कुत्ते का दर्द और गधे की व्यथा

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कई दिनों से बच्चे जिद कर रहे थे कि उन्हें एक कुत्ता चाहिए| सरकार इस मांग को समझा बुझा कर दबा देती रही हैं। इस मुद्दे पर मैं सरकार के साथ हूँ और बच्चे विपक्ष में।

जब आस-पास के दोस्तों के घर भी कुत्ते आ गए तो हमारे बच्चे जो अब तक शांतिपूर्ण तरीकों से अपनी मांग रख रहे थे, अचानक आंदोलन के मूड में आ गए | 

मैं सोंच में पड़ गया कि जानवरों के विषय में मेरी क्या राय है? क्या जान जोखिम में डालकर पार्टी बदल लूँ और बच्चों के साथ हो लूँ ?

थोड़ा विचार करने पर पता चला कि मैं अकेला नहीं |

भारत में जानवरों को लेकर आम सहमति है ही नहीं| कुछ जानवरों को तो थोड़ा प्रेम और आदर मिला भी है, लेकिन कई ऐसे हैं जो अपनी उपयोगिता सिद्ध करने के बाद भी जन मानस में अपने लिए प्रतिष्ठा नहीं अर्जित कर पाये हैं| पशु-समाज के प्रति मानवों का ऐसा दोहरा बर्ताव देख दुख होता है। अब जैसे, गाय-भैंस को ही लीजिये, दोनों उपयोगी हैं। दूध देते हैं | गाय माँ है, उनको कोई मार नहीं सकता लेकिन उनके मृत शरीर की खाल से बने जूते और जैकेट पहन सकता है | बैल-सांढ यदि जलीकट्टू की लड़ाई में मारे गए तो उनको मोक्ष मिलेगा इसलिए वो जायज है| भैंस का क्योंकि दिमाग मोटा होता है इसलिए उसकी कोई इज़्ज़त नहीं|

शेर के भी समर्थक हैं । शेर बड़े-बच्चे दोनों में एक समान भय पैदा करता है, चिड़ियाघर में शेर हो तो टिकट से आमदनी भी हो जाती है सरकार की | बंदर भी उपयोगी है – मंदिरों के आस-पास लोगों कि थाल से प्रसाद छीन कर ईश्वर (विशेष कर हनुमानजी) में उनकी आस्था बढ़ाता है|

कुत्ता और गधा दो ऐसे जानवर हैं जिनका समस्त जीवन मानव सेवा में समर्पित है लेकिन सामाजिक स्वीकृति के मामले में गोमाता से दोनों ही काफ़ी पीछे रह गये |

गधा बेचारा तो बेवकूफ़ी का पर्याय बन कर रह गया है | बचपन में पिताजी ने एक किस्सा सुनाया| एक बार भारतीय सेना को इंग्लैंड (UK) से तीन लाख रुपये प्रति-गधा देकर कुछ गधे खरीदने पड़े, क्योंकि देसी गधों से पैदा किया हुआ ख़च्चर कमजोर पाया गया और सेना कि जरूरतों को पूरा नहीं कर पा रहा था।

‘भारत में गधों का ऐसा कहाँ अकाल पड़ा है? चार पैर वाले तो हैं ही, दोपाये गधों से भी भारत भूमि पटी पड़ी है। फिर क्या आवश्यकता थी भारत सरकार को विदेशमुद्रा व्यर्थ करने की ?’

मामला देश की सुरक्षा का था लेकिन तब भी माताजी चुटकी लेने से बाज नहीं आयीं। बोलीं, ‘भारत में गधों का ऐसा कहाँ अकाल पड़ा है? चार पैर वाले तो हैं ही, दोपाये गधों से भी भारत भूमि पटी पड़ी है। फिर क्या आवश्यकता थी भारत सरकार को विदेशमुद्रा व्यर्थ करने की?’

भारतीय सेना के RVC (Remount and Veterinary Corps) बल में कई हजार जानवर हैं| हिसार, बाबूगढ़, हेमपुर और सहारनपुर की इकाइयाँ फ़ौज को प्रशिक्षित घोड़े, ख़च्चर और कुत्ते मुहैया कराती हैं| ज़रूरत होने पर गधे-घोड़े विदेशों से आयात भी करती रही है |

हमारे गाँव के एक सज्जन, सेना के इसी RVC यूनिट में थे |

मैंने बचपन में पूछा, ‘आप फ़ौज में क्या करते हैं ?’

