अलीगढ़ कांड – नये भारत का एक काला कलंक

0
356
Photo Courtesy : Google Images
– Saroj Kumar Jha

ढ़ाई साल की उम्र, जिस उम्र में बच्ची को मां का दूध पीने का हक होता है। खिलौने वाली कोई गुड़िया भी घर ले आओ, तो वो भी अपनी सी बन जाती है। जमाने के साथ-साथ सामाजिक सोच भी बदले और ख्वाहिशों के महल के वास्तुकार अब बेटियों को भी समझा जाने लगा। क्यों न हो, आखिर अनगिनत उदाहरण जो सामने हैं। संघ लोक सेवा आयोग से लेकर बड़ी-बड़ी कंपनियों में ऊंचे पदों पर अब लड़कियां भी सुशोभित हैं। कितना कुछ बदल गया। कभी-कभी ऐसा प्रतीत होता है कि इस आर्यावर्त देश में विदुषियों का दौर पुन: शुरू हो चुका है। उपरोक्त पंक्तियां वास्तविक है, परंतु गत सप्ताह अलीगढ़ में घटित घटना भी तो एक कड़वा सत्य है।

यकीन नहीं होता कि महज ढ़ाई साल की एक गुड़िया सी शक्ल वाली बच्ची की हत्या इतनी निर्ममता से की गयी। ऐसा लगता है, मानो वे हत्यारे इस धरती का हो ही नहीं, क्योंकि हृदय विदारक ऐसी घटना को कोई इंसान कैसे अंजाम दे सकता है? लेकिन, सच को तो स्वीकारना होगा।
सोशल मीडिया समेत तमाम मीडिया जगत में इस घटना पर उठ रहे स्वर से ऐसा लगता है कि दो-चार दिनों में ही अभियुक्तों को दोषी करार देते हुये फांसी दी जाएगी, लेकिन क्या वाकई ऐसा होगा? जाहिर है, नहीं होगा, क्योंकि पहले भी नहीं हुआ। उक्त घटना से मिलती-जुलती घटनाओं से और भी कई बार मानवता शर्मसार हुई है। जांच चल रही है, पीड़िता के परिवार का दर्द बहुत हद तक उसके सामाजिक स्तर व मजहबी एजेंडा पर निर्भर करते रहा है। ‘मोमबत्ती गैंग’ वालों के पैसे खत्म हो चुके हैं या शायद मोमबत्तियों की भी चाइनीज लाइटों में तब्दीली की कोशिश की जा रही है।
जिस उम्र में बच्चे ‘ट्विंकल-ट्विंकल लिट्ल स्टार…’ गाना तोतली जुबान में सीखते हैं, उसी आयु में एक लिट्ल स्टार ट्विंकल को दरिन्दों ने हैवानियत का शिकार बना डाला। ‘हाथ लगाओ डर जायेगी, बाहर निकालो मर जायेगी’। कभी सोचा नहीं था कि एक कविता की यह पंक्ति मछलियों के बजाय फूल सी बच्चियों के लिये लग जायेगी। नन्हीं परी की दिल दहलाने वाली हत्या राष्ट्रवाद को बेहद आसानी से दी गयी चुनौती है। 10-15 दिन जागरुकता की बाढ़ आएगी, लेकिन बह तो गयी उस मासूम परी के मां-बाप की ख्वाहिशें, जिंदगी की वो तमाम खुशियां, जिसकी बुनियाद वो ट्विंकल थी। यह एक तमाचा है उन ‘महापुरुषों’ की जुबान पर, जो हैवानीयत को स्त्रियों के पोशाक व उनकी भाव-भंगिमा से जोड़ते हैं। भारतभूमि को मातृभूमि कहते हैं, यह एक कोरी कल्पना सी लगती है, जब इस तरह की शर्मनाक घटनाओं की जानकारी मिलती है।
वर्ल्ड कप शुरू है। खेल भावना भी अक्सर राष्ट्रीय सम्मान-अपमान में तब्दील होती रही है। स्टेडियम में प्रिय खिलाडियों के शॉट्स उन आवाजों को दबाते रहे हैं, जो आवाजें न्याय के लिए लगायी जाती रहीं हैं। यह एक निजी राय नहीं, बल्कि मौजूदा हालात के प्रमाण हैं। किधर बढ़ रहा है समाज और क्या-क्या बाकी है, इन सारे बिंदुओं पर प्रकाश सिर्फ चुनाव के समय ही डाले जाते हैं। खौफनाक अत्याचार की शिकार ट्विंकल हुई, हमें क्या? हमारे साथ कभी ऐसा होगा ही नहीं, यही सोच हर वर्ष एक ‘लिट्ल स्टार’ जबरन इंसानीयत और सुनहरे भविष्य के फलक से ‘तोड़’ दी जाती है। न जाने कब होगा इस अमानवीय हैवानीयत का अंत? होगा भी क्यों, क्योंकि हमें अपने पसन्द के नेता चाहिए एक सेवक नहीं।
अलीगढ़ की शर्मनाक घटना नि:सन्देह नये भारत का कलंक है। अपराध का यह इतना ज्यादा घृणित रूप है कि ऐसे अपराध के लिए सजा भी घृणित हो। आवश्यकता इस बात है कि इन घटनाओं पर राजनीति करने के बजाय कठोरतम सजा के लिए एकजुट होकर सरकारी तंत्र पर दबाव बनाया जाए। आधुनिक भारत के सभ्य नागरिक हम तभी कहलायेंगे, जब दोषियों को कठोरतम सजा मिले। सामाजकि जागरुकता, अध्यात्मोन्मुखी विचारों पर तो अमल होना ही चाहिये, परंतु कठोरतम सजा ही ऐसे दरिंदों के लिये एकमात्र सजा है, ताकि आगे ऐसा घृणित विचार लाने में भी वैसे हैवानों की रूह कांप जाय। अलीगढ़ कांड केवल उत्तर प्रदेश के लिए नहीं, भारत के लिये ही नहीं, बल्कि समूची मानवता के लिये काला कलंक है और यह बदनुमा धब्बा तभी धुलेगा, जब भविष्य में हर ट्विंकल स्टार बन सुरक्षित माहौल में कामयाबी के आसमान पर चमक सकेगी।

