भारतीय संस्कृति में गुरु कभी आर्थिक रूप से समृद्ध नहीं रहा है। गुरु ने हमेशा समाज को आर्थिक रूप से मज़बूत बनने की शशक्त बद्धिक धरातल प्रदान किया है। गुरु का ज्ञान ही उसकी संपदा होती है और ज्ञान का कोई मूल्य नहीं होता है।
प्रधान मंत्री मोदी का भारत को विश्वगुरु बनाने का आह्वाहन बहुत सराहनीय है परंतु मुझे लगता है कि अभी तक विश्वगुरु के मायने सिर्फ़ आर्थिक दृष्टि से ही देखे जा रहे है। विश्वगुरु की अवधारणा के मूल में यहाँ की ज्ञान की परंपरा है और बिना उस परंपरा को उच्चतम शिखर पर पहुँचाए किसी भी विश्वगुरु की कल्पना बेईमानी है।
मुझे इस बात को कहने में जरा भी संकोच नहीं है कि हमारी आज की शिक्षा पद्धति और शिक्षा नीति दोनों में मूलभूत सुधार की आवश्यकता है और अगर किसी एक क्षेत्र में मोदी सरकार द्वारा कुछ भी कार्य नहीं किया गया है वह है शिक्षा में सुधार।
हमारी शिक्षा व्यवस्था अभी भी दास मानसिकता का विकास और प्रचार प्रसार करती है। मेरी इस सोच के कुछ मूल आयाम हैं।
पहला कारण है शिक्षा के पाठ्यक्रम150 साल पुरानी पद्धति से चल रही हैं। इन पाठ्यक्रमों ने देश में ग़ुलामी की मानसिकता को नस्लों की दिमाग़ में भर दिया है। इस मानसिकता की वजह से देश वासियों में आत्मा स्वाभिमान की कमी और अपनी सभ्यता और संस्कृति से दुराव पैदा होती है। यही पाठ्यक्रम और नीति है है जिस की वजह से आज तक सरकारी नौकरी की प्राथमिकता हमारे युवाओं में दिखती हैं। दुनिया के किसी भी विकसित देश में सरकारी नौकरी की इतनी आकर्षक कहीं नहीं है।
हम आज तक अपने शोधकर्ताओं में विदेशी शोध कार्यों का सहारा लेते देखते हैं। और तो और हमारे दर्शन शास्त्र और हमारे समाज शास्त्र के शोध भी पश्चिमी शोध कार्यों का ही सहारा लेते हैं और उन्हीं शोध कार्यों को उल्लेखित करते हैं। जिस देश का दर्शन शास्त्र दुनिया का सबसे पुराना और सबसे विशाल हो और किस देश में न्याय और मीमांसा की पद्धति कम से कम पाँच हज़ार साल से चली आ रही हो उस देश के बुद्धिजीवी दर्शन शास्त्र के लिये पश्चिम के शोध का सहारा लें तो ये तो हमार् शिक्षा नीति air शिक्षा की नियति दोनों की अधो स्थिति को दर्शाती है।
ज्यारह साल बीत गये इस सरकार को और दस पीढ़ियाँ और ज़ाया हो गयीं। अभी तक हमारी सरकार ने कुछ भी ऐसा काम नहीं किया है जिस से शिक्षा में मूलभूत सुधार हो।
अगर इस सरकार को राष्ट्रवादी विचारधारा को हमेशा जीत सुनिश्चित करना है तो इसे राष्ट्रवादी सोच को शिक्षा के पाठ्यक्रम में क्रम में लाना होगा। वरना हर चुनाव में कोई भी किसी भी झूठ के सहारे समाज को बाँटता रहेगा और सरकार अपने बचाव के लिए और अपनी सुरक्षा के लिए डरी और सहमी रहेगी। साल दर साल पीढ़ियाँ भारतवासी होते हुए भी भारतीय नहीं रहेंगे।




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