- मोद प्रकाश
भगवान श्रीराम को फिर से आस है कि उनका मंदिर बनेगा, जहां उनका अवतरण हुआ था। पर माता सीता अभी भी वनवास ही झेल रही हैं। उनकी जन्मस्थली से लेकर बाल्यकाल और युवाकाल तक के सारे स्थल यूं ही अनदेखी और उपेक्षा के शिकार हैं। लोकतंत्र भी अजीब है, बस शोर का ही जोर है और शांतिपूर्ण मुद्दे विचार योग्य भी नहीं हैं। किसी ने खूब कहा है- जुबां के जोर पे हंगामा से क्या हासिल वतन में एक दिल होता और जो आशना होता। (आशना मतलब प्रेमी और यहां इसका तात्पर्य देशप्रेमी से है।) सीता माता आज के बिहार के सीतामढ़ी जिला में भूमि से जन्मी। भीषण अकाल से जूझ रहे मिथिला को राहत दिलाने के लिए राजा जनक ने यज्ञ किया और उसी क्रम में धरती पर हल चलाया। हल से धरती में बने निशान से एक मटकी में बालिका सीता मिलीं। सीता जन्मभूमि बिहार के सीतामढ़ी जिले में है। वहां कोई भव्य मंदिर नहीं है और वहां पर्यटक एवं श्रद्धालुओं को जाने और अपनी श्रद्धा अनुसार पूजा-अर्चना और भ्रमण करने में खासी कठिनाई होती है। पास में ही सीताकुंड है, जो सीता माता का स्नान-स्थल है। यहां से लगभग 40 किलोमीटर पर जनकपुर (नेपाल) है, जो राजा जनक की राजधानी थी और जहां सीता माता के बचपन के सभी जगह हैं। जानकी मंदिर, राम-जानकी मंदिर, जानकी विवाह मंडप, धनुष सागर इत्यादि कई स्थान हैं, जो पूरी दुनिया के 100 करोड़ हिन्दुओं के लिए मूल श्रद्धा के स्थान हैं। आप तुलना करें जेरुसलेम की प्रसिद्धि का और रामजन्म भूमि तथा सीताजन्म भूमि की प्रसिद्धि का।
दु:खद बात है कि राम जन्मभूमि के बारे में लोग जानते हैं इसलिए नहीं कि यह राजा राम की जन्मस्थली है और करोड़ों लोगों की आस्था का प्रतीक है, बल्कि इसलिए कि वहां पर किसी मंदिर और मस्जिद का विवाद है और हिन्दू और मुस्लिम लड़ाई कर रहे हैं। सीता जन्मस्थली के बारे में तो शायद ही कोई जानता है। माता मैरी के बारे में दुनिया के लोगों की जागरुकता और माता सीता के बारे में लोगों की जागरुकता की तुलना करें, स्थिति और खराब है। जेरूसलेम की हर गली, हर नुक्कड़ और हर ईंट का एक इतिहास है, जो ईसाई और यहूदी समाज ने अथक परिश्रम, अनुसंधान तथा संसाधन लगाकर संरक्षित किया है। उन्होंने पौराणिक कथाओं को ऐतिहासिक तथ्यों से जिस तरह जोड़ा है, वह सराहनीय है। आप अमेजॉन प्राइम पर एक प्रोग्राम देखें – ‘दि एक्जोडल रिवील्ड’। इस प्रोग्राम ने मूसा के मिस्र से इजराइल जाने की जो कथा है, उसे इतने सटीक तरीके से पौराणिक कथा से ऐतिहासिक कथा भूमि पर लाया है कि इसके बाद कोई नहीं कह सकता है कि मूसा को समुद्र ने रास्ता नहीं दिया था। पौराणिक कथानक, वर्तमान के साक्ष्य और वैज्ञानिक अन्वेषण ने इस पौराणिक कथा को इतिहास बना दिया। हे हिन्दुओं! आज पूरी दुनिया में राम अभी भी मिथक हैं और हमारी आस्था के स्वरूप हैं और इसी वजह से हमारी आस्था पर भी पूरी दुनिया हंस लेती है।
हे मोदी जी! आप तो पूरी दुनिया के हिन्दुओं की आस्था का केन्द्र भारत को मानते हैं। इस आस्था के प्रमाण हैं, आस्था की किताबें हैं, आस्था के स्थल हैं, जरूरत है विज्ञान की, जो अन्वेषण करे और इन साक्ष्यों को कहानियों और किंवदन्तियों से जोड़कर एक इतिहास बनाये। जरूरत है इस आस्था को एक प्रामाणिक धरातल प्रदान करने की। हे नीतीश जी! आपने तो बिहार के गौरव को बढ़ाने की शपथ ली है और आपने नालंदा विश्वविद्यालय की फिर से स्थापना की है, जिससे पुराने नालंदा का गौरव और ज्ञान फिर से वापस आ सके। बिहार का गौरव मिथिला के गौरव से है और इस गौरव के लिए कुछ प्रशासनिक कदम भी उठाने की जरूरत है। क्या जरूरी है कि जब तक सीता जन्मभूमि से कोई विवाद नहीं खड़ा हो, वहां कुछ करने की जरूरत नहीं है? कम से कम एक भव्य मंदिर का निर्माण तो होना चाहिए, जहां पूरी दुनिया के लोग आ सकें और अपनी श्रद्धा को अर्पित कर सकें। हमारे जैसे रामभक्त, जिन्हें दुनियाभर में लोगों से सुनना पड़ता है कि 100 करोड़ लोगों की आस्था वाले इस स्थान पर मंदिर बहुत साधारण है। ऐसी धर्मस्थली या इससे भी बेहतर तो विदेशों में छोटे-छोटे पैमाने पर होते हैं। आपका यह मंदिर पर्यटन को बढ़ावा देगा, राजकीय कोष में पैसा आएगा और इन पिछड़े इलाकों का सीता मइया की कृपा से उद्धार होगा। इसके साथ ही आप पटना, मिथिला और नालंदा विश्वविद्यालय में रामायण अनुसंधान पीठ स्थापित करें। फैजाबाद, अयोध्या, प्रयाग विश्वविद्यालय में भी ऐसे पीठ स्थापित होने चाहिए और उनको इन कथाओं, स्थानों, ऐतिहासिक घटनाओं और पौराणिक मान्यताओं पर अनुसंधान करना चाहिए।
बहरहाल, जब तक रामलला को सुप्रीम कोर्ट छोड़ते नहीं हैं, तब तक सीता माता की भव्यता को साकार करें हम। राजनीति तो आपकी इससे भी सफल हो जाएगी और भगवान राम इस बात से ज्यादा खुश होंगे कि सदियों के वनवास के बाद उनकी सीते को सही सम्मान इस देश के लोगों ने दिया। मोदीजी! सीता माता फिर से वनवास में किसी हनुमान की प्रतीक्षा कर रही हैं और आज के भारत में मुझे कोई ऐसा नहीं दिखता है, जिसमें हनुमान बनने, कठिन कार्य को ठानकर उसको करने की क्षमता रखता हो। नीतीश जी! आप भी सुग्रीव की तरह महावीर जी की आस्था में साथ हो जाएं और माता-सीता के वनवास को खत्म करने का कार्यक्रम शुरू कर डालें।
जय सीताराम!
(लेखक अप्रवासी भारतीय तथा ‘मिथिला वर्णन’ के विशेष प्रतिनिधि हैं।)