दीपक कुमार झा
बोकारो : ‘मैं पेड़ हूं। वही पेड़, जिसकी हवायें प्राणि-जगत की प्राणवायु है। वही पेड़, जो आजीवन तो जीव-जंतुओं का सेवक हूं ही, मरने के बाद भी मेरे शरीर का हरेक हिस्सा कुछ देकर ही जाता है। लेकिन जब जीते-जी मुझ पर कुल्हाड़ियां चलती हैं तो मेरे हर दरख्तों से लेकर पत्ते तक रो पड़ते हैं। बहुत पीड़ा होती है मुझे, जब मुझे प्रचार का जरिया बनाकर बड़े-बड़े बोर्ड मेरी छाती में कील ठोंककर टांग दिये जाते हैं। अरे, कोई तो मेरी पुकार सुनो! बचाओ मुझे!’
‘मैं, नदी हूं। मेरी जलधारा कभी कल-कल करती हुई लोगों का प्यास बुझाती थी, लेकिन आज मैं खुद न्याय की प्यासी हूं। मुझे मैली कर दी गयी। मेरी गंदगी, मेरा मैल कोई साफ नहीं कर रहा। मैं पवित्र से आज अछूत सी होकर रह गयी। बहुत तकलीफ होती है, जब मेरे शरीर का हिस्सा (किनारा) काटकर मुझ पर बड़ी-बड़ी इमारतों का वजन डाल दिया जाता है। मेरी भी कोई मदद करो!’
‘मैं, पहाड़ हूं। वही पहाड़, जिसकी वादियों में कभी कुदरती खूबसूरती बसती थी, जिसकी आबो-हवा अपने-आप में निराली थी। लेकिन आज मेरी वादियां संकट में हैं। मेरी खूबसूरती को नजर लग गयी है उन चंद माफियाओं की, जिन्होंने मेरी सौदेबाजी कर मुझे टुकड़ों में उड़ा डाला तो कभी मेरा शीश तक काटकर समतल बना डाला। काश कोई फरिस्ता मेरी भी गुहार सुन ले!’
चौंकिये मत! यह पुकार, यह गुहार, यह विनती, ये मिन्नतें हैं हमारे पर्यावरण की। वही पर्यावरण, जिसकी रक्षा की दुहाई देकर हम एक दिन का उत्सव भर मनाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ लेते हैं। पिछले हफ्ते भी हमने ऐसा ही किया। दो चार पेड़ लगा दिये, उनमें पानी देकर अच्छी-अच्छी तस्वीरें खिंचवाा ली। अखबारों की सुर्खियां बटोर ली या दोस्तों के बीच शेयर कर वाहवाही लूट ली। बस यह सिलसिला यहीं खत्म हो जाता है। हमारे नेता, अधिकारी तो सबसे ज्यादा ऐसी औपचारिकतायें हर साल पूरी करते हैं। पर्यावरण बचाने को लेकर लंबे-चौड़े भाषण देते हैं, जो बस अगले दिन के अखबारों की खबरें बनकर ही सिमट जाती हैं।

दुर्भाग्यपूर्ण बात तो यह है कि पांच जून के इस एकदिनी पर्यावरण दिवस पर ही क्यों, सालो-भर क्यों नहीं उनका ध्यान खुद उन बातों पर नहीं होता, जो वे अपने भाषणों में लपेट देते हैं। केवल नेता और अधिकारी ही नहीं, आम जनता भी पर्यावरण को विपदा में घेरने के लिये कम जिम्मेवार नहीं है। जबतक सही मायने में सभी पर्यावरण-सुरक्षा के प्रति अपने दायित्वों का निर्वहन नहीं करेंगे, हमारा पर्यावरण, हमारी कुदरती धरोहर हमसे ऐसे ही मदद की गुहार लगाती रहेगी। अगर ज्यादा विलंब हुआ तो यह संपूर्ण जीव-जगत के लिये खतरा भी बन सकता है। पर्यावरण आज किस प्रकार संकट में खड़ा है, क्यों खड़ा है और किस तरह उसे बचाने को लेकर विश्वस्तरीय प्रयास हो रहे हैं, यह बात किसी से छुपी नहीं है। ऐसे में सामूहिक जिम्मेवारी आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है।
पेड़ों के सीने वेधकर कर रहे प्रचार
