• विजय कुमार झा –

क्या आपने कभी सोचा है कि जिस देवी के त्याग और समर्पण की गाथाएं सदियों से भारत की आत्मा में गूंजती रही हैं, जिनकी पूजा हर घर में होती है, उनका अपना ही जन्मस्थान दशकों तक उपेक्षित रहा? यह एक ऐसी विडंबना थी, जो हर आस्थावान हृदय को कचोटती थी। जब अयोध्या में प्रभु श्रीराम का भव्य मंदिर आकार ले रहा है, तो उनकी अर्धांगिनी माता सीता का उनके जन्मस्थान पर एक भव्य मंदिर न होना, एक प्रतीकात्मक ‘वनवास’ जैसा था। परंतु, शुक्रवार को यह ‘वनवास’ खत्म होने की उम्मीद की किरण लेकर आया। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जब सीतामढ़ी के पुनौरा धाम की पावन मिट्टी पर माता जानकी के भव्य मंदिर की आधारशिला रखी, तो यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं था। यह था एक युग का अंत और एक नए युग का आरंभ। यह था मिथिला की अस्मिता का पुनर्स्थापन, नारी शक्ति के गौरव की पुन: स्थापना।

शिलान्यास के बाद जनसभा को संबोधित करते हुए श्री शाह ने कहा भी, ‘आज का दिन सिर्फ एक मंदिर के निर्माण की शुरूआत नहीं है, बल्कि उस प्रतीकात्मक वनवास का भी अंत है, जो माता जानकी की जन्मस्थली ने वर्षों तक भोगा है। जब अयोध्या में प्रभु राम का भव्य मंदिर बन रहा है, तो स्वाभाविक रूप से हर राम भक्त के मन में यह सवाल उठता था कि माता सीता का क्या? आज हम गर्व के साथ कह सकते हैं कि अब दोनों मंदिर एक साथ मिलकर भारत की सांस्कृतिक चेतना को और भी मजबूत करेंगे।’ यह एक ऐसा क्षण था, जब हर कोई भावुक था। आंखों में नमी थी और होठों पर जय सियाराम का उद्घोष। यह कोई साधारण मंदिर नहीं होगा, बल्कि यह करोड़ों भारतीयों के उस विश्वास का प्रतीक होगा कि त्याग और तपस्या कभी व्यर्थ नहीं जाती। माता जानकी ने अपने जीवन में जो कष्ट सहे, जो बलिदान दिए, यह मंदिर उनके प्रति सच्ची श्रद्धा का एक स्थायी स्मारक होगा।

मिथिला का खोया हुआ गौरव वापस
यह मंदिर सिर्फ ईंटों और पत्थरों का ढांचा नहीं होगा, बल्कि यह मिथिला की समृद्ध संस्कृति, उसकी परंपराओं और उसके गौरव का जीवंत प्रतीक होगा। यह मंदिर मिथिला को फिर से उसी पहचान से जोड़ेगा, जो सदियों पहले सीता-जनक की भूमि के रूप में थी। यह एक ऐसा तीर्थस्थल बनेगा, जो न केवल श्रद्धालुओं को आकर्षित करेगा, बल्कि शोधकर्ताओं और कला प्रेमियों को भी मिथिला की समृद्ध विरासत को जानने का अवसर देगा।

अयोध्या और पुनौरा धाम: एक ही कहानी के दो अध्याय
अयोध्या का राम मंदिर मर्यादा पुरुषोत्तम राम के आदर्शों का प्रतीक है, तो पुनौरा धाम का जानकी मंदिर आदर्श नारी, त्याग और सहनशीलता की देवी माता सीता के सम्मान का प्रतीक होगा। ये दोनों मंदिर मिलकर ‘सियाराम’ के उस अटूट रिश्ते को दर्शाएंगे, जो भारत की संस्कृति का आधार है। अयोध्या में राम की वापसी हुई, और अब पुनौरा धाम में सीता की गरिमा की पुनर्स्थापना होगी। यही भारत की संस्कृति है – जहां राम और सीता का स्थान समान है।

प्रेरणास्रोत बनेगा मंदिर
यह मंदिर आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा स्रोत बनेगा। यह उन्हें सिखाएगा कि जीवन में त्याग और समर्पण का क्या महत्व होता है। यह सिखाएगा कि अपनी जड़ों से जुड़े रहना कितना जरूरी है। और सबसे बढ़कर, यह हमें यह याद दिलाएगा कि जहां-जहां आस्था है, वहां-वहां चमत्कार होते हैं। आज सीतामढ़ी के पुनौरा धाम में जो कुछ हुआ है, वह एक ऐसा ही चमत्कार है, जो दशकों की प्रतीक्षा के बाद संभव हुआ है। यह सिर्फ एक मंदिर नहीं, बल्कि एक युग का गौरव है।

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