लड़के का प्यार बाप के प्यार से बड़ा नहीं हो सकता है। बाप की इज्जत सरेआम मीडिया में उछालना गलत है। जब जवान होने तक सारा निर्णय पिता के परामर्श से लिया जाता है तो जीवन का इतना बड़ा निर्णय अकेले लेना कितना उचित है। क्या जीवन-साथी चुनने में मां-बाप से पूछने की कोई जरूरत नही? यदि आपका प्यार आपको मां-बाप से अलग करता हो तो उस प्यार की कोई अहमियत नहीं। बरेली से भारतीय जनता पार्टी के विधायक राजेश मिश्रा की बेटी साक्षी मिश्रा और उसके तथाकथित प्रेमी अजितेश के प्रेम का मामला पूरे हफ्ते सुर्खियों में रहा। कल तक जो बेटी बाप की जमकर धुलाई कर रही थी, आज उसे अपने किये पर पछतावा है और उसी बाप से वह क्षमा मांग रही है।
अब बाप भला बाप होता है। वो क्षमा कर भी दे, लेकिन इस अपरिपक्व लड़की के कारण एक घर को जो झेलना पड़ा उसका भुगतान कौन करेगा? अब वो लोग क्या कहेंगे जो साक्षी के समर्थन में जमकर खड़े थे? साक्षी भी अपनी ही बेटी है। बात उसके समर्थन करने की या न करने की नही है। लेकिन, इस घटना ने एक सबक तो भारत की लड़कियों को जरूर सिखा दिया होगा कि शादी जैसे अतिसंवेदनशील मामले में मां-बाप से सलाह लेने की क्या अहमियत होती है।

18 वर्ष की उम्र में संवैधानिक रूप से बालिग हो जाने का यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि आपमें समझ और निर्णय क्षमता विकसित हो गयी हो। केवल भावनाओं में आकर किसी के इतिहास की बिना पड़ताल किये उसकी जाल में फंस जाना नादानी ही तो है। इस घटना ने कुछ मीडिया संस्थानों की लोभी प्रवृत्ति और देश की बेटियों की अपरिपक्व सोच को भी उजागर किया है। कुल मिलाकर यही कहना है कि अब भी वक्त है, बेटियां संभल जाएं। इस घटना से सबक सीख लें तो ही कुछ हो सकता है, वरना जय-जय सियाराम!
खुद छोटा होता जाता है वह बड़ा तभी कर पाता है
अपनें पैरों पर बेटी को वह खड़ा तभी कर पाता है।
निज पौधों के सिंचन हेतु वह माली होता जाता है
पौधों को बड़ा बनाने में वह खाली होता जाता है।
सोचो उस क्षण क्या होगा जब वे माली बनना बंद करें
बच्चों के हिस्से आती हो, वो थाली भरना बंद करें।
जब बाप सूर्य बन तपता है, बेटी पलती अरुणाई में
क्यों जाती है निज सुख खातिर वो जुगनू की परछाई में।
क्यों प्रेम नहीं पा पाती है निज सागर की गहराई में
है लानत हर बेटी को जो बह जाती है तरुणाई में।।
- Varnan Live.