रांची/पटना : लोकसभा चुनाव का बिगुल बज गया है। एक तरफ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गंठबंधन (राजग) जहां पिछले चुनाव में पूर्ण बहुमत के साथ देश की सत्ता पर काबिज हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ‘एकबार फिर मोदी सरकार’ के नारे को फलीभूत करने में लगा है तो दूसरी तरफ भाई-बहन, बुआ-बबुआ, पिता-पुत्र, घर-परिवार, दीदी-जीजा, नाते-रिश्तेदार आदि सबके सब ‘मोदी हटाओ अभियान’ में जी-जान से भिड़ा है। पर चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि 2014 के मोदी की लोकप्रियता में भले ही कुछ कमी आयी है, लेकिन केन्द्र में मिला-जुलाकर मोदी की ही सरकार बनने की उम्मीद है। मसलन, मोदी को पूरी तरह शिकस्त देना उनके विरोधियों के लिए फिलहाल आसान नहीं दिख रहा है। हां! वोटों के अन्तर में कमी होने की बात जरूर सामने आ रही है और इसका मुख्य कारण है सीटों की हेराफेरी और उम्मीदवारों का चयन। अभी हम सिर्फ झारखंड- बिहार की बात करें तो सीटों के तालमेल और उम्मीदवारों की घोषणा के बाद इन दोनों राज्यों में मोदी समर्थकों और मोदी विरोधियों की चुनावी बिसात बिछ गयी है। दोनों ओर से चुनावी दंगल के मोहरे उतार दिये गये हैं। हालांकि इन दोनों ही राज्यों में सीटों की हुई सौदेबाजी में राजग (एनडीए) ने अपनों को ही नाराज किया है। भाजपा ने अपने कई सांसदों व प्रबल दावेदारों के टिकट काट दिये हैं तो जदयू ने चुनावी महाभारत में कई बदनाम चेहरे उतार दिये हैं। इन सबका व्यापक विरोध शुरू हो चुका है और इन परिस्थितियों में यहां राजग की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। इन दोनों राज्यों में भाजपा, जदयू व लोजपा की सीटों में कमी आने का यह एक बड़ा कारण बन सकता है।
गिरिडीह व खूंटी में भाजपाई निराश
झारखंड के गिरिडीह और खूंटी लोकसभा सीट पर भाजपा ने वर्तमान सांसद क्रमश: रविन्द्र कुमार पांडेय और पूर्व केन्द्रीय मंत्री कड़िया मुंडा के टिकट काट दिये हैं। गिरिडीह से पांच बार चुनाव जीतने में सफल रहे रविन्द्र पांडेय को चुनावी दंगल से बाहर का रास्ता दिखाकर भाजपा ने यह सीट भाजपा ने आजसू की झोली में डाल दी तो खूंटी के सांसद व पूर्व केन्द्रीय मंत्री कड़िया मुंडा की जगह राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा को अपना उम्मीदवार घोषित किया है। भाजपा नेतृत्व के इस फैसले से पार्टी के कार्यकर्ता काफी निराश हैं।
रविन्द्र पांडेय के हौसले बुलंद
गिरिडीह से पांच बार सांसद रहे रविन्द्र पांडेय का टिकट भले ही भाजपा ने काट दिया है, लेकिन उनके हौसले अभी भी बुलंद हैं। वे हर हाल में लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे। उनका कहना है कि जब शहीद ही होना है तो घर में रहकर क्यों, मैदान में लड़कर शहीद होना पसन्द करेंगे। उन्होंने कहा- राजनीतिक प्राणी हूं। राजनीति में कभी सूर्यास्त नहीं होता। जहां फुलस्टॉप होता है, वहीं से नई सेन्टेन्स की शुरुआत होती है। श्री पांडेय ने अपने कार्यकर्ताओं से बोल्ड रहने की बात कही। हालांकि उन्होंने अभी तक इस बात का खुलासा नहीं किया है कि वह किस दल से चुनाव लड़ेंगे, लेकिन यह साफ कर चुके हैं कि लोकसभा का चुनाव वह जरूर लडेंगे।
कहीं महंगा न पड़े आजसू का दबाव
