शिक्षा का मंदिर अब अपराधियों का ठिकाना

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बन्द पड़ा बोकारो स्टील का एक विद्यालय।

बदहाल हो खंडहर बने बोकारो स्टील के बंद पड़े विद्यालय

  • Vijay Kumar Jha

बोकारो : 12वीं कक्षा तक की शिक्षा के लिए बोकारो इस्पात नगर का नाम न सिर्फ झारखंड और बिहार में, बल्कि पूरे देश में प्रख्यात रहा है। +2 तक की शिक्षा के क्षेत्र में आज भी इस शहर की एक अलग पहचान है, लेकिन अब यह पहचान केवल कुछ निजी विद्यालयों के कारण शेष रह गया है। कभी सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम बोकारो स्टील प्लांट द्वारा संचालिक यहां के विद्यालयों ने भी अपनी ख्याति अर्जित की थी, लेकिन आज बोकारो स्टील द्वारा संचालित अधिकतर विद्यालय बंद हो चुके हैं और ऐसे बंद पड़े विद्यालयों को अपराधियों ने अपना ठिकाना बना लिया है। शहर में बड़े-बड़े आपराधिक घटनाओं को अंजाम देने से पहले अपराधकर्मियों का जमावड़ा इन्हीं बंद पड़े विद्यालयों में होता है और यहीं से वे अपने मिशन को कामयाब करने की ओर कदम बढ़ाते हैं। बीते हफ्ते ही नगर के हरला थाना क्षेत्र अन्तर्गत सेक्टर-8 बी स्थित बोकारो स्टील के बंद पड़े मिड्ल स्कूल (बोकारो इस्पात विद्यालय) परिसर में छापा मारकर पुलिस ने डकैती की योजना बना रहे एक अपराधी गिरोह का खुलासा किया। गुप्त सूचना के आधार पर जब पुलिस के छापामार दस्ते ने वहां धावा बोला तो अर्जुन कुमार नामक एक अपराधी घातक हथियारों के साथ पकड़ा गया, जबकि उक्त गिरोह के अन्य सदस्य पुलिस को देखते ही वहां से भाग खड़े हुए। अपराधियों का यह गिरोह बोकारो के सेक्टर-4 ए, स्ट्रीट-2 में रहने वाले एक बुजुर्ग दम्पत्ति के घर में डकैती की योजना बना रहे थे। सिटी डीएसपी ज्ञानरंजन के अनुसार बीएसएल के बंद पड़े उक्त स्कूल में लगभग आधा दर्जन अपराधी हरवे-हथियार से लैश होकर डकैती की योजना बना रहे थे, तभी पुलिस ने छापा मारा और भागने के क्रम में पुलिस ने एक को दबोच लिया, जबकि शेष अपराधी वहां से भागने में सफल रहे। डीएसपी ने गिरोह के अन्य सदस्यों को भी जल्द ही गिरफ्तार कर लिये जाने का दावा किया।

32 विद्यालयों में लगा ताला

दरअसल, देश की आर्थिक प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए ही बोकारो स्टील प्लांट की परिकल्पना की गयी और 60 के दशक में इसने एक बड़ा आकार धारण कर लिया। देश के कोने-कोने से यहां लोग आते गये और इस शहर ने ‘मिनी भारत’ का रूप ग्रहण कर लिया। रूस के सहयोग से सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम के रूप में बोकारो स्टील प्लांट का निर्माण हुआ और इसमें काम करने वाले कर्मचारियों के बच्चों की शिक्षा-दीक्षा के लिए यहां 42 विद्यालय बनाये गये। इन विद्यालयों में बोकारो स्टील के कर्मियों के साथ-साथ आसपास के ग्रामीणों तथा यहां निवास करने वाले लोगों के बच्चे भी पढ़ते थे। लेकिन कालान्तर में जैसे-जैसे यहां के कर्मचारी सेवानिवृत्त होते गये, विद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या भी घटती चली गयी। यहां यह भी कह सकते हैं कि निजी शिक्षण संस्थानों के पैर पसारने का भी बोकारो स्टील के विद्यालयों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। फिर भी आज भी जो विद्यालय बचे हैं, उनमें गुणवत्तापूर्ण शिक्षण व्यवस्था से कोई इनकार नहीं कर सकता।