  • For Varnan Live.
Previous articleबोकारो की बेटी तान्या बनी ‘Miss Queen of India’
Next articleमैथिली कविता- इतिहास भूगोल हेराय रहल
मिथिला वर्णन (Mithila Varnan) : स्वच्छ पत्रकारिता, स्वस्थ पत्रकारिता'! DAVP मान्यता-प्राप्त झारखंड-बिहार का अतिलोकप्रिय हिन्दी साप्ताहिक अब न्यूज-पोर्टल के अवतार में भी नियमित अपडेट रहने के लिये जुड़े रहें हमारे साथ- facebook.com/mithilavarnan twitter.com/mithila_varnan ---------------------------------------------------- 'स्वच्छ पत्रकारिता, स्वस्थ पत्रकारिता', यही है हमारा लक्ष्य। इसी उद्देश्य को लेकर वर्ष 1985 में मिथिलांचल के गर्भ-गृह जगतजननी माँ जानकी की जन्मभूमि सीतामढ़ी की कोख से निकला था आपका यह लोकप्रिय हिन्दी साप्ताहिक 'मिथिला वर्णन'। उन दिनों अखण्ड बिहार में इस अख़बार ने साप्ताहिक के रूप में अपनी एक अलग पहचान बनायी। कालान्तर में बिहार का विभाजन हुआ। रत्नगर्भा धरती झारखण्ड को अलग पहचान मिली। पर 'मिथिला वर्णन' न सिर्फ मिथिला और बिहार का, बल्कि झारखण्ड का भी प्रतिनिधित्व करता रहा। समय बदला, परिस्थितियां बदलीं। अन्तर सिर्फ यह हुआ कि हमारा मुख्यालय बदल गया। लेकिन एशिया महादेश में सबसे बड़े इस्पात कारखाने को अपनी गोद में समेटे झारखण्ड की धरती बोकारो इस्पात नगर से प्रकाशित यह साप्ताहिक शहर और गाँव के लोगों की आवाज बनकर आज भी 'स्वच्छ और स्वस्थ पत्रकारिता' के क्षेत्र में निरन्तर गतिशील है। संचार क्रांति के इस युग में आज यह अख़बार 'फेसबुक', 'ट्वीटर' और उसके बाद 'वेबसाइट' पर भी उपलब्ध है। हमें उम्मीद है कि अपने सुधी पाठकों और शुभेच्छुओं के सहयोग से यह अखबार आगे और भी प्रगतिशील होता रहेगा। एकबार हम अपने सहयोगियों के प्रति पुनः आभार प्रकट करते हैं, जिन्होंने हमें इस मुकाम तक पहुँचाने में अपना विशेष योगदान दिया है।

Leave a Reply