धनतेरस और सोने का संताप

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दीपावली से दो दिन पहले ही धनतेरस मनाने की प्रथा है. लोगों का मानना है की धनतेरस के दिन धन (धातु) खरीदने से उसमें 13 गुणा वृद्धि होती है. बचपन में तो माँ स्टील के कुछ बर्तन खरीद लेती थी इस दिन. मुझे भी ठीक लगता था. रस्म की रस्म भी हो गयी और जरूरत के बर्तन भी आ गए घर में.

बाद में पता चला कि धनतेरस पर सचमुच यदि 13 गुणा धन बढ़ाना हो तो फिर सोना खरीदना चाहिए. फिर ये लगा कि साल दर साल धन ऐसे ही यदि तेरहगुणा होता रहे तो फिर सारी दुनिया क्यों इतनी मेहनत-मशक्कत करती है. मैंने उसके बाद फिर दुबारा कभी इस रस्म को ज्यादा तवज्जो नहीं दी. पढाई -लिखाई करके नौकरी -चाकरी वाला जो घिसा-पिटा तरीका है उसी से धन जोड़ता रहा. चूँकि ये गैर-चमत्कारिक रास्ता है तो जाहिर है कि कई सालों बाद भी धन का घड़ा बूँद-बूँद ही भरेगा और अभी भी पेंदे से ज़रा ही ऊपर है.

लेकिन रस्म तो भाई रस्म है. आपके अकेले की प्रोग्रेसिव सोच से क्या होना है. शादी होने के बाद धनतेरस की प्रथा ने फिर से मुझे मूँह चिढ़ाया. श्रीमतीजी ने कहा, ‘अरे आज धनतेरस है ‘.

मैंने कहा , ‘ठीक है , कुछ स्टील के चम्मच खरीद लेते हैं ‘.

यह शांतिपूर्ण वार्ता कुछ देर और चली, फिर श्रीमतीजी को अहसास हुआ कि धन को तेरहगुणा करने के लिए पहले धन का होना जरूरी है ठीक वैसे ही जैसे दही जमाने के लिए जामन/जोरन चाहिए होता है.

कुछ सालों धनतेरस पर शान्ति रही इस नए ज्ञान के आलोक में. फिर हमारी सास आ गयीं. दिवाली के निकट आने पर उन्होंने फरमाया, ‘ इस बार मेरी दोनों नातिनों के लिए सोने की चेन खरीद लो धनतेरस पर’.मैं निरुत्तर हो गया कुछ पल को. अब इन्हें कैसे समझाऊँ ? थोड़ा रुक कर मैंने कहा कि अमेरिका में सोना खरीदना बेवकूफी है. केवल फैशन jewelery  मिलती है यहाँ वो भी 13-14 कैरेट से ऊपर नहीं. उनको बात में दम लगी, बोलीं तब चेन खरीदने में फायदा नहीं .ऐसा करो, पत्नी के लिए ही कुछ खरीद दो, रस्म भी हो जायेगी और पार्टी-वार्टी में पहनेगी भी. मैंने हाँथ खड़े कर दिए. शाम को फ्रेड-मायर (Fred Myer) ज्वैलर के यहाँ से श्रीमती के साथ धनतेरस की रस्म -अदायगी कर आया.

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