गिरिडीह से आजसू ने खबर लिखे जाने तक अपने उम्मीदवार के नाम की घोषणा नहीं की है, लेकिन झारखंड सरकार के मंत्री और रामगढ़ के आजसू विधायक चन्द्र प्रकाश चौधरी को उम्मीदवार बनाये जाने की चर्चा जोरों पर है। आजसू यहां भाजपा पर अपना दबाव बनाने में सफल रही है और इसका असर आने वाले विधानसभा चुनाव पर भी पड़ेगा। आजसू क यह दबाव कहीं आने वाले दिनों में भाजपा के लिए महंगा न पड़ जाय, इसकी चिन्ता भी पार्टी कार्यकर्ताओं को सताने लगी है। जानकारों की मानें तो भाजपा ने लोकसभा चुनाव में पहली बार आजसू के साथ इसलिए समझौता किया है, ताकि उसे विधानसभा चुनाव में आजसू का एकतरफा साथ मिले। लेकिन इसमें संदेह है। क्योंकि आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो पहले ही कह चुके हैं कि यह तालमेल सिर्फ लोकसभा चुनाव के लिए हुआ है। विधानसभा चुनाव में क्या होगा, इस पर बाद में बात होगी। सुदेश के इस बयान पर गौर करें तो बोकारो जिले की चंदनकियारी विधानसभा सीट आजसू अपने पूर्व विधायक उमाकांत रजक को फिर से अपना उम्मीदवार बनाने पर जोर देगी और अगर उसका दबाव यहां भी काम आया तो वर्तमान में राज्य सरकार के मंत्री और चंदनकियारी के विधायक अमर बाउरी का पत्ता कट सकता है, क्योंकि अमर बाउरी ने पिछला चुनाव झाविमो टिकट पर जीता था और बाद में वह भाजपा में शामिल हुए थे। इसलिए गिरिडीह में आजसू के दबाव में भाजपा का झुकना उसके लिए सुखद
नहीं माना जा सकता।
बिहार के सीतामढ़ी में विद्रोह
बिहार की सीतामढ़ी सीट पिछले चुनाव में राजग के घटक दल रहे रालोसपा के खाते में गयी थी और मोदी लहर में यहां से राम कुमार वर्मा विजयी हुए थे। लेकिन इस बार रालोसपा मोदी-विरोधी महागंठबंधन में शामिल है और महागंठबंधन ने यहां से शरद यादव के प्रत्याशी अर्जुन राय को अपना लालटेन थमा दिया है। जबकि भाजपा ने अपने कार्यकर्ताओं को पुन: निराश कर सीतामढ़ी सीट जदयू के खाते में डाल दी। जदयू ने जैसे ही यहां के एक चिकित्सक डा. बरुण कुमार को अपना प्रत्याशी घोषित किया, जदयू के कार्यकर्ता पटना से लेकर सीतामढ़ी तक विद्रोह पर उतर आये। पार्टी कार्यकर्ता एक बदनाम छवि के व्यक्ति को टिकट देने का कड़़ा विरोध जताने लगे। फिर क्या था, देखते ही देखते सीतामढ़ी में डा. बरुण के ठिकानेपर आयकर विभाग द्वारा की गयी छापामारी में उनके 11 बैंक लॉकर सहित पांच लाख रुपये जब्त किये जाने की खबर वाली अखबारी कतरनें सोशल मीडिया पर तैरने लगीं। एक सर्वेक्षण से यही पता चला है कि काफी मशक्कत के बाद भी यह सीट जीतना राजग (एनडीए) के लिए आसान नहीं होगा। अर्थात राजग पर भीतरघात का खतरा यहां भी मंडरा रहा है। इसी प्रकार भागलपुर से शाहनवाज हुसैन का पत्ता काटना और नवादा से गिरिराज सिंह को हटाकर उन्हें बेगुसराय भेजना भी भाजपा के लिए अच्छा नहीं रहा। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने बिहार की 30 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, जिनमें उसे 22 सीटों पर जीत मिली थी। परन्तु इसबार उसे जदयू के साथ 17-17 सीटों पर समझौता करना पड़ा है और जहां से विगत चुनाव में भाजपा प्रत्याशी जीते थे, उन सीटों पर इस चुनाव में राजग की मुश्किलें जरूर बढ़ सकती हैं। अब तो चुनावी नतीजे आने बाकी हैं, लेकिन कुल मिलाकर यह तो तय माना जा रहा है कि बिहार और झारखंड में राजग को पिछली बार की तुलना में उतनी कामयाबी नहीं मिल पायेगी, पर प्रधानमंत्री मोदी को पूरी तरह शिकस्त देना फिलहाल नामुमकिन दिख रहा है।





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