पंजाब में पुन: दहशतगर्दी का दौर शुरू हो चुका है। खालिस्तान के नाम पर एकबार फिर से आतंक की आहट सुनाई देने लगी है। अब वहां देशद्रोही हरकतों में शामिल कुछ लोग ‘हिन्दुस्तान मुदार्बाद’ और ‘खालिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगा रहे हैं और भारत माता के खिलाफ उनके आपत्तिजनक बोल भी सामने आ रहे हैं। लेकिन, पंजाब की वर्तमान सरकार खालिस्तानी अलगाववादियों की इन करतूतों को पूरी तरह नजरअंदाज कर रही है। दरअसल, भारत के टुकड़े कर खालिस्तान आंदोलन का बिगुल फूंका है अमृतपाल सिंह ने, जो कुछ ही माह पहले दुबई से भारत लौटा है। अमृतपाल सिंह ‘वारिस पंजाब दे’ गुट का मुखिया और खालिस्तान का कट्टर समर्थक बताया जाता है। हाल ही में अमृतपाल सिंह ने पंजाब में लोकतंत्र की धज्जियां उड़ा दी। वह अपने हजारों समर्थकों के साथ अमृतसर के अजनाला थाने में घुस गया। उसके समर्थकों के हाथों में धारदार तलवारें, राइफलें और मुंह पर भारत विरोधी नारे थे। कानून व्यवस्था को धत्ता बताते हुए अमृतपाल के समर्थकों ने पुलिस वालों को मारपीट कर उन्हें लहूलुहान कर दिया। अजनाला में पुलिस थाने पर हमला किया गया और बैरिकेड तोड़ डाले गए। यह सब उसने अपने साथी लवप्रीत उर्फ तूफान सिंह को छुड़ाने के लिए किया, जिसे पुलिस ने पूछताछ के लिए हिरासत में लिया था। दरअसल, लवप्रीत तूफान के खिलाफ अपहरण और मारपीट का मुकदमा दर्ज हुआ था। लेकिन, अमृतपाल सिंह की ताकत के आगे कानून-व्यवस्था ने घुटने टेक दिये और पुलिस लवप्रीत तूफान को छोड़ने पर विवश हुई। लेकिन, बड़ी बात यह है कि इस पूरे प्रकरण के पीछे खालिस्तान का समर्थन और भारत विरोध के स्वर सुनाई दिये। यह न सिर्फ पंजाब, बल्कि पूरे देश के लिए खतरे की घंटी है। दरअसल, खालिस्तान के नाम पर पंजाब की धरती पहले भी कई बार लहूलुहान हो चुकी है। यही वजह है कि पंजाब के पूर्व डीजीपी एस एस विर्क ने इस तरह के खुले प्रदर्शन को लोकतंत्र और किसी भी राज्य की कानून व्यवस्था के लिए खतरा बताया। उनका मानना है कि पंजाब ने आतंकवाद के काले दिन देखे हैं, इसलिए प्रशासन को इसे गंभीरता से लेना चाहिए। पूर्व डीजीपी ने यह भी सुनिश्चित करने पर जोर दिया कि पंजाब में काले दिनों को दोबारा वापस नहीं लौटने दिया जाय। दरअसल, अमृतपाल सिंह खालिस्तान का कट्टर समर्थक है और वह लंबे समय से इस आंदोलन से जुडा रहा है। उसने गृह मंत्री अमित शाह को भी धमकी दी थी। अमृतपाल सिंह के रवैये को देखते हुए इस बात की आशंका जताई जा रही है पंजाब में कहीं 1980 के दशक वाली स्थिति न बन जाय। क्योंकि, 1980 के दशक में भिंडरावाले की कहानी देश आज तक भूल नहीं पाया है। जबकि, अमृतपाल सिंह को भिंडरावाले-2 ही माना जा रहा है। मालूम हो कि खालिस्तान की मांग के तार पाकिस्तान से लेकर कनाडा तक जुडे हैं। इसलिए यह भारत के लिए एक गंभीर मसला है। इसलिए जरूरत इस बात की है कि तुष्टिकरण की राजनीति करने वाली पंजाब की आम आदमी पार्टी की सरकार पर भरोसा न कर केन्द्र सरकार इन सपोलों का फन कुचलने के लिए खुद तैयार रहे।

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