मिथिलांचल की परंपरा को जीवंतता प्रदान कर रहा “झारखंड मिथिला मंच”

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भारत विविधताओं का देश है। हर क्षेत्र की अपनी-अपनी खास सांस्कृतिक विशेषतायें और विविधतायें हैं। इन्हीं में से मिथिला-भूमि की सांस्कृतिक गरिमा और परंपरा अपने-आप में महत्वपूर्ण है। इन्हीं परंपराओं को जीवंत बनाए रखने का कार्य कर रहा है झारखंड मिथिला मंच।

लंबे समय से यह संगठन मिथिलांचल के पारंपरिक पर्व-त्योहारों के साथ-साथ कई सांस्कृतिक व सामाजिक आयोजनों के जरिए मिथिला परंपरा को जीवित बनाए रखने के साथ-साथ आज की नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति से जुड़े रहने की सीख दे रहा है। इसी कड़ी में बीते दिनों हरमू की हाईकोर्ट कॉलोनी स्थित दुर्गा मंदिर में जानकी नवमी महोत्सव का आयोजन किया गया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में कुंवारी कन्याएं पूजी गयीं। कुंवारी कन्याओं का यह भव्य समागम अपने-आप में आकर्षक बना रहा। ऐसा लग रहा था मानो छोटी-छोटी कन्याओं के रूप में मां भगवती स्वयं अवतरित हो गयी हों। कुंवारी कन्याओं को पैर-हाथ धुलाकर अलता, टिकुली, काजल आदि से वैष्णो रूप में उन्हें सजाया गया। फिर चुनरी और पुष्पा माला पहनाई गई। पूजन से पहले आदिशक्ति मां दुर्गा को मिथिला परंपरा के अनुसार पातरि दिया गया, जिसमें प्रसाद के रूप में पायस, पंच मिष्ठान, पांच तरह के फल कमल के पत्ते पर भोग लगाए गए।

इस अवसर पर मंच के पदाधिकारियों ने मां जानकी के प्राकट्य पर भी प्रकाश डाला। मंच के सुजीत झा ने बताया कि राजा जनक की पुत्री और मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की सहधर्मिणी माता सीता का जन्म नवमी तिथि को था, इसलिए समस्त मिथिलावासी इस दिन को जानकी नवमी महोत्सव के रूप में धूमधाम से मनाते हैं। उक्त कार्यक्रम का आयोजन मिथिला मंच के जानकी प्रकोष्ठ की ओर से किया गया था। इसे सफल बनाने में महासचिव ममता झा, आशा झा, निशा झा, उषा पाठक, निर्मला झा, सुधा झा, अनुष्ठा झा, जीबो देवी, रूपा चौधरी, मीणा सिंह, मुन्नी यादव, अवंतिका झा, निधि झा, इंदु झा, अर्चना झा, प्रमिला मिश्रा, चंदन झा, रेणु झा, अनीता झा, रानी झा, बबीता झा आदि की महत्वपूर्ण भूमिका रही।

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