निष्कलंकता व समृद्धि के लिये मनायी गयी चौठचन्द्र पूजा

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संवाददाता
बोकारो : बोकारो मे रहने वाले मिथिलांचलवासियों ने सोमवार शाम श्रद्धा व उल्लास के साथ चौठचन्द्र पूजा संपन्न की। कला-संस्कृति की विशिष्टता के लिये प्रसिद्ध मिथिलांचल में कई पर्व-त्यौहार अनूठे ढ़ंग से मनाये जाते हैं। गणेश चतुर्थी यूं तो देश भर में उत्साह व निष्ठा के साथ मनाई जाती है, लेकिन मिथिलांचल के लोग इसे चैठचन्द्र (चौरचनि) पूजा के नाम से मनाते हैं। भादव शुक्ल चतुर्थी को मिथिला के गांव-गांव के साथ-साथ जहां भी मैथिल रचते-बसते हैं, वहां चौठचन्द्र पावन श्रद्धा से मनाया जाता रहा है। मान्यता है कि जो यह पूजा संपन्न करते हैं, वे सदा धनवान, पुत्रवान व प्रसन्न रहते हैं। जानकार बताते हैं आज के दिन चन्द्रमा को कलंक लगा था, किन्तु मिथिला में चन्द्रमा पूजा की परम्परा है। कहा जाता है कि इस दिन जो भी व्यक्ति चंद्रमा को खाली हाथ देखते हैं, उन्हें भी मिथ्या कलंक कलता है। जब भगवान श्रीकृष्ण पर स्यमन्त की मणि चोरी का मिथ्या कलंक लगा था तो हम और आप क्या हैं? भगवान कृष्ण ने नारदजी की प्रेरणा से इसी तिथि के गणेश व चन्द्रमा की पूजा की थी तो उन्हें कलंक से छुटकारा मिला था। इसलिये मिथिला में यह पूजा संपन्न कर फल, मिठाई लेकर चन्द्रदेव के दर्शन की परम्परा है। 

सुबह से ही बनने लगते हैं नाना प्रकार के पकवान

मैथिलानी दिन भर निराहार रह पवित्रता के साथ सुबह से ही अच्छे-अच्छे व नाना प्रकार के पूड़ी-पकवान, छनुआ सोहारी (रोटी), चीनी पूड़ी, रंग-बिरंग के पिरुकिया (गुजिया), टिकरी आदि बनाते हैं। इन पकवानों के अलावा भांति-भांति के फल मधुर-मिठाई, नारियल, दही आदि से सजे डालों को सजाया जाता है। घर के आंगन में पिठार (पिसे चावल के घोल) से अरिपन (एक विशेष प्रकार की पारंपरिक अल्पना कलाकृति) बनाये जाते हैं। फिर उन पर सिन्दूर लगाया जाता है और उन्हीं पर सजी डालियों को रखा जाता है, साथ ही कलश स्थापित किया जाता है। उसके बाद चंदनयुक्त सिन्दूर, यज्ञोपवीत, अक्षत, फूल, फूल-माला, दूब, बेलपत्र आदि से सुसज्जित पूजन-स्थल बनाने के बाद गणपत्यादि पंचदेवता भगवान विष्णु गौरी व चौठीचान की पूजा कर बारी-बारी से लोग पूड़ी, पकवान फल से सजी डालियां या फल लेकर विशिष्ट मंत्र के साथ चन्द्रदेव का दर्शन करते हैं। तत्पश्चात स्यमन्त की मणि, जाम्बवान पुत्र सुकुमार पर आधारित कथा ध्यानमग्न हो सुनने की परम्परा है। अंत में आरती कर विसर्जन के उपरांत मरर (केले के पत्ते) पर चढाये खीर-पूड़ी को घर के पुरुष सदस्य भांगते हैं और सभी सदस्य मिल-बांटकर प्रसाद खाते हैं।

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