नहीं देखनें को मिलेगी। यहां पर एक कुंड सा बना हुआ है जो हमेशा फूलों से ढका रहता है और उससे हमेशा प्राकृतिक झरने जल निकलता रहता है। श्रीकृष्ण को 16000 पटरनिया यही से मिली थीं। कामाख्या मंदिर को समस्त निर्माण का केन्द्र माना जाता है, क्योंकि समस्त रचना की उत्पत्ति महिला योनि को जीवन का प्रवेश द्वार माना जाता है।
रजस्वला देवी पूरे भारत में रजस्वला यानी मासिक धर्म को अशुद्ध माना जाता है। लड़कियों को इस दौरान अक्सर अछूत समझा जाता है। लेकिन कामाख्या के मामले में ऐसा नहीं है। हर साल अम्बुबाची मेला के दौरान पास में स्थित नही ब्रह्मपुत्र का पानी तीन दिन के लिए लाल हो जाता है। पानी का यह लाल रंग कामाख्या देवी के मासिक धर्म के कारण होता है। फिर तीन दिन बाद श्रद्धालुओं की मंदिर में भीड़ उमड़ पड़ती है।
इस मंदिर में दिया जाने वाला प्रसाद भी दूसरें शक्तिपीठों से बिल्कुल ही अलग है। इस मंदिर में प्रसाद के रूप में लाल रंग का गीला कपड़ा दिया जाता है। कहा जाता है कि जब मां को तीन दिन का रजस्वला होता है, तो सफेद रंग का कपडा मंदिर के अंदर बिछा दिया जाता है। तीन दिन बाद जब मंदिर के दरवाजे खोले जाते हैं, तब वह वस्त्रा माता के रज से लाल रंग से भीगा होता है। इस कपड़े को अम्बुवाची वस्त्रा कहते है। इसे ही भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है।
यहां पर कोई भी मूर्ति नहीं स्थापित है। इस जगह पर एक समतल चट्टान के बीच बना विभाजन देवी की योनि का दर्शाता है। एक प्राकृतिक झरने के कारण यह जगह हमेशा गीला रहता है। इस झरने के जल को काफी प्रभावकारी और शक्तिशाली माना जाता है। माना जाता है कि इस जल के नियमित सेवन से आप हर बीमारी से निजात पा सकते है। इस जगह को तंत्र साधना के लिए सबसे महत्वपूर्ण जगह मानी जाती है। यहां पर साधु और अघोरियों का तांता लगा रहता है। यहां पर अधिक मात्रा में काला जादू भी किया जाता ह। अगर कोई व्यक्ति काला जादू से ग्रसित है तो वह यहां आकर इस समस्या से निजात पा सकता है।
कामाख्या मंदिर तीन हिस्सों में बना हुआ है। पहला हिस्सा सबसे बड़ा है इसमें हर व्यक्ति को नहीं जाने दिया जाता, वहीं दूसरे हिस्से में माता के दर्शन होते हैं, जहां एक पत्थर से हर वक्त पानी निकलता रहता है। माना जाता है कि महीनें के तीन दिन माता को रजस्वला होता है। इन तीन दिनों तक मंदिर के पट बंद रहते है। तीन दिन बाद दुबारा बड़े ही धूमधाम से मंदिर के पट खोले जाते है।
इस मंदिर के साथ लगे एक मंदिर में आपको मां का मूर्ति विराजित मिलेगी। जिसे कामादेव मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर परिषद में आपको कई देवी-देवताओं की आकृति देखने को मिल जाएगी। माना जाता है कि यहां पर जो भी भक्त अपनी मुराद लेकर आता है उसकी हर मुराद पूरी होती है। तांत्रिकों की देवी कामाख्या देवी की पूजा भगवान शिव के नववधू के रूप में की जाती है, जो कि मुक्ति को स्वीकार करती है और सभी इच्छाएं पूर्ण करती है। काली और त्रिपुर सुंदरी देवी के बाद कामाख्या माता तांत्रिकों की सबसे महत्वपूर्ण देवी है। यहां गुरू गोरखनाथ और मच्छन्दर नाथ , इस्माइल गुरू ने भी जप किया है। राम के गुरू वशिष्ठ की भी यह तपस्थली है।
– रामदेव पांडेय, बरियातू रोड, रांची.