विजय कुमार झा
बोकारो। ‘प्रधानमंत्री पद पर प्रतिष्ठित होने से पहले नरेंद्र मोदी पुरी में भगवान जगन्नाथ का दर्शन करने पहुंचे थे। मेरे पास आए और 45 मिनट बैठे। ऐसा लग रहा था जैसे बाल गोपाल अपनी चंचलता को छोड़कर बैठे हों। दो ही वाक्य उन्होंने मुझसे कहा- ऐसा आशीर्वाद दीजिए कि मैं कम से कम भूल कर सकूं। मैंने कहा- जब आशीर्वाद ही चाहिए तो ऐसा क्यों नहीं कि भूल बिल्कुल भी ना हो, तो उन्होंने कहा, मैं मनुष्य हूं और मनुष्य से भूल होती ही है। जितनी देर वह मेरे पास बैठे थे, मैंने उन्हें शासन कैसे चले, इसके बारे में बताया था। मैं संकेत करता हूं कि यदि मोदीजी ने हम लोगों से संपर्क फिर किया होता तो देश आज कुछ और होता। अब होता क्या है कि जो भी उस पद पर पहुंच जाता है, वह स्वयं को धार्मिक गुरु भी समझने लगता है। खुद माहिर राजनेता कहलाने लग जाता है और पार्टी के उन वरिष्ठ नेताओं को भी किनारे कर देता है, जिन्होंने पार्टी को जन्म दिया और उसके लिए अपना सर्वस्व न्योछावर किया हो।’ यह कहना है कि गोवर्द्धन पुरी पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वतीजी का। बोकारो में जनसंवाद कार्यक्रम के दौरान शुक्रवार को एक बातचीत में उन्होंने ये बातें कही। उन्होंने कहा, देश में कोई भी राजनीतिक दल ऐसा नहीं है, जो भारत की मेधाशक्ति, रक्षाशक्ति, वाणिज्य-शक्ति और श्रमशक्ति का उपयोग भारत के हित में कर सके।
देश में चल रहा उन्माद तंत्र, हम तोड़ने में भी सक्षम
एक सवाल के जवाब में शंकराचार्य ने कहा कि देश में शोषण और उन्माद की प्रक्रिया चल रही है। एक कदम कोई अच्छा बढ़ाने पर दूसरा कदम घातक सिद्ध हो जाता है। धर्म के बिना राजनीति संभव नहीं। धर्म की सीमा के बाहर तो राजनीति की कल्पना ही नहीं की जा सकती। वह तो उन्माद तंत्र है। उन्होंने कहा कि भारत में हिंदुत्व खतरे में था, है और राजनेताओं की और अदूरदर्शिता के कारण खतरे में होते रहेंगे। इसलिए कोई भी राजनीतिक दल लोकतंत्र की रक्षा में सफल नहीं है। ऐसी परिस्थिति में हमलोगों से परामर्श लेकर देश को जो दिशा देनी चाहिए, उसे लेकर राजनीतिक दलों को आगे आना चाहिए। कदाचित, अगर वे ऐसा न करेंगे तो हमारी परंपरा है कि हम जैसा शासन चाहते हैं, वैसा बना देते हैं। उन्माद तंत्र हम अधिक समय तक नहीं रहने देंगे। हम लुंज-पुंज नहीं रह सकते। हम राष्ट्र या विश्व की उपेक्षा नहीं कर सकते। राजनीति के साथ-साथ व्यास पीठ और गुरु गद्दी में राजनीति के कारण जो विकृतियां आईं है, दोनों का शोधन करना, दोनों में सैद्धांतिक सामंजस्य स्थापित करके भारत को अपेक्षित शासन देना हमारा दायित्व होता है। उसके निर्वाह में हम संकोच नहीं करेंगे। देवर्षि नारद ने हिरण्यकश्यप के शासन, वशिष्ठ ने रावण के शासनतंत्र, व्यासजी ने कंस और दुर्योधन के शासनतंत्र और शंकराचार्य ने बौद्धों के शासनतंत्र के उच्छेद का मार्ग प्रशस्त कर दिया था। उन्होंने कहा कि सत्ता लोलुपता और अदूरदर्शिता की चपेट से राजनेता और राजनीति को मुक्त करने का प्रकल्प होना चाहिए। शिक्षा पद्धति में नीति और अध्यात्म का सन्निवेश होना चाहिए। साथ ही, हमारे शासन तंत्र से हमारे मंदिर और मठ अलग होने चाहिए।
राम मंदिर का मार्ग प्रशस्त नहीं, धूमिल हुआ
उन्होंने कहा कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त नहीं, धूमिल हुआ है। मथुरा काशी को लेकर हम बोले, तो गए और ना बोले, तो भी गए। जब 5 एकड़ भूमि उन्हें दे दी तो मथुरा और काशी के लिए वही प्रक्रिया क्रियान्वित होगी, जो अयोध्या में हुई। इस प्रकार भगवान राम की जन्मभूमि, तीन- पाकिस्तान, मक्का और आतंकवाद की भूमि बन जाएगी। एनआरसी को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में कहा कि विश्व स्तर पर ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि कौन सा व्यक्ति किस देश से पलायन कर रहा है और कहां बसाया जाना चाहिए। एक अन्य सवाल के जवाब में जगद्गुरु ने कहा कि शासन तंत्र के उन्माद, उनके गुप्त या प्रकट समर्थन, उनकी सत्ता लोलुपता और अदूरदर्शिता के कारण धर्मांतरण होता है। हिंदुओं का सनातन वैदिक जो शास्त्र सम्मत सिद्धांत है, वह दार्शनिक, व्यावहारिक और वैज्ञानिक, तीनों धरातल पर सर्वोत्कृष्ट है। पूरा विश्व इस बात को जानता, मानता और समझता है। इसके पूर्व जनसंवाद में शंकराचार्य ने बड़ी संख्या में उपस्थित नगरवासियों का मार्गदर्शन किया। उन्हें धर्म, संस्कृति आदि से जुड़ने का संदेश दिया।
– Varnan Live Report.