क्या आप इतिहास का रूख बदल देंगे माननीय सरसंघ चालक

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इस्लाम से दोस्ती का हाथ बढ़ाने से पहले कृपया इस्लाम का इतिहास जानें। माननीय श्री भागवत जी आप इतिहास का रूख बदलने की कोशिश कर रहे हैं क्योंकि आजतक इस्लाम ने कभी किसी काफिर से दोस्ती नही की है। इस्लाम तो अपने ही माया जाल में फंसा हुआ है और एक अंतर्विरोधों के जेल में कैद है।

इस पंच कोणीय विरोधाभास में इस्लाम आज 1400 सालों से फँसा हुआ है। इस से ये आपके निकालने से नहीं निकलेगा । इस्लाम अपने इन्हीं विरोधाभासों के बोझ से धीरे धीरे खत्म हो रहा है। आज तक के इतिहास पर जाएं तो देखेंगे कि जब – जब इसलाम से मेल जोल करने की कोशिश की गई है, तब तब उन कोशिशों ने इस्लाम को और बल दिया है और नई जिन्दगी दी है। आटोमन साम्राज्य के पतन के बाद 1920 के आस पास इस्लाम खत्म होने ही वाला था कि गाँधी जी ने हिन्दू मुस्लिम एकता की आवाज देकर मुसलमानों की इस्लामियत को तरजीह दे दी। वही तरजीह बीस सालों में फन उठाकर देश का विभाजन कर डाला ।

आज भारत का मुसलमान अपनी इस्लामियत के अस्तित्व को खत्म होता देख रहा है। एक साधारण और समझदार मुसलमान भी इस बात को समझता है और इस विरोधाभास कर जाल से निकलने की कोशिश कर रहा है ! यह Same DNA है जिसकी वजह से वह इन विरोधाभासों को समझता है पर इस्लामी समाज में मुल्ला और मौलवीयो के तानाशाही कब्जे की वजह से चुप है। उसी समय आप वहाँ पहुंच कर Same DNA की कहानी अपने हिसाब से कर देते हैं और अन मुल्ला और मौलवियों की उपयोगिता बढा देते हैं। एक बार इतिहास देखिए । हिन्दू मुस्लिम एकता जैसी कुछ भी चीज अस्तित्व में ही नहीं है। Same DNA के लोग आपस में सौहर्द से जरूर रहते हैं पर हिन्दू और इस्लाम नहीं । गज्वा ए हिन्द से ना मुल्ला तौबा करें और ना ही अब हिन्दू उसको और सुनेगा या सहेगा।

आपने अगर अभी गिरते और ढलते इस्लामियत को हवा दी तो उसका परिणाम 10 सालों में देखकर आप अफसोस के अलगवा और कुछ नहीं कर पाएंगे।

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