- Deepak Kumar Jha
बोकारो : ‘सबका साथ, सबका विकास’। यकीनन, सरकार इस नारे को धीरे-धीरे अमलीजामा पहनाते हुए कार्य करने में लगी है। मात्र पांच साल में ही दशकों से लगी समस्याओं की जंग हटाना संभव भी नहीं। लेकिन, आज भी देश में ऐसी कई जगहें हैं, जहां मूलभूत सुविधाओं से लोग वंचित हैं। विकास के मुद्दे उनके लिये कोई मायने नहीं रखते और उन जगहों पर विकास जहां वहां के लोगों के लिये दशकों से संजोयी गयी उम्मीद है, वहीं सरकार के लिये एक बड़ी चुनौती। कुछ ऐसी ही समस्यारूपी चुनौतियां पेश कर रहा है बोकारो जिले के अतिनक्सल प्रभावित गोमिया प्रखंड अंतर्गत बड़की चिदरी पंचायत का ढोड़ी गांव, जहां के लोगों के जेहन में एक ही सवाल है कि आखिरकार विकास उनके लिये है तो है कहां? एक तरफ नक्सलियों का खौफ तो दूसरी तरफ समस्याओं का अम्बार, दोहरी परेशानियां झेल रहे इस गांव के लोग विकास से कोसों दूर हैं। स्थिति ऐसी है कि इस गांव में आने-जाने के लिये कोई पक्की सड़क नहीं है। पीने के पानी की किल्लत है। कहने को तो गांव में दो-दो कुएं हैं, लेकिन वे भी सूखकर इस प्रचंड गरमी में ग्रामीणों को महज चिढ़ा ही रहे हैं।

सड़क कहने के लिये यहां है तो बस गड्ढानुमा पगडंडियां, बरसात के दिनों में पैदल चलने लायक भी नहीं रह पातीं। उन दिनों में लगभग ढ़ाई-तीन सौ घरों वाला यह गांव महज टापू बना रह जाता है। खुदा न खास्ते अगर उन दिनों कोई बीमार पड़ जाय तो उसे कंधों पर डोलियों में टांगकर लाद ले जाने के अलावा कोई चारा नहीं बचता। विकास की बाट जोह रहे इस आदिवासी बहुल्य गांव में इंदिरा आवास कुछ ही लोगों को मिला और सरकारी सुविधाएं भी गिने-चुने लोगों को ही मिल सकीं। सरकार आदिवासीहित की बातें तो कर रही हैं, नीतियां पर नीतियां बन रही हैं, लेकिन इस गांव के आदिवासियों को लेकर शायद आज तक प्रशासन और सरकारी नुमाइंदों का ध्यान इस ओर गया ही नहीं। या यूं कहें कि दिया ही नहीं गया।
सरकारी अनदेखी के जीते-जागते उदाहरण इस गांव में पानी, सड़क के साथ-साथ शिक्षा और स्वास्थ्य का भी घोर संकट है। गांव के बच्चे स्कूल में पांचवीं तक की पढ़ाई करते हैं। उसके बाद उन्हें मीलों चलकर तिसकोपी, चतरोचट्टी जाना पड़ता है। बरसात के दिनों में स्कूल तो क्या, हाट बाजार से भी लोग कट जाते हैं और उन दिनों लोगों की जिंदगी कैसे कटती होगी, इसका अंदाजा आप सहज ही लगा सकते हैं।
पेश है यहां के कुछ ग्रामीणों की व्यथा-
‘नेताजी बस वोट मांगने आते’
देवकी देवी नामक एक ग्रामीण महिला ने कहा कि हमारे लिए यहां बस दिक्कत ही दिक्कत है। नेता जी लोग हर बार बस वोट मांगने आते हैं, लेकिन कोई कुछ नहीं करता। उनके गांव की तरफ कोई फिर न आता है और न ही फिर कोई ध्यान देता है। देवकी ने कहा कि मुख्य सड़क से उसके गांव का कोई सीधा जुड़ाव है ही नहीं। अगर गांव में कोई बीमार पड़ जाता है तो उसे खाट पर लादकर ले जाना पड़ता है। एक सवाल के जवाब में देवकी ने कहा कि उसके साथ-साथ कई लोगों का राशन कार्ड तो बना ही नहीं, तो आयुष्मान कार्ड की बात तो काफी दूर है। गांव में पीने के पानी की भी कोई व्यवस्था नहीं है। न चापाकल, न कुआं, न तालाब। ऐसे में नहाने-धोने से लेकर खाना बनाने और घर का बाकी काम करने में हर रोज बेहद मशक्कत करनी पड़ती है।

