
– Vijay Kumar Jha
आज हम भारत के लोकतांत्रिक गणराज्य का 71वां उत्सव मना रहे हैं। 26 जनवरी का यह वही गौरवशाली दिवस है, जब अंग्रेजों से मिली आजादी के लगभग दो साल, 11 महीने, 18 दिनों के बाद भारतीय संसद ने देश के संविधान को स्वीकृत किया और भारत एक लोकतंत्रिक गणराज्य घोषित हुआ। इसी के साथ भारत के लोग 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाने लगे। लेकिन, आजादी के साथ ही साम्प्रदायिकता के आधार पर भारत के विभाजन के बाद भी कुछ लोगों द्वारा धर्म और सम्प्रदाय के आधार पर देश को पुन: बांटने और कमजोर करने की साजिशें लगातार चल रही हैं।
भारत में लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना के 70 वर्षों बाद भी आज भारतीय गणतंत्र पर ‘भीड़-तंत्र’ हावी होता दिख रहा है। मुस्लिम तुष्टिकरण और वोटबैंक की आड़ में अपनी दुकानदारी चलाने वाले कुछ राजनीतिक दलों और स्वार्थी नेताओं द्वारा भारतीय लोकतंत्र के मन्दिर (संसद) के फैसले के विरोध के नाम पर शान्ति और सौहार्द को खुली चुनौती दी जा रही है। लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के नाम पर संवैधानिक प्रावधानों की धज्जियां उड़ायी जा रही हैं। यह आन्दोलन मुख्यत: एक सम्प्रदाय विशेष का आन्दोलन बनता जा रहा है और वोटबैंक की लालच में मुस्लिमपरस्ती की ओछी राजनीति करने वाले विपक्ष के कतिपय नेता हमारे गणतंत्र की राह में कंटीली झाड़ियां बिछा रहे हैं। वही कंटीली झाड़ियां, जिनसे लोकतंत्र के पैर लहूलुहान हो रहे हैं।
घोले जा रहे जिहाद के जहर
ताजा उदाहरण हमारे सामने केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा नागरिकता संशोधन कानून का लागू किया जाना है। संसद के दोनों सदनों ने केन्द्र सरकार के इस प्रस्ताव को बहुमत के साथ पारित कर दिया, विपक्षी दलों के नेता चाहकर भी संसद में इस कानून की राह में रोड़े नहीं अटका सके और उनका विरोध लोकतंत्र की चौखट पर औंधे मुंह जा गिरा। यह कानून अब संवैधानिक रूप से मान्य हो चुका है। सभी जानते हैं कि नागरिकता कानून का किसी भी भारतीय नागरिक पर कोई असर नहीं होने वाला है। खासकर, किसी भी भारतीय मुसलमान को नागरिकता कानून के कारण कभी परेशानी होने का कोई कारण ही नहीं। नागरिकता कानून केवल पड़ोसी इस्लामी देशों में मजहब के नाम पर सताये गये हिन्दू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन व पारसी अल्पसंख्यकों के लिए है, जिन्हें भारत ने नागरिकता देने का प्रावधान किया है। यह कानून ह्यवसुधैव कुटुम्बकमह्ण के हमारे सिद्धान्त की पुरानी परम्परा का प्रतीक है। फिर भी केवल राजनीतिक स्वार्थ के लिए देश के मुसलमानों के बीच जान-बूझकर झूठ की आग फैलायी जा रही है और उन्हें भड़काकर सड़कों पर हिंसा के लिए उकसाया जा रहा है। यहां तक कि अब दिल्ली के शाहीनबाग में एक महीने से अधिक समय से चल रहे धरना-प्रदर्शन की आड़ में वहां से भारत के खिलाफ जिÞहाद (संघर्ष) के जहर घोले जा रहे हैं, भले ही इसके लिए देश का विनाश ही क्यों न हो।
घटनाओं के पीछे आईएस की साजिश?
यह अब साफ हो चुका है कि नागरिकता संशोधन कानून लागू होने के बाद सरकार-विरोधी राजनीतिक दलों भड़कायी गयी हिंसा की आग धीरे-धीरे न सिर्फ साम्प्रदायिकता का रंग ले चुकी है, बल्कि अब यह विकराल रूप धारण करती जा रही है। देश भर से जो बातें उभरकर सामने आ रही हैं, उनसे यही संकेत मिल रहे हैं कि केन्द्र सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने, मुस्लिम महिलाओं के लिए तीन तलाक जैसी कुप्रथा को समाप्त करने और सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोध्या में राम मन्दिर के निर्माण का रास्ता साफ कर दिये जाने से जो विपक्ष और समुदाय विशेष का एक तबका आहत था, उसे विपक्ष सीएए और एनआरसी के नाम पर गोलबंद करने में सफल रहा। विपक्ष की इसी सफलता का लाभ कट्टर इस्लामी संगठन आईएस व अन्य कट्टरपंथी उठा रहे हैं। केन्द्रीय खुफिया रिपोर्ट की मानें तो भारतीय कानून के शिकंजे से बचने के लिए विदेश में शरण ले रहे देशद्रोही जाकिर नाइक सरीखे लोग भी हवाला के जरिये इन उपद्रवी तत्वों को फंडिंग कर रहे हैं। सूत्रों का यह भी दावा है कि आईएस (इस्लामिक स्टेट) समेत अन्य कट्टर इस्लामी संगठन भारत को अशांत करने में बहुत दिनों से सक्रिय रहे हैं और वर्तमान में वे और अधिक सक्रिय हो चुके हैं। इन संगठनों के स्लीपर सेल सीएए के खिलाफ मुस्लिम युवाओं को गुमराह कर भारत के टुकड़े करने पर आमादा बताये जाते हैं। सीएए-विरोध की यह ज्वाला झारखंड तक पहुंच गयी है। यहां अहम सवाल है कि देश के अलग-अलग हिस्सों में उपद्रव और हिंसा की आग फैलाने के पीछे कहीं इन्हीं तत्वों के हाथ तो नहीं?
