खुद तो पांचवीं पास है यह राजमिस्त्री, पर दो दशकों से निर्धन बच्चों में जगा रहा शिक्षा का अलख

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दीपक कुमार झा
बोकारो। सरकार भले ही शैक्षणिक विकास का ढिंढोरा पीट रही हो, लेकिन वास्तविकता तो यही है कि आज भी हजारों लाखों बच्चे अनपढ़ रह जाते हैं। कचरे के ढेर में, रिक्शा चलाने में अथवा मजदूरी आदि करने में उनकी उम्र गुजर जाती है। बोकारो में ऐसे ही बच्चों के लिए तारणहार साबित हो रहा नगर के सेक्टर- 12ए स्थित बिरसा मुंडा निशुल्क विद्यालय। पिछले 23 सालों से यह फ्री स्कूल उन बच्चों के बीच शिक्षा का अलख जगा रहा है, जिनके माता-पिता घर-घर झाड़ू पोछा लगाकर, बर्तन मांजकर, दिहाड़ी मजदूरी कर, रिक्शा चलाकर, किसी प्रकार दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर पाते हैं।

Parshuram Ram

सबसे आश्चर्यजनक एवं प्रेरणा बात तो यह है कि इस विद्यालय का संचालन कोई बड़ा व्यवसाय उद्योगपति राजनेता या कोई सेलिब्रिटी नहीं, बल्कि एक मामूली राजमिस्त्री कर रहा है। जी हां राजमिस्त्री। वह राजमिस्त्री जो मात्र पांचवी पास है। है न आश्चर्य की बात। महज पांचवी कक्षा तक की पढ़ाई कर चुका परशुराम न केवल लोगों के भवनों को खड़ा कर रहा है, बल्कि अपनी मेहनतरूपी एक-एक ईंट को जोड़कर देश के भविष्य की बुनियाद भी कर रहा है। हमारे नौनिहाल ही इस देश के भविष्य हैं और उन्हें समाज के मुख्यधारा से जोड़ने में परशुराम राम का प्रयास अपने-आप में एक अनुकरणीय मिसाल है।


सरकारी सहयोग न मिलने का है मलाल

गरीब और असहाय बच्चों के लिए बिरसा मुंडा मुंडा निःशुल्क विद्यालय खोलने वाले परशुराम राम ठीक अपने नाम की तरह दृढ़ इच्छाशक्ति के धनी है। ‘वर्णन लाइव’ से एक खास बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि विद्यादान से उन्हें आत्मिक संतुष्टि मिलती है इस सत्कार्य में उनके सामने लाख परेशानियां आयीं और अभी भी लगातार आ ही रही है, लेकिन इसके बावजूद उनका धैर्य अटल है। अपने दुःख की परवाह किए बिना परशुराम दिन-रात गरीबों की सेवा में लगे रहते हैं।

इस पुनीत कार्य में उनकी पत्नी श्रीमती देवी भी उनका साथ निभा रही है। परशुराम का का कहना है कि दूसरों की मदद के लिए किसी डिग्री की नहीं बल्कि हौसले की जरूरत है। उन्हें बस दुःख इस बात का है कि सरकार ने पिछले 23 सालों आज तक रत्तीभर भी सहायता न उपलब्ध करायी। क्या एमपी, क्या एमएलए और डीसी, मंत्री से लेकर संतरी तक की चौखटों तक परशुराम राम मदद के लिये दस्तक दे चुके हैं, लेकिन आज तक नतीजा सिफर ही रहा है।

समाजसेवियों की मिलती है मदद

सरकारी उपेक्षा के बावजूद हिम्मत न हारने वाले परशुराम का कहना है कि उन्होंने शुरू से ही कुछ अलग करने की ठानी। गरीबी के कारण शिक्षा के अभाव का दंश क्या होता है, वह उन्होंने काफी करीब से देखा है, इसलिये वह समाज के गरीब बच्चों को शिक्षित बनाना चाहते हैं, जिसमें समाजसेवियों का भी उन्हें भरपूर सहयोग मिला करता है। समय-समय पर समाजसेवी बच्चों के लिये भोजन, पोशाक, पुस्तक आदि की सहायता करते हैं। यकीनन परशुराम जैसी शख्सियत से वैसे लोगों को सबक लेने की जरूरत है, जो बातें तो बड़ी-बड़ी करती हैं, लेकिन देश के हालात, खासकर नौनिहालों की तकदीर संवारने में कोई सद्प्रयास नहीं करते।

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