ये आजादी नहीं, मनमानी है

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– कुंवर गौरव सिंह
आजादी, एक ऐसा शब्द, जिसके मायने को शायद आज की युवा पीढ़ी कुछ और समझ बैठी है। आजादी और मनमानी में एक बहुत ही सूक्ष्म अंतर की लकीर है, जो सन् 1947 के युवकों को तो बहुत साफ नजर आती थी, पर 21वीं सदी के युवाओं के लिए यह धूमिल सी हो गयी है। आज की लड़ाई आजादी की नहीं, मनमानी करने की हो गयी है। इस बात को थोड़ा विस्तृत करके समझने का प्रयास करते हैं-


कश्मीर पर लागू किये गए कानून 370 और 35-A का मकसद था उस वक़्त के युवाओं को कश्मीर में जाकर मनमानी न करने देना, पर समय के साथ कश्मीर की युवाशक्ति भटकने लग गयी और ये धाराएं उनके लिए कश्मीर में मनमानी का साधन बन गया। हालात इतने बिगड़े कि न जानें कितने युद्ध भारत को लड़ने पड़े कश्मीर को बचाने के लिए। एक नजरिये से देखें तो ऐसा लगता है, मानो भारत माता अपने बिगड़ैल बच्चे को दुनिया की बुरी शक्तियों से बचाने की भरपूर प्रयास में थी और वहीं कश्मीर एक नवयुवक की भांति खुद को भारतीय मानना ही भूल गए। मनमानी की सारी हदें आजादी के नाम पर वे पार करने लगे। समय आ चुका था एक ठोस कदम उठाए जाने का और वर्तमान भारतीय सरकार को ऐसे कदम उठाने के लिए हार्दिक बधाई। कश्मीरी अवाम को यह समझना होगा कि जिसे आपको संरक्षण देने का अधिकार है, उसे आपको संयमित रखने का अधिकार भी है। आजादी का अर्थ असयंमित और अनुशासनहीनता नहीं होता, बल्कि उचित दिशा में बढ़ने की आजादी होती है, जो उनके पास आज भी है, क्योंकि कश्मीर भारत का एक महत्वपूर्ण अंग है।

बदल गये डिजिटल इंडिया के मायने
अब बात करते हैं डिजिटल इंडिया कांसेप्ट की। भारत को डिजिटल हब बनाने के पीछे हमारे देश की सरकार ने जो कदम उठाए, हम युवकों ने उसे भी अपनी ओछी बुद्धिमता से अभिशाप बना लिया है। 2जी, 3जी, 4जी इंटरनेट सेवा का मकसद था कि हमारी युवा शक्ति इस तंत्र का इस्तेमाल कर रोजगार और विकास की एक नवीन पहल करे, परन्तु हम तो इसके शिकार होते जा रहे हैं। परिवार अब सोशल नेटवर्किंग पर मिलने वाले जालसाज हो गए और घर के लोग हमसे दूर होते जा रहे। अभद्र शब्दों का प्रयोग और ओछी मानसिकता का परिचय हम अब पूरी दुनिया के सामने देने लग गए हैं। देश-विदेश के व्यापारी हमें एक बुद्धिमान युवा शक्ति समझकर रोजगार का मौका देने के बजाय हमें मूर्ख भीड़ समझने लगे हैं, जिन्हें वो कुछ भी बेच सकते हैं। क्या डिजिटल इंडिया का मकसद यही था? क्या जो ओछी मानसिकता और अभद्र व्यवहार आजकल इंटरनेट पर किये जा रहे हैं, यह विकास है? क्या सच में हम इस माध्यम का उचित उपयोग कर रहे हैं? खुद से पूछिए, क्या आज इंटरनेट आपके लिए नए रोजगार का अवसर है या समय बर्बाद करने और अपने बुरे विचारों को छुपकर अंजाम तक पहुंचाने का जरिया? डिजिटल आजादी का मकसद विकास था। एक-दूसरे से काम की बातें अगर हम सोशल नेटवर्क पर करते तो शायद ‘सबका साथ सबका विकास’ सार्थक हो जाता। डिजिटल इंडिया कांसेप्ट ने ज्ञान और रोजगार का द्वार भी खोला है, पर हम उस द्वार से प्रवेश न करके मर्यादा की दीवार ही छलांग रहे हैं।

खो रहे डिजिटल मार्केेटिंग के अवसर
भारत के महानगरों से नीचे उतरकर देखें तो डिजिटल इंडिया सिर्फ सोशल शेयरिंग, चैटिंग और अभद्र वीडियोज बनाने का साधन भर बनकर रह गया है। डिजिटल मार्केटिंग जैसे रोजगार से भरपूर अवसरों के बारे में हमें जानकारी तक नहीं है। हम आज भी रोजगार का रोना रो रहे हैं। वहीं डिजिटल मार्केटिंग जैसे नए रोजगार के अवसर खाली निकल रहे हैं। हर साल पांच-छह लाख से ज्यादा रोजगार के अवसर निकलते हैं। डिजिटल के पर हम उस तरफ विकास के लिए कदम बढ़ाने से कतराते हैं और फिर कहते हैं सरकार रोजगार के अवसर प्रदान करने में असमर्थ रही। सत्य तो यह है कि हम उस अवसर को पहचानने में असमर्थ रहे हैं, क्योंकि हम आजादी का अर्थ ही भूल चुके हैं और बस मनमानी करने लगे हैं। इंटरनेट का संयमित, अनुशासित और उचित जिज्ञासा से प्रयोग की आजादी का उपयोग करें, यही मेरी अपने युवाओं से विनती है।

लें एक प्रण
इस स्वतंत्रता दिवस पर मैं यह आईना अपने युवा भाई-बहनों को दिखा रहा हूं, ताकि हमारे देश के युवा विकास और स्वतंत्रता का अर्थ वैसे ही समझ पाएं। जैसे 1947 के युवा समझते थे, तभी विकास होगा, तभी अनुशासनहीनता, ओछी सोच और संकुचित जीवनशैली से आजादी मिलेगी। आइये, मिलकर प्रण करें कि हम उसी प्रकार अपने जीवन को इन विकारों से आजाद करेंगे, जैसे भूतपूर्व युवाओं ने देश को आजाद करवाया था।

जय हिन्द!

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