‘पलायन के सिवा कोई रोजगार नहीं’
खून चूसती गर्मी के बीच कैसे एक-दो किलोमीटर दूर किसी कुएं से पानी लाना पड़ता है, इसकी जानकारी एक ग्रामीण हीरालाल ने दी। कहा कि गांव में पीने के पानी का कोई साधन ही नहीं है। एक बार नहीं, कई बार लोगों ने गांव के मुखिया, सरपंच से लिखित में समस्या-समाधान की मांग की, लेकिन आज तक कोई भी परिणाम नहीं निकल पाया है। रोजगार के मुद्दे पर हीरालाल का दावा है कि गांव में रोजगार का कोई भी साधन नहीं है। लोगों के पास सिवाय पलायन के कोई भी चारा ही शेष नहीं बचा है। लोग टावर लाइन के काम में पांच-छह माह परदेस में जाते हैं, कमाते हैं और फिर लौटकर घर आ जाते हैं। हम यहां आपको बता दें कि बोकारो जिले में गोमिया प्रखण्ड से ही सबसे ज्यादा ऐसे मजदूरों के पलायन के मामले सामने आते हैं। लोग अपने घरों से परदेस कमाने तो चले जाते हैं, लेकिन वहां उनकी उम्मीदों पर और यहां उसके परिवार वालों के आसरे पर तब कुठाराघात होता है, जब वे वहां किसी कंपनी के ठेकेदार द्वारा बंधक या बंधुआ मजदूर बना लिए जाते हैं। हाल ही में कुछ मजदूरों को ऐसी दुर्दशा से मुक्त कराया गया था।
‘बस मिलता है झूठा आश्वासन’
गांव में ही रहने वाले लखीराम मांझी नामक एक अन्य ग्रामीण ने तो सीधे-सीधे जनप्रतिनिधियों पर तंज कसते हुए कहा कि नेता लोग आते हैं तो जरूर, लेकिन बस झूठा आश्वासन देकर ही चले जाते हैं। वे आज तक इस इलाके के विकास के लिए कुछ भी नहीं कर सके हैं। एक भी चापाकल गांव में नहीं है। सब सूखने के कगार पर हैं। नाला से पानी लाना पड़ता है। पांचवीं कक्षा के बाद बच्चों को डेढ़ किलोमीटर दूर चलकर चिलगो या चतरोचट्टी जाना पड़ता है।
‘नेता सब कुछो न करय हौ’
एक अन्य ग्रामीण महिला ने अपनी स्थानीय भाषा में कहा, ‘हमनी के चापाकल चाही, रोड चाही, नेता सब कुछो न करय हौ।’ इसने कहा कि गांव के बच्चे पढ़ने के लिए कोसों दूर चतरोचट्टी जाते हैं। हालांकि इस महिला ने एक अच्छी बात यह कही कि गांव में इंदिरा आवास, लाल कार्ड की सुविधाएं कम ही सही, लेकिन हैं, परन्तु आयुष्मान कार्ड नहीं है। आंगनबाड़ी की भी व्यवस्था नहीं है।
‘फोटो खिंचाकर नहीं लौटते नेताजी’
लालजी मांझी नामक ग्रामीण बताते हैं कि चुनाव के समय बस नेताजी लोग आते हैं, साथ फोटो खिंचवाते हैं और फिर दुबारा लौटकर कभी नहीं आते। सबसे ज्यादा पानी की दिक्कत की बात लालजी ने भी दुहरायी। कहा कि उन्हें सवा किलोमीटर दूर नाले से इन दिनों पानी लाना पड़ता है और उसी से काम चलता है। जाहिर है जब नाला और गड्ढ़ों का गंदा पानी लोग पियेंगे तो डायरिया जैसी गंभीर बीमारी का शिकार तो वे होंगे ही। टेकलाल मांझी नामक एक अन्य ग्रामीण ने भी कहा कि बड़कीचिदरी में पानी, रोड, तालाब, आवाजाही की सुविधा की घोर कमी है। बरसात के दिनों में बहुत दिक्कत है। बच्चों को काफी दूर पैदल पढ़ने जाना पड़ता है।

बड़कीचिदरी के ढोरी ग्राम में पूरे प्रखंड के प्रशासन को लेकर जायेंगे। जो सुविधाएं त्वरित रूप से वह दिला सकते हैं, वह आॅन द स्पॉट दिलाने का काम किया जायेगा।’ जो सुविधाएं त्वरित नहीं दी जा सकती हैं, उन्हें प्लान बनाकर जिला को अपनी अनुशंसा भेजेंगे और स्वीकृत कराकर वहां पर काम करायेंगे। सरकार की मंशा ही है कि कोई भी क्षेत्र पिछड़ा नहीं हो, सभी जगह समान विकास हो।’
प्रेम रंजन,
अनुमंडल पदाधिकारी, बेरमो (बोकारो)।
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