दो-टूक : विरोध की आड़ में ये कैसी लंपटगिरी?

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विजय देव झा
जहां कहीं भी प्रदर्शन धरना चल रहा हो, डंफा डफली की आवाज आ रही हो समझ जाइये कि यह खास पंथ वाले लोगों के लम्पटों की ओर से प्रायोजित है। प्रदर्शन की भीड़ में आप इन्हें तुरंत पहचान ले सकते हैं। ये विशेष प्रकार का ध्वनि निकालते हैं और विशेष प्रकार की हरकतें करते हैं जो इनकी वेषभूषा से मैच करता है। मैंने भी जामिया मिल्लिया इस्लामिया के एजेकेएमआरसी से मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई की थी। हरेक तीन चार दिन पर कुछ लड़के जुलूस में शामिल होने का आमंत्रण ले कर आते थे। आज इजरायल के द्वारा फिलिस्तीन के मुसलमानों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ आक्रोश प्रदर्शन करना है। कल अमेरिका के विरुद्ध प्रदर्शन करना है। मैंने कभी यह नहीं सुना कि इन लोगों ने कश्मीर से भागने पर मजबूर हुए हिंदुओं के समर्थन में कोई जुलूस निकाला हो। तो हम लोग इधर पढ़ने आये हैं या जुलूस नारेबाजी करने। मैं कभी किसी जुलूस जलसा प्रदर्शन का हिस्सा नहीं रहा। एजेएमसीआरसी में मेरी शत-प्रतिशत उपस्थिति रही। मैं एजेकेएमआरसी जैसे बेहतर संस्थान में इस उम्मीद से आया था कि मैं यहां आकर कुछ पढ़ सकूं, सीख सकूँ। मैंने अपने इस संस्थान के पुस्तकालय और आधुनिक जनसंचार सामग्री और सुविधाओं का बेहतर इस्तेमाल किया, क्योंकि मेरे ऊपर एक बोझ था कि बाबूजी ने मेरे एडमिशन के लिए अपनी बचत पूंजी दे दी थी।
दरअसल, भारत के कुछ विश्वविद्यालयों पर एक खास किस्म का ठप्पा पड़ चुका है और उस विश्वविद्यालय के अधिकांश छात्र और संकाय किस विशेष प्रकार की राजनीतिक ध्वनि निकालेंगे यह प्रेडिक्टेबस होता है। ये दरअसल यह खास राजनीतिक विचारधाराओं के मर्सीनरीज होते हैं। वे आज भी उसी गलतफहमी में जी रहे हैं कि इन विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के लड़के-लड़कियों को उकसाकर उपद्रव पैदा करवा कर वह आसमान गिरा देंगें, हवा की गति और दिशा तक बदल देंगें। आपसे पत्ता तक न हिलेगा और आप…! अगर यह सरकार फासीवादी है तो आप लोग भी खुलेआम क्रिप्टो जेहादी हैं! समय बदल रहा है हिंदुस्तान के लोग अब कौए के पीछे नहीं दौड़ते हैं। प्रदर्शन के नाम पर हिंसा करिएगा तो पुलिस आपसे शास्त्रार्थ नहीं करेगी, वह आपको अपने शस्त्र से कूट देगी। विक्टिमहुड प्ले करने के लिए फोटो मत शेयर कीजिये और पुलिसिया अत्याचार वाली बासी कहानियां मत सुनाइये, क्योंकि आपलोगों ने भी मौलिक अधिकारों और लोकतंत्र को महतोजी का दलान बना रखा है।
जो ट्रेन और बसें जला रहे हैं, उन्हें याद रखना चाहिए कि आजादी से अब तक 72 साल बीत गए हैं। वह दूसरा जमाना था हिंसा का सीधा हिसाब-किताब था, अब वह डायरेक्ट वर्ब का जमाना नहीं रहा।
आप धर्मनिरपेक्षतावाद की आड़ में कम्युनलिज्म का खेल भले ही खेलें, लेकिन आमजन आज भी संकोच का अनुभव करता है कि लोग उसे दक्षिणपंथी कहें। आपने लोगों के इस संकोच को तोड़ने की अथक मेहनत की और कर रहे हैं।
आप एक के बाद एक नैरेटिव गढ़ रहे हैं और वह एक के बाद एक टूट रहे हैं। आपको धर्मनिरपेक्ष नहीं माना जाता है आपको हिन्दूविरोधी माना जाता है। चूंकि आप विरोध में पागल से चुके हैं आपको पता नहीं चल रहा है कि संघ और भाजपा के तथाकथित फासीवाद का आपका विरोध किस रास्ते चल पड़ा है। एक संप्रदाय विशेष का वोट आप तो उन्हें डरा-डरा कर लेते रहे कि हमें वोट करो वरना फलां पार्टी आ जाएगी। खा तो आप रहे हैं इस कौम को कुरान के साथ विज्ञान नहीं पढ़ने दिया। तालीम दी तो वो भी मजहबी, पुनर्जागरण और सुधार की जगह आप जिहाद समझाते रहे।
देश बंटवारे के समय आपने हिन्दुओं से उनका मत पूछा था कि वह कहां रहना चाहते हैं? जिस बाबा साहेब के संविधान की आप रोज दुहाई देते रहते हैं उन्होंने ट्रांसफर आॅफ पॉपुलेशन पर क्या कहा था?
आपके मुंह पर खान अब्दुल गफ्फार खान ने आरोप लगाया था कि आप लोग बंटवारे के नाम पर उन्हें भेड़िये के सामने धकेल रहे हैं। आजादी के करीब दो दशक बाद खान अब्दुल गफ्फार खान जब पाकिस्तान की नजरबंदी से छूटे तब वह भारत भ्रमण पर आए थे। दरभंगा के लहेरियासराय पोलो ग्राउंड में उनकी सभा हुई थी। उस बूढ़े ने टूटी-फूटी हिन्दी में अपनी व्यथा बतायी थी। आप देश में साम्यवाद तो स्थापित नहीं कर पाए, लेकिन देश को इजरायल जरूर बना देंगें। मस्त रहिये!

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और ये इनके निजी विचार हैं।)

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