विजय कुमार झा
बिहार में चमकी बुखार ने भयावह रूप ले लिया है। जो बच्चे रोज अपने बाल नटखटपन के साथ खेला करते थे, खेलते-खेलते कभी अपनी मां की आंचल से लिपट जाते तो कभी पिता के पास छुप जाते। उनकी हरेक मुस्कान का पूरा घर कायल रहता था, उनकी उधम-चौकड़ी से गुलजार रहता था, लेकिन…. अब तस्वीर बदल चुकी है। जिस आंचल में वो खेलते-खेलते लिपट जाया करते थे, वो आंचल और उस मां की गोद सूनी हो चुकी हैं। जो घर बाल-कोलाहल से गूंजा करता था, वहां आज मातमी सन्नाटा और करुण क्रंदन का माहौल पसरा है। जिन आंखों ने अपने आंखों के तारे के लिए न जाने कई सपने संजोए थे, उनसे अश्रुधार रुकने का नाम नहीं ले रहीं। वीरान घरों का हरेक कोना उस लाल की याद दिला रहा है। कौन जानता था कि एक दिन वह जिन लीचियों को अपनी नन्हीं मुट्ठियों में लेकर दौड़ता हुआ आएगा, उन्हें खायेगा और हमेशा-हमेशा के लिए गहरी नींद में सो जाएगा। ऐसी नींद कि फिर वह अपनी मां की हथेलियों के सहलाने और लाख पुचकारने पर भी न टूटेगी और अपने पिता के जिन कंधों पर वो अटखेलियां किया करते थे, वही कंधे अपने नन्हें कलेजे के टुकड़े की अर्थियों को सहारा देंगे। वे कलेजा बाहर निकाल देने वाली यह हृदयविदारक स्थिति बनी है बिहार के मुजफ्फरपुर सहित कई अन्य जिलों की। वहीं मुजफ्फरपुर, जो कभी अपनी शाही लीचियों के लिए पूरी दुनिया में विख्यात था, आज कथित तौर पर उन्हीं लीचियों के कारण मौत की न टूटने वाली कड़ी के लिए जाना जाने लगा है। पिछले लगभग एक महीने से यहां मौत का तांडव मचा है। ऐसा तांडव कि हर दिन कई गोदें सूनी हो रही हैं और परिजनों की करुण चीत्कार से हर इन्सान का दिल झकझोर रहा है।
यह भयानक बीमारी अब तक 170 से अधिक बच्चों की जानें ले चुकी है। इनमें सबसे ज्यादा बच्चों की मौत मुजफ्फरपुर के श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज अस्पताल में हुई है। मुजफ्फरपुर से शुरू हुई तथाकथित इंसेफेलाइटिस (चमकी बुखार) नामक इस बीमारी का प्रकोप धीरे-धीरे सीतामढ़ी, शिवहर, वैशाली, मोतिहारी, बेतिया सहित अन्य जिलों में फैलता जा रहा है, लेकिन इसे नियंत्रित करने की सारी कोशिशें नाकाम साबित हो रही हैं। केन्द्र सरकार ने बिहार में मस्तिष्क ज्वर (चमकी बुखार या इन्सेफेलाइटिस) के इलाज की सहायता के लिए तत्काल पांच चिकित्सा टीमों को मुजफ्फरपुर भेजने के निर्देश दिये हैं, लेकिन राज्य सरकार अब तक सो रही है। या यूं कहें कि इस मामले में बहुत ही छीछालेदर होने बाद अगर जगी भी है तो सरकार के नुमाइंदों की संवेदनहीनता साफ झलक रही है। शायद यही वजह है कि इस बीमारी के विकराल रूप लेने के 17 दिनों बाद जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मुजफ्फरपुर स्थित श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में हालात का जायजा लेने पहुंचे तो वहां उन्हें लोगों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा। राज्य सरकार की उदासीनता से गुस्सायी भीड़ ने मुख्यमंत्री के खिलाफ ‘वापस जाओ, वापस जाओ’ के नारे लगाये और उन्हें काले झंडे दिखाये। हालांकि मुख्यमंत्री ने मरने वाले बच्चों के परिजनों को चार-चार लाख रुपये का अनुदान देने तथा इलाज का खर्च देने की घोषणा की है। लेकिन बीमारी की रोकथाम के पुख्ता इंतजाम अभी तक नहीं किये जा सके हैं। इस बीमारी के कई कारण बताये जा रहे हैं। विशेषज्ञ बता रहे हैं कि यह बीमारी भयानक गर्मी, कुपोषण और खाली पेट लीची खाने से फैली है, लेकिन इसे लेकर सही अनुसंधान नहीं हो पाया है।
लापरवाह सुशासन सरकार
