हिन्दी कविता : तपती धरती

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धरती है तपती, प्यासे है पंछी,
आसमां की गोद भी सूनी है।
गर्म हवाओं से मुरझाए चेहरों
की आसमां से उम्मीद दूनी है।

धरती के हर प्राणी ने प्रभु से
बस एक ही आस बुनी है।
बरसे बादल जोर से कुछ ऐसे,
कि हर किसान की फसल
लगे, चली आकाश को छूनी है।

आंचल धरती का,
जो तुम हरा-भरा चाहते हो।
आलसपन छोड़कर
फिर पौधे क्यों ना लगाते हो?

प्रयास करेंगे मिलकर सब
तभी हरियाली आएगी।
कोई पंछी ना प्यासा होगा
सबकी प्यास बुझ जाएगी।।

आओ ऐसे विश्व के-
निर्माण का प्रयास करते हैं।
हर माह एक पौधे को धरती की गोद में बोते हैं।।

नीरज त्यागी

गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश).
मो. – 09582488698

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