कार्यालय संवाददाता
बोकारो। दिशोम गुरु शिबू सोरेन नहीं रहे। उनका जाना झारखंड के लिए न केवल एक राजनीतिक युग का अवसान है, बल्कि जीते-जागते शहर और इस शहर में उनके चाहनेवालों के लिए कुठाराघात है, वज्रपात है। गुरुजी के जाने के बाद बोकारो के सेक्टर-1 स्थित उनका आवास अब सिर्फ एक इमारत बनकर रह गया है, जिसकी दीवारें झारखंड की राजनीति के उतार-चढ़ाव की मूक गवाह हैं। कभी जीवंत रहने वाला यह आवास, आज उदास खड़ा है, मानो अपने स्वामी की प्रतीक्षा कर रहा हो। झारखंड की राजनीति के पुरोधा दिशोम गुरु शिबू सोरेन का बोकारो से जुड़ाव महज़ एक शहर का रिश्ता नहीं था, बल्कि यह उनकी कर्मभूमि का हिस्सा था, जहां से कई आंदोलनों की नींव रखी गई और रणनीतियों को आकार दिया गया।
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सियासत का केंद्र था यह घर
बोकारो के सेक्टर-1 में स्थित उनका आवास केवल निवास स्थान नहीं, बल्कि झारखंड की राजनीति का धड़कता हुआ केंद्र था, जो वास्तव में उनकी कर्मभूमि रही। जब शिबू सोरेन कोयला मंत्री या मुख्यमंत्री के रूप में बोकारो आते, तो ऐसा प्रतीत होता था कि राज्य की सत्ता स्वयं इस्पातनगरी में गोलबंद हो गई हो। उनके आगमन से पूरा इलाका राजनेताओं, अधिकारियों और कार्यकर्ताओं की भीड़ से गुलजार हो उठता था।

… जब खिल उठता यह बैठकखाना
इस आवास का विशाल बैठकखाना उनके आने के साथ ही खिल उठता था। अपने दिवंगत बड़े पुत्र की तस्वीर के सामने लगी जालीदार कुर्सी पर गुरुजी जब बैठते थे, तो आसपास बड़े-बड़े अधिकारी भी उनसे मिलने के लिए कतार में खड़े होकर घंटों प्रतीक्षा में खड़े रहते थे। यह बैठकखाना उनकी राजनीति की सबसे बड़ी ताकत स्थानीयता और जनजीवन से उनका अटूट जुड़ाव था। उनका आवास कई ऐतिहासिक बैठकों का गवाह रहा, जहां झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय नेता, मंत्री, सांसद और विधायक एकत्रित होकर योजनाएं बनाते थे। वैसे लंबे समय से इस घर की दीवारें और दहलीजें गुरुजी का इंतजार कर रही थीं। लेकिन, अब इंतजार बेअंत हो गया। अब न तो इस बैठकखाने में गुरुजी के समय वाली वह हरियाली होगी और न ही वह गहमागहमी।
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सीएम हेमंत की जुड़ी हैं यादें
बता दें कि इसी आवास में उनके छोटे पुत्र और झारखंड के वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की शुरुआती पढ़ाई-लिखाई हुई। यहीं उन्होंने जनसेवा के संस्कारों को सीखा और नेतृत्व की परंपरा को आगे बढ़ाया। आज सेक्टर-1 स्थित यह आवास केवल एक इमारत नहीं, बल्कि एक राजनीतिक पाठशाला है, जो झारखंड आंदोलन और सत्ता के अनेक पड़ावों की गौरवशाली यादों को संजोए हुए है। यह स्थान आज भी झारखंड की राजनीतिक स्मृतियों में एक महत्वपूर्ण स्थल के रूप में अंकित है, जो उस महान व्यक्तित्व की कहानी कहता है, जिसने झारखंड को एक नई पहचान दी।

गुरुजी के हरित-प्रेम से सिंचित था यहां के बगीचे का जर्रा-जर्रा
गुरुजी का प्रकृति प्रेम और हरित-प्रेम भी अनूठा था। बोकारो स्थित आवासीय परिसर में वे स्वयं फूल-फलों की खुद देखभाल करते थे। न केवल देखभाल, बल्कि फावड़े और खुरपियों के साथ खुद ही खेतीबाड़ी भी किया करते थे। उस बगीचे की माटी और जर्रा-जर्रा उनके हरित-प्रेम से सिंचित था, जो अब उनके प्रेम रूपी पानी के अभाव में सदा के लिए बंजर हो गया।
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