ताजा आंकड़ों के अनुसार खबर लिखे जाने तक इस बीमारी से बिहार में लगभग 170 बच्चों की मौत हो चुकी है। इनमें सबसे ज्यादा 117 मासूमों की जानें मुजफ्फरपुर में जिले में गई हैं। शेष सीतामढ़ी में 2, शिवहर में 2, मोतिहारी में 5, हाजीपुर में 11 तथा अन्य जिलों में इन बच्चों के मारे जाने की खबर है। प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्ष 1995 में यह बीमारी मुजफ्फरपुर में फैली थी और उसके बाद हर वर्ष ऐसा होता रहा है। आंकड़े बताते हैं कि 2010 में 24, 2011 में 45, 2012 में 120, 2013 में 39, 2014 में 86, 2015 में 11, 2016 में 4, 2017 में 4 तथा 2018 में 11 बच्चों की मौत हुई थी। जबकि 2019 में 170 बच्चे इस बीमारी की भेंट चढ़ चुके हैं। जानकार बताते हैं कि 2014 में केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्द्धन ने मुजफ्फरपुर के श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज अस्पताल में अतिरिक्त बेड लगाने की योजना की घोषणा की थी, लेकिन राज्य सरकार की ओर से इसके लिए सार्थक पहल नहीं किये जाने के कारण इस दिशा में कोई काम नहीं हो सका। इसे लोग चिकित्सा व्यवस्था के प्रति नीतीश सरकार की लापरवाही बता रहे हैं।

एम्स के लिए नहीं मिली जमीन
बिहार की बदतर चिकित्सा व्यवस्था और इस बीच दिमागी बुखार की फैली महामारी के बीच एक महत्वपूर्ण बात यह सामने आयी है कि राज्य सरकार की ओर से अपेक्षित जमीन उपलब्ध नहीं करा पाने के कारण बिहार में प्रस्तावित दूसरा एम्स नहीं बन पाया। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान वर्ष 2015-16 के अपने बजट भाषण में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बिहार में एक नया एम्स खोलने की घोषणा की थी। इसके बाद केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसके लिए बिहार सरकार से बार-बार तीन-चार वैकल्पिक जगहों की जानकारी मांगी, जहां एम्स की स्थापना की जा सके। परन्तु बिहार का यह दुर्भाग्य रहा कि विगत चार वर्षों में नीतीश सरकार एम्स बनाने के लिए जमीन चिन्हित या आवंटित नहीं कर सकी। इसके बाद भारत सरकार ने दरभंगा मेडिकल कॉलेज अस्पताल को ही एम्स की तर्ज पर विकसित करने का फैसला किया। 19 दिसंबर 2017 को राज्यसभा में दिये अपने लिखित जवाब में केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी चौबे इस बात की पुष्टि कर चुके हैं। 13 नये प्रस्तावित एम्स के अद्यतन स्थिति के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए बिहार में प्रस्तावित नये एम्स पर उन्होंने राज्य सभा को बताया – ‘राज्य सरकार से बिहार में एक नया एम्स खोलने के लिए 3-4 वैकल्पिक जगहों की पहचान करने की गुजारिश की गई है, लेकिन राज्य सरकार ने अब तक वैकल्पिक जगहों की पहचान नहीं की है।’ लोगों में इस बात को लेकर भी नीतीश सरकार के खिलाफ गुस्सा है, क्योंकि यदि बिहार में एक और एम्स की स्थापना हुई होती तो आज उक्त भयानक बीमारी से बच्चों को बचाने में वह बहुत हद तक मददगार साबित होता।
राज्य सरकार की चौतरफा आलोचना
सोशल मीडिया से लेकर चौतरफा राज्य सरकार की आलोचना हो रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हवाई मार्ग से बिहार में गर्मी का जायजा लेते नजर आये। जबकि जिस समय दिमागी बुखार से बच्चों की मौत हो रही थी और उनके परिजन विलाप कर रहे थे, समय रहते बिहार सरकार की ओर से इसकी रोकथाम के लिए कोई सार्थक पहल राज्य सरकार की ओर से नहीं की गयी। मुजफ्फरपुर में दिमागी बुखार से लगातार हो रही बच्चों की मौत का सिलसिला जारी रहने के 17 दिनों बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हालात का जायजा लेने का समय निकाला। जब मीडिया वालों ने उनसे सवाल पूछने की कोशिश की तो वे उनसे भागते नजर आ रहे थे। हालिया घटनाओं ने राज्य सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है।
संसद में भी गूंजा मामला
पिछले कुछ दिनों में बिहार के मुजफ्फरपुर सहित विभिन्न जिलों में बच्चों की मौत का मामला शुक्रवार को संसद के दोनों सदनों में गूंजा। लोकसभा में शून्यकाल के दौरान कई सांसदों ने इस संवेदनशील मुद्दे पर अपनी बात रखी और सरकार से कार्रवाई की अपील की। राज्यसभा में भी सदस्यों ने केन्द्र से तत्काल हस्तक्षेप करने और पीड़ित परिवारों को पर्याप्त मुआवजा देने की मांग की। सभापति एम वेंकैया नायडू ने इस घटना पर शोक जताते हुए कहा कि सदन उन बच्चों को श्रद्धांजलि देता है। इसके बाद सदस्यों ने 2 मिनट का मौन रखकर दिवंगत बच्चों को श्रद्धांजलि दी।