बिहार में नीतीश कुमार की सुशासन सरकार फिलहाल सवालों के घेरे में है। पिछले एक माह के दौरान प्रदेश में चमकी बुखार से लगभग 170 बच्चों की मौत हो गयी, लेकिन राज्य सरकार का सेहत पर शायद इसका कोई असर पड़ता नहीं दिख रहा है। विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं ने इस बीमारी से सबसे ज्यादा ग्रस्त मुजफ्फरपुर को पर्यटन केन्द्र बना लिया है। वहां के श्रीकृष्ण मेमोरियल कॉलेज अस्पताल में चमकी बुखार से मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है, लेकिन ये नेता शर्मोहया बेचकर बीमारी बच्चों और उनके परिजनों को मदद करने नहीं, बल्कि मीडिया में बने रहने के लिए अपना चेहरा चमकाने पहुंच जा रहे हैं। सबसे पहले कभी नीतीश के सबसे करीबी रहे नेता शरद यादव ने पूरे काफिले के साथ पहुंचकर वहां अपना चेहरा चमकाया। फिर अपने फूहरपन के कारण जगह-जगह से भगाये गये एक भोजपुरी गायक व अभिनेता ने वहां अपना फूहड़पन दिखलाया।
हद तो तब हो गयी, जब टुकड़े-टुकड़े गैंग के नेता कन्हैया कुमार भी वहां अपना चेहरा चमकाने पहुंच गये, लेकिन इनमें से किसी ने भी पीड़ित परिवारों से हमदर्दी दिखाने की कोशिश नहीं की। इधर, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का अहंकार सातवें आसमान पर है। बिहार में चमकी बुखार से मासूमों की हो रही मौत पर वे मौन हैं। उनकी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय तो उस समय भी क्रिकेट का स्कोर पूछ रहे थे, जब वे मुजफ्फरपुर में कथित तौर पर हालात का जायदा लेने पहुंचे थे। नीतीश सरकार में कई वर्षों तक बिहार के स्वास्थ्य मंत्री रह चुके वर्तमान केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी चौबे भी चुप्पी साधे बैठे हैं। केन्द्रीय स्वास्थ्यमंत्री डा. हर्षवर्द्धन के साथ मुजफ्परपुर पहुंचे श्री चौबे उस समय झपकी ले रहे थे, जब डा. हर्षवर्द्धन वहां पत्रकारों के सवालों का जवाब दे रहे थे।
बिहार के वर्तमान उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी जब विपक्ष में थे और छपरा में मिड-डे मिल खाने से जब कई बच्चों की मौत हुई थी तो वही सुशील मोदी नीतिश से इस्तीफा मांग रहे थे, लेकिन आज वह भी चुप हैं। यहां तक कि केन्द्र सरकार की ओर से भी किसी बड़े ओहदेदार नेता ने इस बारे में कुछ बोलने की जरूरत नहीं समझी है। हां! केन्द्र की ओर से मेडिकल टीम भेजने की बात जरूर कही गयी है। लेकिन हालात अभी तक जस के तस बने हुए हैं और मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। इस बीच विरोधी दलों के नेताओं के साथ-साथ भाजपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व केन्द्रीय मंत्री डॉ. सी पी ठाकुर ने भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को निशाने पर लिया है। सच्चाई भी यही है कि बिहार में कुछ ही दिनों में 170 से अधिक बच्चों की मौत ने राज्य सरकार की प्रशासनिक कुशलता पर सवाल खड़े कर दिये हैं, लेकिन मुख्यमंत्री इस बारे में कुछ बोलने की बजाय मीडिया से मुंह फुलाये बैठे हैं। यह भी सच है कि आज तक विशेषज्ञ भी एक्यूट एन्सिफेलाइटिस सिन्ड्रोम (एईएस) के फैलने के कारणों का पता लगाने में विफल रहे हैंं, लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अनुसार इस बार स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी बीमारी की रोकथाम के लिए प्रचार-प्रसार करने में विफल रहे। लेकिन जानकारों की मानें तो खुद नीतीश कुमार ने भी चुनाव के बाद की गई विभागवार समीक्षा में इस पहलू को नजरअंदाज किया। मुजफ्फरपुर में इस बीमारी ने महामारी के रूप ले लिया, लेकिन मुख्यमंत्री को 15 दिनों तक स्थिति का जायजा लेने का समय नहीं मिला। जब यह खबर राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बटोर रही थी तो 17वें दिन नीतीश कुमार मुजफ्फरपुर पहंचे। खुद नीतीश को भी लग रहा होगा कि इस बार बच्चों की मौत की जिम्मेदारी उन पर है, क्योंकि उन्होंने बीमारी को गंभीरता से नहीं लिया। अधिकारियों के साथ की गई समीक्षा बैठक को अपने तक सीमित रखा और 17 दिन के बाद अस्पताल जाकर उन्होंने सफाई से लेकर डॉक्टर भेजने तक के फैसले किये।
यह भी सच है कि अगर उन्होंने कुछ दिन पहले दौरा कर लिया होता तो निश्चित रूप से कई बच्चों की जान बचायी जा सकती थी। यही कारण है कि आज मीडिया में उनकी जगहंसाई हो रही है। आज बिहार इस बीमारी से त्रस्त है। अस्पतालों में न डॉक्टर हैंं, न नर्स। नीतीश हर मामले में लालू-राबड़ी शासनकाल से तुलना करते हुए आंकड़े पेश कर अपनी पीठ थपथपा लेते हैं, लेकिन सच्चाई यही है कि बिहार में आज हाहाकार है। ऐसी स्थिति में सरकार का मुखिया होने के नेता नीतीश अपनी जिम्मेदारी से भाग नहीं सकते। बिहार में दूसरे एम्स की घोषणा के पांच साल बाद भी उसका शिलान्यास नहीं हो पाना भी नीतीश की नीयत पर सवाल खड़ा करता है। अब मीडिया से मुंह फुला लेने से न समस्या का समाधान होगा, न बच्चों की जान बचायी जा सकेगी। इसलिए नीतीश कुमार को याद रखना होगा कि अगर ताली कप्तान को मिलती है तो गाली भी कप्तान को ही मिलती है।