हमारे देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जिन्होने पूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी को ये कहा था कि भूखे पेट कम्प्यूटर कैसे चलाएगा देश। आज कम्प्यूटर देश ही नहीं चला रहा है परन्तु पूरे देश क्रा पेट भी भर रहा है। मुझे याद है कि जब पृथ्वी मिसाइल का परिक्षण हुआ था तब मेरे कुछ मित्रों ने कहा था कि यह दिवाली के पटाखे जैसा राकेट है और ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है। पर आज भारत का मिसाइल कार्यक्रम और अंतरिक्ष कार्यक्रम दुनिया के सबसे बेहतरीन कार्यकमों में से एक है। बड़ी मंजिलों की शुरुआत पहले कदम से ही होती है।
पर बड़ी मंजिल के रास्ते भी कठिन होते हैं और खासकार अंतर्राष्ट्रीय माहोल में जब कि कोई किसी का साथी नही होता है। हर राष्ट्र अपनी राष्ट्रीय हित की बात करता हैं । ऐसे में सबसे पहले हमें यह निर्धारण करना चाहिए किं हमें हासिल क्या करना है। एक बार ये तय कर लें की हासिल क्या करना है तो फिर उस के लिए रास्ते निकलते ही जाते हैं।
इस बात की ख़ुशी इस देश के हर नागरिक को होनी चाहिए कि पहली बार इस देश में वो सरकार आयी है जो सोचती है, तय करती है कि उसको क्या करना है, कदम उठाती है, उस को पूरा करने का संकल्प लेती है और फिर उस को पूरा कर के जनता के पास जाती है। ये पहले प्रधान मंत्री हैं जो इस बात दम्भ करते हैं कि वो जिस कार्यक्रम की शिलान्यास करते हैं उस के पूरा होने पर उस उदघाटन भी खुद करते हैं। ये प्रधान मंत्री हैं सिर्फ शिलान्यास की शिलापट्टी पर ही अपना नाम नहीं लिखवाते हैं पर उदघाटन के कार्यक्रम में भी अपनी फोटो लगवाते हैं। मोदी जी के सरकार का स्लोगन होना चाहिए – शिलान्यास से उदघाटन तक।
तो ऐसे कार्य संस्कृति का प्रचार और प्रसार अगर राज्य स्तर तक हो जाए तो भारत विश्व गुरु क्यों नहीं होगा – 2047 से बहुत पहले हो जायेगा।
पर विश्व गुरु की परिकल्पना क्या सिर्फ आर्थिक आधारों पर किया जाना चाहिए? अगर हम ऐसा सोचें तो इस वृहत अवधारणा को एक सीमित दायरे में बाँध देंगे।
मेरे ख़याल से स्वर्णिम काल के तीन मूल स्तम्भ हैं और हमें इन मूल घटकों के बारे में सोचना चाहिए कि इन सभी आयामों में कार्य हो रहा है कि नहीं

अगर आज के परिपेक्ष में देख़ा जाए तो ये बहुत ही मुखर रूप से प्रतीत होता हैं कि हमारे वर्तमान समय में इन सारे स्तम्भों पर बहुत तेजी से प्रगति हो रही हैं और बेहतरी आ रही हैं।