जो आपके भीतर राम को स्थापित कर दे, वही गुरु : श्रीमाली

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शिविर में प्रवचन देते गुरुदेव श्री नंदकिशोर श्रीमाली।

गुरु-पूर्णिमा के रंग में रंगी रामलला की नगरी अयोध्या
– हर्षोल्लास के साथ मना ‘राजयोग गुरु पूर्णिमा’ महोत्सव

  • अयोध्या से विजय कुमार झा

‘गुरु पूर्णिमा शिष्यों का महानतम पर्व है। यह पर्व गुरु की आत्मा का दिवस होता है, निरीक्षण का पर्व होता है, जब गुरु और शिष्य आत्मबद्ध होकर वार्तालाप करते हैं। गुरु और शिष्य की आत्मा के मिलन के साथ-साथ गुरु को उसके कर्तव्यों की याद दिलाने का पर्व है गुरु पूर्णिमा। शिष्यों में उत्साह भरने का पर्व है गुरु पूर्णिमा। ‘गु’ अर्थात अंधकार और ‘रु’ अर्थात प्रकाश। ‘रा’ अर्थात प्रकाश और ‘म’ अर्थात मन। जो हमारे मन में प्रकाश ले आये, उसे राम कहा गया है। जो आपके मन में राम को स्थापित कर दे, उसे गुरु कहा गया है।’

उक्त बातें गुरुदेव श्री नन्दकिशोर श्रीमाली ने यहां कारसेवकपुरम में निखिल मंत्र विज्ञान एवं सिद्धाश्रम साधक परिवार द्वारा आयोजित ‘राजयोग गुरु पूर्णिमा महोत्सव’ में देश-विदेश से हजारों की संख्या में आये शिष्यों व साधकों के बीच अपने प्रवचन में कही।उन्होंने अयोध्या की पावन धरती और भगवान श्रीराम की महिमा का उल्लेख करते हुए कहा कि हम सभी श्रीराम की नगरी में बैठे हैं, जहां बहुत सारी ब्रह्म-शक्तियों का विचरण हो रहा है। इसलिए अपने मन की तरंगों को इस पावन पर्व पर उन ब्रह्म शक्तियों से जोड़ देना है। जिसने राम का नाम लिया, उसका उसका कहना ही क्या? राम का नाम लेकर तो सरकार भी बन जाती है। जहां ‘राम’ आते हैं, वहां ‘राज’ आ ही जाता है। युगों-युगों से राम और रामराज्य को उच्चतम सोपान पर माना गया है। जहां हनुमान क्रियाशील हैं, जहां राम हैं, वहां विष्णु हैं।

शिविर में उपस्थित निखिल-शिष्य।

गुरुदेव श्री श्रीमाली ने कहा कि राम हर युग में अलग-अलग रूपों में मनुष्य के जीवन में प्रकाश स्थापित करने के लिए आते अवश्य हैं। कभी राम के रूप में, कभी कृष्ण के रूप में, कभी शंकराचार्य के रूप में तो कभी निखिल के रूप में। राम सनातन हैं। वे मनुष्य रूप में आते हैं, जिनका एक ही कार्य है- अज्ञान तिमिरांधस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया…! शिव सदैव राम के साथ रहते हैं। जो गुरु हैं, वही शिव हैं। शिव अपने शिष्यों के जीवन में दीक्षा के माध्यम से बीज बोते हैं। आप सबसे लड़ सकते हो, लेकिन मन के अंधकार से लड़ने के लिए बहुत बड़ी ताकत चाहिए। जब कोई मार्ग नहीं मिलता तो पूर्व जन्म के संचित कर्मों से आपके जीवन में गुरु आते हैं। हम गुरु से राजयोग प्राप्त करने आये हैं। राज का अर्थ है स्वयं पर शासन या नियंत्रण। जहां स्वयं पर शासन हो, न किसी के अधीन और न किसी को अधीन करना, स्वतंत्रता का भाव हो, वही राजयोग है। गुरु पूर्णिमा का अर्थ है आपके भीतर परमार्थ का उदय होना। जहां गुरु और शिष्य हैं, दोनों का मिलन है तो विजय निश्चित रूप से प्राप्त होती है। यदि गुरु ने उचित भूमि पर बीज बोया है अर्थात दीक्षा दी है तो वह पल्लवित होगा ही, लेकिन अगर क्रिया नहीं है तो वह संकल्प पल्लवित नहीं हो सकता। भक्ति का मूल भाव है शक्ति को प्राप्त करना। इसके लिए क्रिया भी आवश्यक है। ईश्वर हमें क्रिया से युक्त देखना चाहते हैं। जीवन में प्रकाश लाने का एक ही मार्ग है क्रियाशील रहना। तभी राजयोग अर्थात अपने मन का शासन आ सकता है। राजयोग का अर्थ है स्वयं पर नियंत्रण। प्रकाश की ओर बढ़ना ही आपका लक्ष्य होना चाहिए।

  • Varnan Live Report.
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