
रांची : झारखंड में गर्मी के दस्तक देते ही हर साल यही कहा जाता है कि जलस्तर पाताल में समाता जा रहा है। लेकिन एक ऐसा पाताल भी है, जहां से पानी निकाला जा सकता है। झारखंड के कई कोलियरी क्षेत्रों में वर्षों से बंद पड़ी खदानों में विशाल जल भंडार है। कोयले की दुनिया को बहुत ही करीब से देखने, समझने और कोल इंडिया में उच्च पद पर विराजमान रहे गोपाल सिंह ने कुछ दिन पहले कहा था कि झारखंड की दर्जनों कोलियरियों की खदानों में विशाल जल भंडार है, जिससे पूरे झारखंड की खेतों सिंचाई की जा सकती है और फिल्ट्रेशन प्लांट का निर्माण करवाकर झारखंड सरकार सालों भर खदानों से पेयजलापूर्ति की योजना बना सकती है। है ना इस बात में दम?
जहां तक मुझे याद है, इसी मामले में (संभवत: 2006) में विधानसभा के एक सत्र में पेयजल की समस्या पर चल रही चर्चा के दौरान राज्य सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने भी इस पर सहमति जतायी थी और कहा था कि हमारी सरकार इस पर गंभीरता से पहल करेगी, परन्तु इस दिशा में सरकार की ओर से कोई सार्थक पहल नहीं की गयी। या यूं कहें कि यह मामला अफसरशाही की उदासीनता की भेंट चढ़ गया। सरकार की बेरुखी भी इसके लिए जिम्मेवार है।
दरअसल, यह मामला मुख्यमंत्री जन संवाद केन्द्र के पोर्टल पर दर्ज है। शिकायत संख्या 2018-26763 के जरिए पेयजल एवं स्वच्छता प्रमंडल संख्या- 1, धनबाद के कार्यपालक अभियंता द्वारा 26-10-2018 के हस्ताक्षर से छोड़ा गया है, जिसके प्रतिवेदन में कहा गया है कि ‘जन संवाद के सीधी बात कार्यक्रम में समीक्षा हेतु रखी गई शिकायतों से संबंधित अद्यतन कृत कार्रवाई के लिए कोलियरी क्षेत्रों में ‘पीट वाटर’ से जलापूर्ति के लिए कंसल्टेंट नियुक्त कर डी.पी.आर. कार्यादेश निर्गत किया गया है, इसकी समय अवधि चार माह है।’ अब देखिए! जून, 2019 में उक्त प्रतिवेदन के आठ माह पूरे हो रहे हैं। पर, हर साल की तरह इस बार भी पूरा झारखंड पेयजल की त्रासदी झेल रहा है।
राज्य के कई जिलों में पेयजल के लिए हाहाकार है। उदाहरण के लिए बोकारो जिले के गोमिया प्रखंड अन्तर्गत पलिहारी गुरुडीह एवं गोमिया पंचायत में पानी की किल्लत को लेकर गोमिया प्रखंड भाजपा के पूर्व अध्यक्ष राजकुमार प्रसाद एवं भाजपा ओबीसी मोर्चा के पूर्व महामंत्री दुलाल प्रसाद ने झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास को एक पत्र प्रेषित किया है, जिसमें कहा गया है कि इन पंचायतों में पीने के पानी की समस्या विकराल रूप धारण किये हुए है और लोग पानी के लिए दर दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं। यही समस्या राज्य के लगभग हर जिले में है। लेकिन कोल इंडिया के पूर्व उच्चाधिकारी गोपाल सिंह ने जो सुझाव दिये और उस आलोक में पेयजल स्वच्छता विभाग द्वारा सार्थक कार्रवाई की गयी होती तो कम से कम कोयला खदान वाले इलाकों में पानी की विकराल समस्या से निजात पाने की दिशा में कुछ कदम आगे जरूर बढ़ा होता। अगर सरकार के पास इच्छाशक्ति होती तो अब तक यह काम पाइपलाइन में होता, क्योंकि झारखंड में ‘डबल इंजन’ की सरकार है। इसलिए केन्द्र व राज्य सरकारें मिलकर जनहित के इस कार्य को बखूबी अंजाम दे सकती है।
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