मैथिली देशभक्ति कविता- जय-जय-जय हे हिन्दुस्तान

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आब ने कत्तहु दू प्रधान अछि
रहल ने कत्तहु अलग विधान,
धुजा तिरंगा सभठां फहरय
आइ भारतक नवल विहान।।

भाल गर्व सं उच्च हमर अछि
चकमक केशर सभक लिलार।
अर्ध भाग जे भिन्न पड़ल अछि
हृदय लगाब’क करी जोगाड़।।

एक देश केर वासी हम सब
हमरा मध्य किए छल आरि।
दृढइच्छा कें सम्मुख अबितहि
स्वार्थ नीति सब गेलै हारि।।

धरती केर जे स्वर्ग कहाबय
छल आतंक लोहू सं लाल।
लुच्चा नेता मस्त भेल आ’
जन-मानस केर हाल बेहाल।।

नहि शिक्षा आ’ स्वास्थ्यक चिंता
नहि बाटक अछि कतहु ठेकान
धमकाबय रहि-रहि आतंकी
जीवित रहब कि जायत प्राण।।

अत्याचारक भेल पराभव
अनाचार केर करब विनाश
खुलल हवा मे सांस लेलक
सब जन मनमे जगलै आस।।

एतय शारदापीठ शंकरक
भरि रहलै अछि जनमन जोश
बाबा अमरनाथ केर महिमा
वैष्णो माता केर जय घोष।।

आकुल व्याकुल पाक भेल अछि
मनसूबा पर फिरलै पाइन।
बूझि लेलक काश्मीरक वासी
भेटल की? आ की भेल हानि??

जे अपना कें कहय नियंता
उतरि गेलै बहुरूपक खाल।
आदैत अपन सुधारि ली’अ
नाचि रहल छै ओकरो काल।।

आब ने हम काश्मीरक वासी
लद्दाखक नहि क्यो अछि आन।
आउ सकल एक संग ध्वजा ली
जय जय जय हे हिन्दुस्तान ।।

– शम्भुनाथ मिश्रा ‘आसी’

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