फरेब के आधार पर हिंसा का खेल
जिन लोगों ने नागरिकता कानून के खिलाफ देश भर में आग लगायी या जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं, उन्हें 1990 के दशक में कश्मीर से हिन्दुओं के निष्कासन और उन पर हुए बर्बर अत्याचारों से कभी दु:ख नहीं हुआ। जो मुस्लिम नेता मुगल शासकों द्वारा हजारों मन्दिरों को तोड़कर उन पर बनायी गई मस्जिदों को देखकर कभी दु:खी नहीं हुए, जब पाकिस्तान में मजहब के आधार गैर-इस्लामियों पर जुल्म होते हैं तो उन्हें कुछ नहीं दिखता, वे आज इस कानून के विरोध में आग उगलकर पूरे मुस्लिम समाज को भड़का रहे हैं, क्योंकि उन्हें सीमा पार के दु:खी, पीड़ित अथवा शोषित हिन्दुओं, सिखों, बौद्धों, ईसाईयों या पारसियों को राहत देना मंजूर नहीं। अब तो कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी और साहित्यकार (शायर) भी इस कानून के खिलाफ घड़ियाली आंसू बहाने लगे हैं। कश्मीर में जब असंख्य हिन्दुओं का कत्लेआम कर उन्हें बेघर कर दिया गया तो इनके आंसू सूख गये थे, लेकिन पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में सताये गये अल्पसंख्यकों को भारत में नागरिकता देने की बात हो रही है तो ये साहित्यकार और शायर आंसुओं के कतरे को ह्यसमन्दरह्ण बता रहे हैं। बहाना यह बनाया जा रहा है कि यह कानून मुस्लिम अल्पसंख्यकों के खिलाफ है, लेकिन खिलाफ कैसे है, यह कोई नहीं बता पा रहा। झूठ और फरेब के आधार पर हिंसा व उपद्रव का घिनौना खेल दिल्ली और उत्तर प्रदेश से लेकर असम और बंगाल तक चल रहा है। दिल्ली और लखनऊ में एक महीने से अधिक समय से सार्वजनिक सड़कों को अवरुद्ध कर वहां धरना-प्रदर्शन का सिलसिला जारी है और इसमें शामिल लोग अभिव्यक्ति की आजादी की दुहाई देकर अदालती फैसलों को भी अंगूठा दिखा रहे हैं। इस प्रकार के आन्दोलनों से आम लोग परेशान हैं। हैदराबाद के सांसद असदउद्दीन ओबैसी और उनके भाई अकबरउद्दीन ओबैसी ने अब जिन्ना बनने की राह पकड़ ली है। नफरत और जिद्द की बुनियाद पर जिन्ना ने भारत का विभाजन करवाकर पाकिस्तान को जन्म दिया तो ओबैसी बंधु खुद को मुगलों का वंशज बताकर भारत को फिर से बांटने का सपना देख रहे हैं। वे भारत पर पहला हक आक्रमणकारी विदेशी शासकों का मानते हुए भारतीय कानून को मानने से इनकार करते हैं।
देश को सावधान रहने की जरूरत
गणतंत्र दिवस के इस पावन अवसर पर आज यह सोचने का समय है कि क्या इसी आजादी और गणतंत्र के लिए स्वतंत्रता संग्राम के सिपाहियों ने अपना सर्वस्व न्योछावर किया था और लाखों लोगों ने अपनी कुबार्नी दी थी? पंथनिरपेक्ष, समतामूलक और लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने के पीछे हमारे संविधान निमार्ताओं का क्या यही सपना था? कदापि नहीं! आज जरूरत इस बात की है कि हम सभी भारतवासी देश को तोड़ने वाली ताकतों और देशद्रोहियों से न सिर्फ सावधान रहें, बल्कि इस महान गणतंत्र को अक्षुण्ण बनाये रखने में पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ अपने दायित्व का भी निर्वाह करें। गणतंत्र दिवस के इस ऐतिहासिक अवसर को हम केवल आयोजनात्मक नहीं, बल्कि प्रयोजनात्मक स्वरूप देने पर जोर दें। आज हर भारतीय को अपने देश में शान्ति, सौहार्द और विकास के लिये संकल्पित होने की जरूरत है। अपने दायित्व एवं कर्तव्यों के पालन के प्रति सतत जागरुक रहकर ही हम अपने अधिकारों को निर्विघ्न रखने वाले गणतंत्र का पर्व सार्थक रूप में मना सकेंगे और तभी भारतीय लोकतंत्र और संविधान को बचाये रखने का हमारा संकल्प साकार हो सकेगा।
आप सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
वन्दे मारतम…!
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