सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, शिक्षा और सत्ता, इन पांचों क्षेत्रों की बातें जब समाज में एक साथ चलती हैं, तब सामाजिक परिवर्तन होता है। ये पांच बातें, जब ठीक तरह से चलती हैं, समाज का उत्थान होता है।
समाज में मूल्य, नैतिकता आवश्यक है और यह काम संस्थाओं पर निर्भर है। सामाजिक नेतृत्व अहंकारी वृत्ति का नहीं होना चाहिए। सबकी विचारधारा एक समान होनी चाहिए। जातियों के आधार पर विघटित हुआ समाज एक होना चाहिए। सामाजिक नेतृत्व मन से बड़ा होना चाहिये। राष्ट्र-निर्माण में समृद्ध वर्ग की रचनात्मक भूमिका का होना जरूरी है। देश में परिवर्तन की आवश्यकता है। समाज में जागरण करने का दायित्व, कर्तव्य और समानता जैसी व्यवस्थायें हों तो उस समाज को कोई चुनौती नहीं दे सकता। समाज का मार्गदर्शन करने के लिए साधक होने चाहिये। अपनी क्षमता, ज्ञान, अध्ययन का सदुपयोग करना चाहिए। सकारात्मक दृष्टि से आए परिवर्तन से ही उत्थान होता है। दुर्बलों के सशक्तीकरण के लिये उसका उपयोग होना चाहिए। इस कार्य के लिए हर संपन्न वर्ग को आगे आकर कार्य करने की आवश्यकता है।

अंध पाश्चात्युनकरण घातक
भारत की संस्कृति गौरवमयी रही है और भारत वह देश है, जो दुनिया का विश्वगुरु था। आज हमारी संस्कृति से सभी दूर होते जा रहे और पश्चमी सभ्यता को अपनाते जा रहे हैं। आज हमें ही यह नहीं मालूम कि हमारा संस्कृति के आधार पर नववर्ष क्या है? हम वही कर रहे हैं, जो पश्चिमी सभ्यता के लोग कर रहे हैं। भारतीय संस्कृति के आधार पर जब हिन्दू नववर्ष आता, उस दिन कितने हिन्दू किसी को भारतीय नववर्ष की शुभकामना देते हैं? चलो, इन सब की बात हम बाद में करते हैं। इसके पहले के कारण को देखते हैं, जिस कारण भारत की संस्कृति को लोग भूलते जा रहे हैं।

मैकाले शिक्षा-नीति संस्कृति का विध्वंसक
अंग्रेज जब भारत आये, उस समय तक भी हमारे देश में वैदिक संस्कृति थी और अंग्रेज
लोग इस संस्कृति को तोड़ना चाहते थे। इस संस्कृति को तोड़ने के लिए अंग्रेजों ने मैकाले को लगाया। अंग्रेजी सरकार के अफसर मैकाले ने देखा कि भारतीय संस्कृति को तोड़ना इतना आसान नहीं और इस देश की संस्कृति को आसानी से तोड़ा नहीं जा सकता। लार्ड मैकाले ने इस संस्कृति को तोड़ने के लिए नयी शिक्षा नीति लागू की, जिससे भारत की संस्कृति को तोड़ा जा सके, क्योंकि उस समय गुरुकुल परंपरा थी। गुरुकुल परंपरा को हटाकर नयी शिक्षा नीति लायी गयी, धीरे- धीरे भारतीय संस्कृति का विनाश होता गया और आज हम भारतीय संस्कृति से बहुत दूर होते जा रहे है। आज हम नहीं संभले तो आने वाली नवीन पीढ़ी का वर्तमान कैसा होगा, इस पर एक बार आत्ममंथन की आवश्यकता है।
- अमितेश वर्मा, रांची।