बोकारो में पेड़, नदी-नाले और पहाड़ की जो उक्त गुहार यहां की कुदरत लंबे समय से लगा रही है, लेकिन उनकी पुकार कोई सुनने वाला नहीं। यहां पेड़ों को असमय छीलकर सुखा देने और फिर मार डालने की घटनायें तो अब आम हो गयी हैं। अत्याधुनिक सुविधाओं की स्थापना और विकास की आड़ में धड़ल्ले से पेड़ों का सफाया होता रहा है। यही नहीं, शहर की सभी मुख्य सड़कों के किनारे लगे पेड़ों को मुफ्त का विज्ञापन माध्यम बना दिया गया है। उस पर बड़ी-बड़ी कीलें ठोककर छोटे फ्लैक्स से लेकर लंबे-चौड़े बोर्ड तक टंगे हैं। इस पर न तो प्रशासन ध्यान दे रहा, न ही वन विभाग। शर्मनाक बात तो यह है कि पेड़ों पर टंगे अधिकांश फ्लैक्स व बोर्ड शैक्षणिक संस्थानों के ही होते हैं, परंतु दुर्भाग्य है कि उन्हें खुद कुदरत की रक्षा करने की शिक्षा हासिल नहीं है, या यूं कहिये कि जानते हुए भी ये कुदरत के साथ आपराधिक व्यवहार कर रहे हैं। यह आपराधिक व्यवहार यहां की छोटी-छोटी पहाड़ियों के साथ भी हो रहा है।
भू-माफियाओं का बोलबाला
भूमि माफियाओं का ऐसा बोलबाला है कि वे वनभूमि और पहाड़ी इलाके की जमीन भी हथिया ले रहे हैं। उन पर बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी कर बस अपनी जेबें गर्म कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि प्रशासन इनके खिलाफ कार्रवाई नहीं करता। कार्रवाई तो होती है, लेकिन महज चंद दिनों की है। दो-चार स्थानों पर बुलडोजर चलते हैं। अवैध कब्जे ढ़ाहे जाते हैं। एक-दो दिन अखबारों में खबरें आती हैं। फिर मामला शांत और उनका काम फिर चालू। दरअसल, जमीन के इस गोरखधंधे में आम धंधेबाजों के साथ-साथ कई बड़े रसूखदार लोग भी शामिल हैं। यही कारण है कि कार्रवाई हर बार ठंडे बस्ते में चली जाती है। स्थानीय बांधगोड़ा, सतनपुर पहाड़ आदि इलाकों में पहाड़ी जमीन तथा वनभूमि पर कब्जे की खबरें पहले भी आ चुकी हैं।
कराह रही गरगा, जांच में मिली सर्वाधिक प्रदूषित
नदियों की बात करें तो यहां की लाइफ-लाइन माने जाने वाली गरगा नदी अतिक्रमण और प्रदूषण के कारण कराह रही है। पिछले दिनों ‘दामोदर बचाओ अभियान’ के तहत युगांतर भारती, रांची से आयी जल प्रदूषण की जांच टीम तेलमोचो पुल के निकट दामोदर नदी पहुंची। इस टीम के साथ दामोदर बचाओ अभियान के सदस्य भी शामिल थे। यहां पर जांच टीम ने दामोदर एवं गरगा नदी से पानी का नमूना लेकर उसकी जांच की। जांच के क्रम में गरगा का पानी सबसे प्रदूषित पाया गया। दामोदर नदी के पानी की स्वच्छता एवं टीडीएस सामान्य पायी गयी, लेकिन गरगा नदी का पानी सबसे प्रदूषित पाया गया। गरगा को अतिक्रमण व प्रदूषण से मुक्त बनाने को लेकर प्रयासरत संस्था स्वास्थ्य एवं पर्यावरण संरक्षण संस्थान के महासचिव शशिभूषण ओझा मुकुल के अनुसार चास नगर निगम और बोकारो इस्पात संयंत्र की आवासीय कॉलोनियों के सीवरेज का गन्दा जल अनवरत इस नदी में गिरने से इसका जल प्रदूषित हुआ है, साथ ही कई जगह इसके किनारों को भी अतिक्रमित कर लिया गया है। स्थिति इतनी विकट है कि प्रदूषण की वजह से यह नदी मरने के कगार पर है। अगर इसे नहीं बचाया गया तो आने वाली पीढ़ी हमें माफ नहीं करेगी। उन्होंने कहा कि गरगा नदी का पौराणिक नाम गर्गगंगा है, जो महर्षि गर्ग के तपोबल से उत्पन्न हुई थी।
नाला बना कभी खेतों को सींचने वाली सिंगारी जोरिया
गरगा की सहायक सिंगारी जोरिया भी भू-माफियाओं के अतिक्रमण का शिकार बनी है। अतिक्रमित और प्रदूषित होकर अपना अस्तित्व खोती जा रही है। चास के लोग एक समय सिंगारी जोरिया के माध्यम से अपने खेतों में पानी पहुंचाया करते थे, लेकिन अब यह सह-नदी नाले में तब्दील हो गई और वो दिन दूर नहीं, जब सिंगारी जोरिया का सिर्फ नाम ही रह जायेगा। के एम मेमोरियल हॉस्पीटल के निकट, महावीर चौक तथा चीरा चास में सिंगारी जोरिया को न सिर्फ अतिक्रमित किया गया है, बल्कि चीरा चास में तो कुछ बिल्डरों ने सिंगारी जोरिया की धारा को