- दीपक झा
बोकारो : ‘रोटी’… दो अक्षरों का यह शब्द पूरे जीवन का फलसफा है। दो वक्त की इस रोटी की खातिर ही इंसान तमाम अच्छे-बुरे काम करता है और ताउम्र भागमभाग में रहता है। तस्वीर में ध्वस्त दुकानें, उसके नीचे दफन हुई रोटी को भी बयां कर रही हैं। एक बार फिर दमन और तानाशाही का बुलडोजर अहंकार की गर्जना करते हुए आया और देखते ही देखते चंद घंटों में सैकड़ों परिवारों की आजीविका का सहारा नेस्तनाबूद कर चलता बना। आधिकारिक शब्दों में इसे ‘अतिक्रमण-उजाड़ अभियान’ कहा जा रहा है, लेकिन अब गरीब-गुरबों के लहजे में कहें, तो यह ‘गरीब उन्मूलन अभियान’ का ही दूसरा नाम है। मामला बोकारो इस्पात नगर के सिटी सेंटर का है। वह सिटी सेंटर, जिसका सेंटर लोगों की चहल-पहल और बाजार की जो रौनक है, वह ऐसी ही छोटी-छोटी दुकानों से है।
हां, माना कि अवैध तरीके से निर्माण करना या रहना ग़लत है, लेकिन आज डोजर और लाठियां लेकर बहादुरी दिखाने वाले अफसर उस वक्त कहां थे, जब उनके ही जैसे अफसरों ने पैसे लेकर खुद उन्हें अवैध रूप से बसाया था? हालांकि, इसमें यकीनन दुकानदारों का भी दोष है, लेकिन आज जब वे जमीन से लेकर बिजली वगैरह का किराया स्वयं वहन करने को तैयार हैं, तो फिर इस तरह उनकी रोजी-रोटी को उजाड़ देना कतई सही नहीं।
उन दुकानों में बैठा दुकानदार रोज सुबह जब अपनी दुकान खोलता है, तो उसके साथ उनकी उम्मीद का भी एक नया सवेरा होता है और जब रात को घर लौटता है, तो पूरे परिवार, बाल-बच्चे की आस लौटती है। आस रोटी की, खुशियों की। लेकिन, आज एक बार फिर वो खुशियां जमींदोज़ हो गईं। बच गई, तो बस चिंता- कि अब क्या होगा, कैसे आजीविका चलेगी, कैसे रोटी मिलेगी! टिन, बांस, बल्ली से तिनका-तिनका संजोकर खड़ी की गई दुकानों के मलबे में दुकानदारों और परिवार वालों के आंसू भी हैं, जो कब सूखेंगे, यह तय नहीं।
एसी चैंबर में बैठने वाले अफसरों को भला यह बात समझ क्यों नहीं आती कि इंसानों से ही रौनक है! जहां इंसान नहीं, वो जगह श्मशान से कम नहीं। इन दुकानों से ही चहल-पहल और बाजार की खुशहाली थी। चाय-नाश्ता, भूंजा, गाड़ी के नंबर प्लेट, गद्दा, सेकेंड हैंड किताब, सोफा आदि की दुकानों पर हर तबके लोगों की जरूरतें पूरी होती थीं। अफसरों की तरह हर कोई मॉल कल्चर का आदी नहीं… सच कहें तो उन बेचारों की हैसियत भी नहीं। वहां जिन बहादुर होमगार्ड जवानों ने ‘वीरता की पराकाष्ठा’ पार करते हुए उन कराहते दुकानदारों की पीड़ा पर लाठियों के प्रहार का नमक छिड़का, उन्हें चोटिल तक कर दिया, उनकी भी ज़रूरतें उन छोटी दुकानों से ही पूरी होती थीं। एक तो उनकी रोटी छीन ली, ऊपर से लाठियां मार-मारकर जिस बर्बरता और अमानवीयता का परिचय आज सिटी सेंटर की सड़कों पर दिखा, वह हृदय कचोट देने वाला है। अब एक बार फिर वहां नारकीय स्थिति है, रात में बल्बों की रोशनी और लोगों की चहलकदमी नहीं होगी, होगा तो घुप्प अंधेरा और निर्जन भयावह माहौल।
दरअसल, इस अभियान में एक सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारी मुख्य अगुवा माने जाते हैं। ‘गलत’ करने वालों पर क्रूरता और सख्ती ही जिनकी पहचान है। सिर पर टोपी, जेब में हाथ और सेना वाली कड़कदार व रौबदार आवाज़ के साथ होमगार्ड जवानों को सरजी ऐसे कमांड देते हैं, जैसे कि सरहद पर हों और सामने वाला पाकिस्तानी नुमाइंदा! उनके लिए गरीबों की आह, उनका कष्ट, उनकी पीड़ा कोई मायने नहीं रखती। और, यहां के होमगार्ड जवान तो क्रूरता और बर्बरता के ‘गुणों’ से पहले से ही लबरेज माने जाते रहे हैं। जब अस्पताल में मरीज की महिला परिजनों पर लाठियां बरसाने की ‘बहादुरी’ से वे नहीं चूकते तो ये दुकानदार भला किस खेत की मूली ठहरे!
खैर… अब मलबे में से बचे-खुचे सामान के रूप में अंतिम उम्मीद खोज-खोज निकालने में लगे हैं। अब भी समय है… प्रबंधन अगर विकास में जनभागीदारी चाहता है, तो उसे जनहित का ख्याल तो रखना ही होगा। साथ मिल-बैठकर बात करे, फुटपाथ दुकानों पर निर्णायक और अंतिम फैसला ले, ताकि जहां उनकी खोई रोजी-रोटी लौट सकेगी, वहीं प्रबंधन अपनी छवि को दमन का पर्याय बनने से भी बचा सकेगा।
तीन घंटे में 200 दुकानें ध्वस्त
मंगलवार को शहर के मुख्य व्यावसायिक केंद्र, सिटी सेंटर, सेक्टर-4 में अतिक्रमण के खिलाफ प्रबंधन ने जिला प्रशासन की मदद से महाअभियान छेड़ दिया। सुबह लगभग 10.00 बजे से 1.00 बजे तक, यानी लगभग तीन घंटे चली इस निर्णायक कार्रवाई ने वर्षों पुराने कथित अवैध कब्जों को जड़ से उखाड़ फेंका। इस अभियान के दौरान, एलआईसी मोड़ से लेकर मारुति शोरूम तक करीब एक किलोमीटर के दायरे में सड़क किनारे वर्षों से अवैध रूप से लगाई गई 200 दुकानों और गुमटियों पर बुलडोजर चलाकर उन्हें पूरी तरह ध्वस्त कर दिया गया। महज तीन घंटे के भीतर यह पूरा क्षेत्र अतिक्रमण मुक्त कर दिया गया, जिससे सिटी सेंटर में खलबली मच गई है।यह कार्रवाई बीएसएल के संपदा न्यायालय के आदेश पर की गई, जिसके लिए प्रबंधन ने जबरदस्त सुरक्षा व्यवस्था की थी। भारी सुरक्षा को देखते हुए कोई भी मुखर होकर विरोध नहीं कर सका, जिसने कोशिश की, उसे येन-केन-प्रकारेण शांत करा दिया गया। वहीं, अतिक्रमण के मुद्दे पर नेतागिरी करने वाले दुकानदारों के तथाकथित हितैषी भी नदारद दिखे, जिसे लेकर भी आक्रोश देखा जा रहा है।
- Varnan Live Report.





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