शिव और शक्ति का मिलन, नये का सृजन और पुराने का संहार का द्योतक है और प्रत्येक क्षण सृष्टि में यह हो रहा है। प्रत्येक पल कुछ नया निर्माण हो रहा है। पुराना समाप्त हो रहा है। यह क्रिया सृष्टि में चल रही है और यही क्रिया हमारे भीतर भी चल रही है।

शास्त्र एक बात कहते हैं-
हम सब शिव हैं, शिवोहम् …, अहम् शिव…, मैं शिव हूं…, मैं शिव हूं… और साधक, शैव साधक, शक्ति साधक यह अच्छी तरह से जानता है कि वह शिवांश ही नहीं, शिव का स्वरूप है, और हम सबके भीतर शिव और शक्ति के संयोग का पर्व है महाशवरात्रि…। यह जो प्रत्येक मनुष्य के भीतर नये का सृजन और पुरातन के संहार की क्रिया है, उसे पूर्ण करने की विद्या जिस व्यक्ति को आती है, उसे गुरु कहते हैं। गुरु आपके जीवन में श्रद्धा और विश्वास के शिव बनकर आते हैं और आपके मन के शिव के साथ जुड़ जाते हैं।
गुरु गीता में लिखा है-
हेतवे जगतामेव संसारार्णव हेतवे
प्रभवे सर्व विद्यानाम् शम्भवे गुरुवै नम:
इस संसार सागर में चलने और इससे पार होने की क्रिया सिर्फ शिव और शक्ति को ही आती है, क्योंकि इस संसार की रचना शिव और शक्ति ने मिलकर की है, और जिसने रचना की है, उसे पार करने का मार्ग भी प्रदान करते हैं। तभी यह कहा गया है-
शम्भवे गुरुवै नम:…
उस गुरु को नमन है, जो शिव स्वरूप हैं, उस शिव को नमन है, जो वास्तव में गुरुओं के गुरु हैं।
बड़ा ही विचित्र है यह संसार, सभी इस संसार में चलना चाहते हैं। इसमें आनन्द लेना चाहते हैं और इससे पार भी उतरना चाहते हैं। अपनी नाव चलाना भी चाहते हैं तो निश्चित रूप से कोई न कोई विद्या होगी, जिससे इस संसार सागर में आनन्द से यात्रा कर सकें। कोई डूबना नहीं चाहता। कोई मरना नहीं चाहता। कोई पीड़ा नहीं चाहता। इस महान विद्या का नाम है- तंत्र, और इस तंत्र का सबसे पहले उल्लेख ऋग्वेद में आया है, जो ब्रह्मा के मुख से उच्चरित हुए, और ऋग्वेद में कहा गया है कि- तंत्र वह है, जिससे ज्ञान बढ़ता है।
ज्ञान चैतन्यभियते तंत्रम्
बड़ा ही खतरनाक विषय है तंत्र, ऐसा सब लोगों का सोचना है। ऐसा करो, पहले अपने मन में तंत्र के बारे में जो कुछ भी आपने सोच रखा है, उसे मिटा दो, हटा दो।

तंत्र में दो शब्द- तन + त्र, तन का अर्थ है- प्रचुर मात्रा में हगरा ज्ञान और त्र का अर्थ है- सत्य। तो सरल बात यह है कि- वह ज्ञान, जिसका सम्बन्ध सत्य से है, वह तंत्र है। …और इस संसार में जो सत्य है, वह शिवत्व है, और जिसमें शिव है, वह सुन्दर है। सीधा-सादा अर्थ है कि- तंत्र देखा, परखा, जांचा सत्य का पूर्ण विस्तार के साथ ज्ञान है, जो सत्य है, सुन्दर है। शिवरात्रि मना रहे हैं अर्थात् शिव और शक्ति का संयोग पर्व मना रहे हैं।
शिव अपनी बात कहते हैं, पार्वती अर्थात् शक्ति उनकी बात सुनती हैं। सृष्टि के सृजक तो शिव और शक्ति ही हैं, और इन दोनों के बीच एक संवाद होता है कि मनुष्य किस प्रकार भव सागर से पार निकले। किस प्रकार इस संसार की यात्रा करे।
इस तंत्र के दो भाग हैं। प्रथम- निगम तंत्र, जिसमें पार्वती शिव से, शक्ति शिव से प्रश्न पूछती हैं। वेदों में जो लिखित है वह बताती हैं, उसके बारे में पूछती हैं, और दूसरे भाग में शिव पार्वती को विभिन्न विद्याओं का रहस्य स्पष्ट करते हैं। एक-एक प्रश्न का उत्तर देते हैं। व्याख्या करते हैं और कहा गया है कि- इस संवाद को सर्वप्रथम विष्णु ने सुना और उन्होंने इसे आगम और निगम नाम दिया।
इसी आगम तंत्र के कई भाग हैं- वामाचार, दक्षिण पंथ, कौलाचार, रुद्रयामल तंत्र।
वेद तो बहुत पहले उच्चरित हो गये थे, जिसमें प्रकृति जन्य देव वायु, अग्नि, आकाश, जल, भूमि, इन्द्र आदि का विवेचन था। लेकिन, इसका जीवन से क्या सम्बन्ध है, वह सम्बन्ध शिव ने पार्वती को समझाया। यह शिव पार्वती का संवाद बड़ा ही गूढ़ है। शक्ति प्रश्न पूछती हैं कि- मेरा क्या उपयोग है। मैं आपसे संयुक्त हूं, इसका क्या अर्थ है। कैसे आप और मैं जुड़कर संहार और सृजन करते हैं?
तंत्र की एक परिभाषा और है-
।। तन्यते विस्तार्यते ज्ञानम् अनेन इत तंत्रम्।।
तंत्र का अर्थ ज्ञान का विस्तार है, और यह ज्ञान इस पर आचरण करने वाले की रक्षा करता है। स्वयं का ज्ञान और वह स्वयं आपकी रक्षा करता है। केवल और केवल तंत्र ही आपको अपने भीतर की शक्तियों से जोड़ता है, जिससे आप नवीन सृजन करते हैं, निर्माण करते हैं। अपने शरीर का भी, अपने मन का भी, अपने विचारों का भी, अपने कार्यों का भी और अपनी एक-एक कोशिका का भी।
(साभार : निखिल मंत्र विज्ञान)
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