ही मोड़कर घर बनाकर बेचने का काम किया है। इसका पानी प्रदूषण से काला और दुर्गन्धयुक्त हो गया है, जिसकी बदबू चीराचास में हर वक्त महसूस की जा सकती है। चीरा चास निवासी सुनील महतो ने बताया कि कभी उनका सिंगारी जोरिया बिल्कुल पवित्र और साफ थी, परंतु जब से बिल्डर लोग आये हंै, तब से इसे नर्क बनाकर छोड़ दिया गया है। पहले यह जोरिया 30 से 40 फीट का हुआ करती थी, परंतु अब इस जोरिया को नाले में तब्दील कर दिया गया है। चीरा चास में पेंट की दुकान चलाने वाले बबलू ने बताया कि यह सिंगारी जोरिया काफी छोटा हो गया है। वे लोग पहले इसमें नहाते थे और खेत में पानी भी पटाते थे, परंतु अभी तो पानी इतना गन्दा हो गया है और इतना महकता है कि उसके रास्ते से गुजरना भी मुश्किल हो गया है। लोगों ने प्रशासन की इस दिशा में अनदेखी पर रोष व्यक्त किया है।
जांच के बाद होगी कार्रवाई : डीसी

नदी, सरकारी भूमि आदि के अतिक्रमण को लेकर बोकारो उपायुक्त कृपानंद झा ने कहा कि यह मामले उनके संज्ञान में नहीं था। वह अभी नया आया हैं। आने के बाद चुनाव कार्यों में व्यस्त थे। उन्होंने कहा कि कोई भी सरकारी जमीन का अतिक्रमण नहीं कर सकता है। नदी की जमीन गैर मजरुआ आम कैटेगरी में आयेगी। अगर कहीं अतिक्रमण हुआ है तो सीओ के द्वारा मापी कराकर जांच करायी जायेगी। जांच में अगर इंक्रोचमेंट पाया गया तो विधि-सम्मत कार्रवाई होगी।
एक और दामोदर बचाओ आंदोलन की जरूरत

सरयू राय के कुशल नेतृत्व में दामोदर बचाओ आंदोलन ने जिस क्रांतिकारी तरीके से देवनद दामोदर को प्रदूषण से मुक्ति दिलाने में अहम भूमिका निभायी थी, उसे एक बार फिर से गति देने, या यूं कहें कि दुबारा एक और नये आंदोलन की जरूरत है। दामोदर बचाओ आंदोलन के प्रवीण कुमार सिंह का कहना है कि एक समय था, जब दामोदर विश्व की 10 प्रदूषित नदियों में से एक थी। सरयू राय के नेतृत्व में काफी दबाव के बाद डीवीसी व अन्य संयंत्रों ने सुधार किया। रिसाइक्लिंग प्लांट बनवाये, छाई गिराने पर रोक लगायी। सीसीएल ने भी काम किया। बोकारो स्टील ने भी रिसाइक्लिंग प्लांट बनाया। लेकिन इन दिनों एक बार फिर से दामोदर को प्रदूषित किया जाने लगा है। बोकारो स्टील प्लांट का यह दावा कि एक बूंद पानी भी अब दामोदर में नहीं जायेगा, गलत साबित हो रहा है। यकीनन, स्थिति में पहले से बहुत सुधार है। दो रंग वाली स्थिति नहीं नजर आ रही। रिसाइक्लिंग प्लांट को लेकर सुप्रीम कोर्ट का आदेश था 2017 का। बार-बार चेतावनी के बाद भी सीसीएल, बीसीसीएल के प्लांट व अन्य गैर-सरकारी प्लांट दूषित पानी बहा रहे हैं। सीवरेज का पानी जा रहा है। निश्चय ही इसमें सुधार की जररत है। 95 प्रतिशत औद्योगिक प्रदूषण से मुक्ति मिल गयी थी, लेकिन फिर स्थिति खराब हो रही है। फिर प्रदूषण से वही स्थिति बनने जा रही है। झारखण्ड की जीवन रेखा दामोदर सरकारी कम्पनियों में बोकारो स्टील प्लांट, डीवीसी की चंद्रपुरा थर्मल, बोकारो थर्मल पावर स्टेशन एवं सीसीएल की इकाइयों द्वारा फैलाये जा रहे प्रदूषणरूपी राक्षस से मुक्ति की गुहार लगा रहा है। दामोदर नदी को विष्णु का अवतार माना जाता है। आज विष्णु का अवतार दामोदर विकास के दौर में प्रदूषण के मकड़जाल में फंसकर कराह रहा है। दामोदर को प्रदूषण-मुक्त करने के लिए एक मजबूत जन-आंदोलन शुरू क रने की आवश्यकता है। उन्होंने आमलोगों से दामोदर बचाओ आंदोलन के साथ मिलकर देवनद दामोदर को बचाने के लिए जनांदोलन में साथ देने की अपील की है।