उन्होने गर्व से कहा, ‘AT ड्राईवर हूँ |’

मैं जबर्दस्त प्रभावित हुआ। मैंने सोचा कि  AT भी शक्तिमान ट्रक जैसा कोई चमत्कारिक वाहन है | पिताजी के अनुसार शक्तिमान ट्रक पेट्रोल, डीज़ल और ज़रूरत पड़ने पर ब्रांडी से भी चल जाया करता था| मैंने कभी इसकी पुष्टि नहीं की |

बाद में पता चला कि मेरे ग्रामीण भाई जो AT वाहन चलाते हैं वो तो शक्तिमान से भी ज़्यादा चमत्कारिक है | वो पेट्रोल- डीज़ल नहीं, बल्कि घास-फूस पर दौड़ता है, रस्से नाम के remote से चलता है और बोलचाल में ख़च्चर कहलाता है | (AT driver = animal transport driver)। मैंने भी बड़े होकर AT ड्राइविंग की भारत में और यहाँ अमेरिका में भी |

2 साल पहले, खबर आई कि पाकिस्तान चीन को अगले तीन सालों में 80,000 गधे निर्यात करने वाला है | खैबर-पखतुनवा सूबे से | पाकिस्तान सरकार का यह निर्णय आर्थिक भी था और कूटनीतिक भी |

माताजी ने कहा, ‘ये ठीक किया है पाकिस्तान ने | उनके यहाँ थोड़े ज्यादा गधे हो भी गए हैं |’

माताजी ने कहा, ‘ये ठीक किया है पाकिस्तान ने | उनके यहाँ थोड़े ज्यादा गधे हो भी गए हैं’ | अब ऐसा उन्होने आँकड़ों के आधार पर कहा या सहज चुटकी ली यह कहना कठिन है |

कुत्ते तक आते-आते मामला बहुत पेचीदा हो जाता है| कुत्ता वफादार होता है, और अपने स्वामी को बेपनाह प्यार करता है | वैज्ञानिक कहते हैं कि मनुष्यों के साथ रहने वाले भेड़िये की कुछ नस्लें क्रमिकविकास (evolution) से कुत्ते में तबदील हो गईं | उसमें वो सारे गुण आ गए जो उसे मानवों के उपयोगी बनाती थीं| कुत्ता चौकन्ना और फुरतीला था, खेतों और मवेशियों की रखवाली करने लगा | भोली सूरत बना कर घर के लोगों का दिल जीतने लगा | अब जिस जीव को प्रकृति ने बनाया ही मनुष्य के साथ रहने को उसे घर में आने से रोकना मुझे पाप जैसा लगा | फिर शिव के अवतार, महाकाल भैरव की सवारी भी श्वान(कुत्ता) है | संस्कृत में भी कहा गया कि विद्यार्थी में कुछ लक्षण कुत्ते जैसे होने चाहियें,

“अल्पहारी, गृहत्यागी, श्वाननिद्रा तथैव च, काक चेष्टा, बकोध्यानम, विद्यार्थी इति पञ्चलक्षणम” 

अब कुत्ते के समर्थन में सारे वैज्ञानिक और धार्मिक तथ्य इकट्ठा कर मैंने कुत्ता घर में लाने कि सिफ़ारिश सरकार से लगभग कर ही डाली थी | सोंचा कि चलो ये गुड न्यूज़ माताजी को भी दे दूँ ।

मैंने कहा, ‘मम्मी सोचा है कि बच्चों के लिए एक कुत्ता ले ही देते हैं | बहुत सालों से जिद कर रहे हैं |’

माताजी बोलीं, ‘तुम अब बड़े और समझदार हो | ठीक ही निर्णय किए होगे | लेकिन मेरे विचार से पढ़ने-लिखने वाले बच्चों के घर कुत्ता नहीं रहे तो ही ठीक है |’

मुझे लगा कि सारे रिसर्च पर ये एक झटके में पानी डाल रही हैं | यदि रक्षा मंत्रालय इनकी बात सुनता तो सत्तर के दशक में इंग्लैंड से गधे नहीं आ पाते | मैंने तुरंत अपने पौराणिक रिसर्च का हवाला दिया, भगवान काल भैरव और दत्तात्रेय का भी नाम लिया|

माँ ने कहा, बेटा थोड़ा बहुत धर्म का ज्ञान हमको भी है|

‘रामचरितमानस में तुलसीदास ने कहा है,

 “काटे-चाटे श्वान के दोहूँ भांति विपरीत” ।

कुत्ते का चाटना और काटना दोनों बुरा है | दूर रहना उत्तम है |

मैं निरुत्तर हो गया | मेरी दुविधा खत्म होते-होते मुझे फिर से त्रिशंकु कर गई | मैंने भी ऐसे में रामचरितमानस का सहारा लिया,‘ होइन्हे वही जो राम रचि राखा’

जिस फाइल में कुत्ते के अनुषंशा की अर्जी थी उसे कुछ दिनों के लिए दबा दिया है|

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  1. Sudeep, your writing reminds me of a long gone era of meaningful “कटाक्ष” (satire)… keep up your writing. It’s very refreshing to see this from new age writers like you… Sanjeev Roy

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