Vijay Kumar Jha
Chief Editor.
सारी दुनिया की निगाहें आगामी 23 मई पर टिकी हैं। उसी दिन भारतीय लोकतंत्र की नई गाथा एकबार फिर से लिखी जाएगी। उसी दिन यह तय होगा कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में देश की सत्ता पर पूर्ण बहुमत के साथ काबिज हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस बार फिर से सुनामी बनकर दुबारा सत्ता के सिंहासन पर विराजमान होंगे या उन्हें इस सिंहासन से उतारने की मुहिम में लगे भाजपा-विरोधी कुनबे का दिल्ली की सत्ता पर राजतिलक होगा?
23 मई को ही 17वीं लोकसभा चुनाव, 2019 के लिए 11 अप्रैल से 19 मई तक कुल सात चरणों में हुए मतदान के नतीजे घोषित किये जाएंगे। देश और दुनिया की निगाहें उस दिन सिर्फ इस बात पर टिकी होगी कि भारत में हुए इस चुनाव में भाजपा-विरोधी राजनीतिक दलों का जलबा दिखेगा या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जादू एकबार फिर से चलेगा? कुल सात चरणों में हुए इस चुनाव में सभी दलों ने देश के मतदाताओं को अपनी ओर लुभाने और उन्हें पटाने की भरपूर कोशिश की। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा और उसके सहयोगी दलों (एनडीए) ने जहां विकास और राष्ट्रीयता को मुद्दा बनाया, वहीं कहीं अकेले तो कहीं महागठबंधन बनाकर चुनाव लड़ रही कांग्रेस व अन्य भाजपाविरोधी दलों ने अपने राजनीतिक एजेंडे से हटकर केवल और केवल मोदी को सत्ता के सिंहासन से हटाने की कोशिश में ही अपनी पूरी ताकत लगा दी। लेकिन अब 23 मई को देखना यह है कि देश के मतदाताओं ने क्या जनादेश दिया है!
दरअसल, नरेन्द्र मोदी विगत लोकसभा चुनाव, 2014 में भाजपा के क्षत्रपति बनकर उभरे थे। वर्ष 1984 के बाद मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने लोकसभा में अपने दम पर 282 सीटें लेकर पूर्ण बहुमत हासिल की थी। जबकि उसके साथ-साथ सहयोगी दलों (एनडीए) को 334 सीटें प्राप्त हुईं। दूसरी ओर 543 सीटों वाली लोकसभा में कांग्रेस व उसके सहयोगियों (यूपीए) को महज 60 और अन्य को 147 सीटें मिली थीं। ज्ञात हो कि इसके पूर्व तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी की हत्या के बाद वर्ष 1984 में राजीव गांधी के नेतृत्व में हुए चुनाव में कांग्रेस ने 417 सीटें लाकर पूर्ण बहुमत प्राप्त की थी, लेकिन उसके बाद 2014 से पहले किसी भी दल को स्पष्ट जनादेश नहीं मिला था।
- Varnan Live.