प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ की आवश्यकता पर बल देते हुए उस बहस की राजनीतिक प्रासंगिकता को फिर से सतह पर ला दिया है, जिसकी चर्चा बहुत दिनों से चल रही है। संविधान दिवस पर आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि देश में अलग-अलग चुनावों से खर्च तो बढ़ता ही है, विकास के कार्य भी प्रभावित होते हैं। मोदी ने कहा- ‘वन नेशन वन इलेक्शन सिर्फ एक चर्चा का विषय नहीं, बल्कि यह भारत की जरूरत है। हर कुछ महीने में भारत में कहीं न कहीं चुनाव हो रहे हैं और इससे विकास के कार्यों पर जो प्रभाव पड़ता है, वह सब भली-भांति जानते हैं। ऐसे में ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ पर गहन अध्ययन और मंथन आवश्यक है।’ दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी चाहते हैं कि हमारे देश में लोकसभा और राज्यों की विधानसभा के चुनाव एक साथ कराये जाएं। एक राष्ट्र-एक चुनाव पर पिछले कई वर्षों से चर्चा हो रही है, लेकिन इस मुद्दे पर सभी राजनीतिक दलों में मतभिन्नता रही है। जबकि, आजादी के बाद लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एकसाथ कराने की परम्परा बन गयी थी। वर्ष 1952 के पहले आम चुनाव के साथ ही राज्यों की विधानसभाओं के भी चुनाव हुए थे। यह सिलसिला वर्ष 1967 तक निर्विघ्न चलता रहा, लेकिन उसके बाद यह व्यवस्था टूट गयी। राजनीतिक अस्थिरता इसका मुख्य कारण रहा। 1967 के विधानसभा चुनाव में बिहार सहित कुछ अन्य राज्यों में या तो किसी भी एक राजनीतिक दल को पूर्ण बहुमत नहीं प्राप्त हुआ, या कुछ सरकारें अपना कार्यकाल पूरा करने से पहले ही धराशायी हो गयीं। लिहाजा, वहां मध्यावधि चुनाव कराने पड़े और यह सिलसिला आगे भी बढ़ता रहा। फिर लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव अलग-अलग होने लगे। हालांकि, विधि आयोग ने वर्ष 1999 में इस मुद्दे पर विचार करते हुए अपनी रिपोर्ट में राजनीतिक स्थिरता एवं चुनाव खर्च को आधार बनाकर दोनों ही चुनाव एकसाथ कराने की सिफारिश की थी। इस रिपोर्ट पर उन दिनों कुछ चर्चा जरूर हुई थी, लेकिन जल्द ही उसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। अब अगर 19 वर्षों बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दोनों चुनाव एकसाथ कराने पर जोर दिया है तो इस पर पूरी ईमानदारी के साथ चर्चा होनी चाहिए। बहस इस बात पर भी होनी चाहिए कि लगभग पांच दशक पहले जिन कारणों से यह शुरुआती परम्परा टूटी थी, क्या वे कारण फिर सामने नहीं आयेंगे और अगर ऐसे हालात बनते हैं तो उससे निपटने के क्या उपाय होंगे? यह सच है कि चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद आचार संहिता लागू होने से विकास के कार्य प्रभावित होते हैं। हालांकि, दो साल पहले ही बिहार, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, सिक्किम और ओड़ीसा यह कह चुके हैं कि उन्हें लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एकसाथ कराने पर कोई आपत्ति नहीं है। ऐसे में यदि सभी राज्यों द्वारा प्रधानमंत्री के सुझाव पर अमल किया जाय और एक राष्ट्र-एक चुनाव की बात पर सहमति बने तो यह देश के लिए निश्चय ही सुखद होगा।