महाभारत का शान्तिपर्व एक विशिष्ट आख्यान है, जिसमें भीष्म पितामह युधिष्ठिर को अपने जीवन के अनुभवों के आधार पर ज्ञान एवं उपदेश देते हैं। युधिष्ठिर ने जब पितामह पूछा- हे पितामह! संसार में ख्याति प्राप्त करने और अपने जीवन में लक्ष्य प्राप्ति के लिए प्रत्येक मनुष्य में मूल रूप से क्या गुण होने चाहिए, जिससे वह हर विपरीत स्थिति सामना कर सके और विजयी हो सके। तब भीष्म पितामह ने कालजयी श्लोक कहा- जो आज भी हर स्थिति में खरा है और स्वयं सिद्ध है-
न हि बुद्धयान्वितः प्राज्ञो नीतिशास्त्र विशारदः।
निमज्जत्यापदं प्राप्य महतीं दारुणमपि।।
अर्थात्- तीन प्रकार के व्यक्ति बुद्धिमान, विद्वान और नीतिशास्त्र में निपुण अपने जीवन में भयंकर विपत्ति आने पर भी फंसते नहीं हैं और उस विपरीत परिस्थिति से पार हो जाते हैं। उन्हें ही संसार में ख्याति और सम्मान प्राप्त होता है। बुद्धि, विद्वता और नीति के अभाव में व्यक्ति सामान्य ही रहता है, चाहे वह कितने ही उच्च कुल में उत्पन्न क्यों न हुआ हो। चाहे उसे कितना ही धन प्राप्त क्यों न हुआ हो। बुद्धि, विद्वता और नीते के अभाव में धन नष्ट हो जाते हैं। उसकी ख्याति नष्ट हो जाती है। उसके जीवन में निरन्तर विपरीत स्थितियां आती ही रहती हैं। ऐसे व्यक्तियों का भाग्य भी साथ नहीं देता है। हर स्थिति में बुद्धि, विद्वता और नीति को अपने जीव न का सबसे आवश्यक आभूषण बनाते हुए, अपनी जीवन यात्रा करें। ये तीनों बातें हर स्त्री, पुरुष पर लागू होती है।
युधिष्ठिर – बुद्धि द्वारा धर्म की रक्षा महाभारत में एक आख्यान आता है, जब पांडव वनवास में थे और धर्मराज यमराज ने युधिष्ठिर की बुद्धि को जांचने का निश्चय किया। इसी उद्देश्य से यमराज ने यक्ष का रूप धारण कर कर लिया और यक्षरूपी यमराज ने एक सरोवर के पास एक-एक करके सभी पांडवों की परीक्षा ली, जिसमें पार न करने की वजह से युधिष्ठिर को छोड़कर बाकी चारों पांडव सरोवर के पास मृत पड़े थे। जब युधिष्ठिर ने अपने सभी भाइयों को मरा हुआ पाया तब यक्ष से उनको जीवित करने को कहा। यक्ष ने ऐसा करने के लिए युधिष्ठिर के सामने एक शर्त रखी। शर्त यह थी कि यक्ष युधिष्ठिर से कुछ सवाल करेंगे और अगर युधिष्ठिर ने उनके सही जवाब दे दिये, तो वह यक्ष उनके सभी भाइयों को जीवित कर देगा। ऐसी विपरीत परिस्थिति में भी युधिष्ठिर ने अपनी बुद्धिमानी से यक्ष की परीक्षा पार कर ली और अपने सभी भाइयों को फिर से जीवित करा लिया। इसलिए कहते हैं कि बुद्धिमान मनुष्य अपनी सूझ-बूझ से हर परेशानी का हल निकाल सकता है। बुद्धिमान व्यक्ति विपरीत एवं चुनौतीपूर्ण स्थिति में भी अपना धैर्य नहीं खोता और अपने बुद्धि, विवेक से हर स्थिति, हर बाधा का निवारण निश्चित रूप से कर ही लेता है।
विदुर – विद्वता द्वारा कुरुवंश- के पतन की जानकारी कहा जाता है कि जब दुर्योधन का जन्म हुआ था, तब वह जन्म होते ही गीदड़ की तरह जोर-जोर से रोने लगा और शोर मचाने लगा। विदुर महाविद्वान थे, उन्होंने दुर्योधन को देखते ही धृतराष्ट्र को उसका त्याग कर देने की सलाह दी थी। वह जान-समझ गये थे कि यह बालक ही कौरव वंश के विनाश का कारण बनेगा। इसके अलावा विदुर ने जीवन भर अपने विद्वान होने के प्रमाण दिये हैं। वे हर समय धृतराष्ट्र को सही सलाह देते थे, लेकिन अपने पुत्रा के प्यार में धृतराष्ट्र विद्वान विदुर की बातों को समझ न सके और इसी वजह से उनके कुल का नाश हो गया। विद्वान व्यक्तियों का, ज्ञानी व्यक्तियों का सदैव सम्मान करना चाहिए, उनके द्वारा प्रदान की गयी सलाह को स्वीकार करना ही बुद्धिमानी है। विद्वानों की बात न मानने पर नुकसान ही होता है।
श्रीकृष्ण – नीति द्वारा पांडवों को महाभारत युद्ध में विजय श्रीकृष्ण एक सफल नीतिकार थे। वे सभी तरह की नीतियों के बारे में जानते थ। कौरवों ने जीवन भर पांडवों के लिए कोई न कोई परेशानियां खड़ी की, लेकिन श्रीकृष्ण ने अपनी सफल नीतियों से पांडवों की हर वक्त सहायता की। अगर पांडवों के पास श्रीकृष्ण के जैसे नीतिकार न होते तो शायद पांडव युद्ध में कभी विजयी नहीं हो पाते। उसी तरह नीतियों को जानने वाले और उनका पालन करने वाले व्यक्ति का सामने कैसी भी परेशानी आ जाये, वह उसका समाधान आसानी से कर लेता है। नीति अर्थात् नैतिक मूल्यों को ध्यान में रखते हुए बनायी गयी योजना। जीवन के किसी भी क्षेत्रा में सफलता का मार्ग नीति के बिना संभव नहीं है। यहां एक बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि दुर्योधन ने भी एक नीति अवश्य बनायी होगी, राज्य प्राप्त करने की। परन्तु उस नीति में नैतिक मूल्यों का स्थान नहीं था। इसलिए वह कभी भी नीति नहीं बन पायी और अनीति बनकर दुर्योधन का नाश ही कर दिया। अपनी उन्नति, विकास, आगे बढ़ने के लिए नीति का निर्माण करें, न कि अनीति का।
(साभार : निखिल मंत्र विज्ञान)
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