कभी बोकारो में थे 42 विद्यालय

बोकारो इस्पात नगर में बोकारो स्टील द्वारा स्थापित कुल 42 विद्यालय थे। इन विद्यालयों में से आज सिर्फ 10 विद्यालय शेष बचे हैं। इनमें दो विद्यालय (सेक्टर-3 स्थित कल्याण विद्यालय तथा सेक्टर-9 बी स्थित बालिका विद्यालय) वे भी शामिल हैं, जो बोकारो स्टील के सीएसआर (निगमित सामाजिक दायित्व) से चल रहे हैं। वर्तमान में जो विद्यालय चल रहे हैं, उनमें पांच सीबीएसई द्वारा मान्य हैं और यहां +2 तक की पढ़ाई होती है। ये हैं सेक्टर-2 सी, सेक्टर-3, सेक्टर-8 बी, सेक्टर-9 ई तथा सेक्टर-11 डी स्थित विद्यालय। सेक्टर-2 डी एवं सेक्टर-9 ए में संचालित विद्यालयों को जैक बोर्ड से +2 तक की मान्यता है। एक अन्य विद्यालय सेक्टर-12 ई में संचालित है। जबकि सेक्टर-1 में एक भी विद्यालय आज चालू नहीं है। कहने के लिए सेक्टर1 में एक विद्यालय है भी तो उसमें कौशल विकास केन्द्र चल रहा है। यहां बच्चों की पढ़ाई बिल्कुल नहीं होती है। सत्ता के विकेन्द्रीकरण का नतीजा पिछले कई वर्षों से भारत में सत्ता के विकेन्द्रीकरण पर जोर दिया गया और विकास के स्थानीय मुद्दे स्थानीय स्तर पर ही तय किये जाने लगे। लेकिन यदि हम बोकारो की बात करें तो यहां इसके ठीक उलटा हो रहा है। दरअसल, बोकारो स्टील प्लांट की स्थापना कम्पनी एक्ट-1956 के तहत हुई थी और बोकारो के हित-अनहित के फैसले यहीं से लिये जाते थे। बोकारो स्टील प्लांट के प्रबंध निदेशक को यहां के विकास के साथ-साथ अन्य अहम फैसले लेने का अधिकार था। परन्तु, जब से बोकारो स्टील प्लांट भारतीय इस्पात प्राधिकरण (सेल) का अंग बना, सारा फैसला दिल्ली से लिया जाने लगा। यहां प्रबंध निदेशक का पद समाप्त कर दिया गया और सीईओ के पद का सृजन हुआ, लेकिन सीईओ (मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी) को कोई भी निर्णय लेने का अधिकार नहीं है। लिहाजा, दिल्ली के एयर कंडीशंड कमरे में बैठकर बोकारो की तकदीर का फैसला यहां की जरूरतों के अनुरूप नहीं लिया जा रहा।

बोकारो में उच्च शिक्षा की अनिवार्यता

बोकारो में उच्च शिक्षा का घोर अभाव है। हर वर्ष यहां के सैकड़ों बच्चे 12वीं कक्षा तक पढ़ाई करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए अन्य प्रदेशों में जाने पर विवश हो रहे हैं। जबकि 12वीं तक की पढ़ाई के लिए यहां झारखंड के अन्य जिलों के अलावा बिहार के भी विभिन्न जिलों से बच्चे हर वर्ष आते हैं। बोकारो में उच्च शिक्षण संस्थान की स्थापना की मांग बहुत पुरानी है। जानकार मानते हैं कि बोकारो स्टील के खंडहर बनते जा रहे बंद पड़े विद्यालय भवनों को अगर उच्च शिक्षा केन्द्र के रूप में विकसित किया जाय तो यहां आसपास के बच्चों के साथ-साथ बिहार सहित अन्य पड़ोसी राज्यों के बच्चों व उनके अभिभावकों का भी भला होगा। साथ ही प्रति वर्ष जो करोड़ों रुपये बाहर जा रहे हैं, वे इस शहर की रौनकता को बढ़ाने में मददगार होंगे। इस दिशा में अगर केन्द्र व राज्य सरकार पहल करे तो यह बोकारो के भविष्य के लिए बेहतर साबित होगा।

‘सेल’ में धूल फांक रहीं संचिकाएं

जानकार सूत्रों के अनुसार वर्षों से बंद पड़े बोकारो इस्पात विद्यालय भवनों को निजी क्षेत्र के शैक्षणिक संस्थानों को लीज पर दिये जाने का प्रस्ताव दिल्ली में अटका पड़ा है। बहुत सारे शैक्षणिक संस्थान यहां निवेश कर अलग-अलग विधाओं के शैक्षणिक केन्द्र खोलना चाहते हैं, लेकिन यहां से इस संबंध में भेजी गयी संचिकाएं ‘सेल’ के दिल्ली स्थित निगमित कार्यालय धूल फांक रही हैं। फलस्वरूप आगे की योजना पर विराम लगा हुआ है और बंद पड़े यहां विद्यालय भवन अपराधियों, नशेड़ियों व असामाजिक तत्वों के लिए महफूज ठिकानें बन चुके हैं।

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