
दो-दिवसीय मां कामाख्या साधना शिविर भव्यता से संपन्न; गुरुदीक्षा लेकर हज़ारों लोग निखिल परिवार से जुड़े

- कामाख्या से विजय कुमार झा
ब्रह्मपुत्र की दिव्य लहरों के बीच, कामाख्या की पवित्र धरा… यहां स्थित भगवान महावीर स्थल, दिगंबर जैन पंचायत ने लगातार दो दिनों तक आध्यात्मिक चेतना के उस ‘चरम उत्कर्ष’ को जिया, जिसका इंतज़ार लाखों साधक करते हैं। अंतरराष्ट्रीय सिद्धाश्रम साधक परिवार (निखिल मंत्र विज्ञान) की ओर से आयोजित दो-दिवसीय ‘मां कामाख्या साधना शिविर’ रविवार को परम सफलता और भव्यता के साथ संपन्न हो गया। यह शिविर ज्ञान, शक्ति और उत्सव का ऐसा अद्भुत संगम था, जिसमें देश-विदेश से आए हज़ारों निखिल शिष्य साधक-साधिकाओं और धर्मानुरागियों ने गोते लगाए।
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परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंदजी महाराज (डा. नारायण दत्त श्रीमाली) एवं वंदनीया माता भगवती की दिव्यतम छत्रछाया में आयोजित इस शिविर में सद्गुरुदेव श्री नंदकिशोर श्रीमाली ने साधकों को मां कामाख्या साधना संपन्न कराई। लेकिन, उनके ओजपूर्ण प्रवचन ने न केवल ज्ञानरस की सरिता प्रवाहित की, बल्कि लाखों साधकों के मन में ‘तंत्र’ को लेकर बैठी सभी भ्रांतियों को जड़ से उखाड़ फेंका।
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अपने प्रवचन में सद्गुरुदेव ने साधकों को संबोधित करते हुए ‘तंत्र’ के बारे में स्पष्ट किया कि लोगों के मन में इसे लेकर कई तरह के भ्रम और डर होते हैं। उन्होंने दो टूक कहा कि “तंत्र कोई काला जादू या भयावह विद्या नहीं है।”
तो फिर तंत्र क्या है? सद्गुरुदेव ने समझाया-
“तंत्र तो वह विज्ञान है, वह शक्ति है जो हर मनुष्य के भीतर मौजूद है। यह वह शक्ति है जिसके द्वारा हम जीवन में शिव (जागरूकता) और शक्ति (ऊर्जा) के बीच संतुलन स्थापित करते हैं।”
उन्होंने आगे कहा कि आपके अंदर की यही तंत्र शक्ति, ‘दश महाविद्याओं’ के रूप में स्थापित होती है। ये महाविद्याएं कोई बाहर की देवियां नहीं हैं, बल्कि आपके ‘आंतरिक ऊर्जा चक्रों’ की अधिष्ठात्री शक्तियां हैं। चाहे वह मां काली हों, छिन्नमस्ता हों या धूमावती—इन सब का आह्वान इसीलिए किया जाता है, ताकि आपके अंदर के ‘तंत्र को जागृत’ किया जा सके। जब यह शक्ति जागृत होती है, तभी आप अपने जीवन की सभी बाधाओं, नकारात्मकताओं और समस्याओं का स्वयं ही शमन करने में सक्षम हो पाते हैं। सद्गुरुदेव ने साधकों को आश्वस्त किया कि “तंत्र-शक्ति का जागरण आपके जीवन को शक्ति का ‘वरदान’ देता है।”

कामाख्या में दादा गुरुदेव के चरणों की रज, यहां साधना करना परम सौभाग्य
कामाख्या में साधना करना परम सौभाग्य, दादा गुरुदेव के चरणों की रज है यहां!
सद्गुरुदेव ने कहा कि आज मां कामाख्या की इस दिव्य धरा पर बैठकर साधना करना अपने-आप में एक ‘परम सौभाग्य’ है, क्योंकि इस धरा की धूल में वर्षों पूर्व स्वयं दादा गुरुदेव निखिल जी (डॉ. श्रीमाली) के चरणों की रज मौजूद है, जिन्होंने इस तंत्र क्षेत्र में कई साधनाएं संपन्न की थीं।
दीक्षा… सद्गुरुदेव ने साधकों के जीवन में भरा ‘शक्ति’ का वरदान

प्रवचन के बाद सद्गुरुदेव ने हजारों साधकों को विशेष दीक्षाएं प्रदान कीं। उनके अंदर तंत्र शक्ति को स्थापित करने के लिए विशेष रूप से ‘दस महाविद्या दीक्षा’ प्रदान की गई। इसके अतिरिक्त, साधकों ने ‘भैरव दीक्षा’ और ‘उमानंद महामृत्युंजय महाकाल दीक्षा’ भी ग्रहण कीं, जो जीवन में सुरक्षा, शक्ति और मृत्यु पर विजय का ‘वरदान’ प्रदान करती हैं।
गुरु दीक्षा रस्म नहीं, ‘शक्ति का हस्तांतरण’
इस दिव्यतम वातावरण में भारी तादाद में धर्मानुरागियों ने सद्गुरुदेव से ‘गुरुदीक्षा’ लेकर स्वयं को निखिल परिवार से जोड़ा। सद्गुरुदेव ने समझाया कि “गुरु दीक्षा केवल एक ‘रस्म नहीं, शक्ति का हस्तांतरण है।’ गुरु ही वह माध्यम है जो शिष्य के अंदर की सोयी हुई शक्ति को जागृत करता है।”
उन्होंने समझाया- “दीक्षा लेकर आप केवल निखिल परिवार से नहीं जुड़ते, बल्कि आप शक्ति के मार्ग पर एक कदम आगे बढ़ाते हैं। हमारा उद्देश्य है कि आप अपने जीवन में शक्ति को स्थापित करें और एक ‘परिपूर्ण जीवन’ जिएं।”
दो दिनों तक बना रहा उत्सवपूर्ण वातावरण
इस दो-दिवसीय उत्सव के दौरान शिविर-स्थल और आसपास का पूरा इलाका मां कामाख्या, गुरुदेव और महादेव के जयघोषों से गुंजायमान बना रहा। कलाकार महेन्द्र मानकर और उनकी भजन मंडली द्वारा प्रस्तुत भजनों से यह अवसर और भी जीवंत बना रहा। सद्गुरुदेव श्री श्रीमाली ने शिविर के सफल आयोजन में लगे साधकों को निखिल परिवार की ओर से माला पहनाकर सम्मानित व प्रोत्साहित किया। गुरु-भक्ति, श्रद्धा व चेतनायुक्त वातावरण में शिविर का समापन मां जगदंबा की आरती, गुरु आरती और समर्पण स्तुति से हुआ। मंच संचालन मनोज भारद्वाज ने किया।
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