
ब्रिस्बेन (ऑस्ट्रेलिया) से मोद प्रकाश
गत सप्ताह आस्ट्रेलिया के ब्रिसबेन शहर में खालिस्तानी खुराफातियों नें भारतीय वाणिज्यिक दूतावास पर हमला किया और वहां भारतीय झंडा हटाकर खालिस्तानी झंडा लगा दिया। इधर, महीने भर से सिडनी, मेलबोर्न और ब्रिसबेन में खालिस्तानी खुराफात बहुत बढ़ा हुआ है। पिछले महीने सिडनी और मेलबर्न के मंदिरों की दीवारों पर धमकियां लिखी गईं तथा वहां के पुजारियों को पूजा करने के विरोध में धमकाया गया। इन सारी घटनाओं के तार कनाडा और ब्रिटेन में भी ऐसे ही गतिविधियों से जुड़े हुए हैं। सोशल मीडिया पर भी इन खुराफातों की गतिविधि काफी बढ़ी हुई है। सोचने वाली बात है कि क्या इन सब अंतरराष्ट्रीय गतिविधियों और अमृतसर की घटना के मद्देनजर यह अनुमान लगाना चाहिए कि अस्सी के दशक वाली खालिस्तानी कहानी की पुनरावृति हो रही है? क्या हमारी सरकारों ने इतिहास से कुछ नहीं सीखा? फिर दिख रहे 1980 जैसे हालात अगर हम इतिहास को थोड़ा खंगाले तो पता चलेगा कि आज की स्थिति लगभग वैसी ही है जैसी 1980 के समय थी जब पंजाब में खालिस्तानी आतंकवादी गतिविधियां शुरू हुई थीं। 1971 में मुंह की खाने के बाद पाकिस्तान ने भारत की सामाजिक विषमता रेखाओं (फॉल्ट लाइन्स) पर ध्यान दिया और वहीं से उसने सिखों के एक जत्थे तैयार किए और उनको उकसाकर खालिस्तान आंदोलन शुरू करवाया।
यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि 1971 में युद्ध हुआ और 1973 में आनंदपुर साहिब प्रस्ताव पास हो गया, जिसमें सिखों ने पंजाब में ज्यादा स्वायत्तता और विशेष दर्जे की मांग की और साथ ही सिख को एक अलग धर्म घोषित करने की भी मांग की। सरकार ने इसे नकार तो दिया पर उन नेताओं के साथ सख्ती बरतने की जगह तुष्टिकरण की नीति जारी रखी। इमरजेंसी खत्म होते ही इस समस्या ने फिर सिर उठाया और इस बार इसने हिंसक रूप ले लिया। सरकार की अनदेखी और तुष्टिकरण नीति जारी रही और इसी वजह से अकाली दल ने एसजीपीसी (शिरोमणि अकाल तख्त प्रबंधन कमेटी ) पर कब्जा कर लिया । देखते-देखते 1983 में स्वर्ण मंदिर में घुस गए और वहां किलेबंदी कर दी और वहां सैन्य जखीरा बना दिया।
1984 में आपरेशन ब्लू स्टार और फिर इंदिरा गांधी की हत्या और उसके बाद सबसे शर्मनाक, दुखदायी और अमानवीय दंगे, जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। सिखों को किसी आनंदपुर प्रस्ताव से कोई मतलब नहीं था और हर सिख जानता है कि सिख और हिन्दू अलग है ही नहीं। एक ही सनातन और एक ही अनन्त की धाराएं हैं। गत सप्ताह जिस तरीके से एक अपहरण आरोपी को पुलिस स्टेशन से छुड़ा लिया जाता है और भीड़ में ये उग्रवादी बिना किसी रोक-टोक के हथियार और बंदूकें लेकर घूमते हैं, अगर इसे रोका नहीं गया तो स्थिति गंभीर होती जाएगी। वाहेगुरू न करें कि अस्सी की घटनाएं फिर शुरू हो जाएं।
तुष्टिकरण में पंजाब सरकार की भूमिका
आज के परिप्रेक्ष्य में देखे तो हम पाएंगे कि स्थिति लगभग एक जैसी उभर रही है। पाकिस्तान की हालत खराब है और वह अपनी अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। उसकी कश्मीर की राजनीति अब बन्द हो गई है और इसलिए पाकिस्तानी सेना अपने यहां के आतंकवादियों को कोई काम नहीं दे पा रही है। लिहाजा, कश्मीर के नाम पर पैसे कमाने का जरिया समाप्त होता जा रहा है। इस वक्त पंजाब में भी एक ऐसी सरकार है जो विपक्ष से ताल्लुक रखती है और इसलिए किसी खालिस्तानी अलगाववादियों का तुष्टिकरण बड़ी आसानी से हो रहा है। एक बार फिर एसजीपीसी में खालिस्तानियों का प्रभाव होता दिख रहा है, जबकि इस समय बस एक ही लोकसभा की सीट पर अकाली दल संसद में हैं। पिछले साल कृषि कानूनों के विरोध की वजह से सरकार ने उन कानूनों को वापस ले लिया उस वजह से भी इन अलगाववादियों को शह मिली।
दलगत राजनीति से ऊपर उठे सरकार
मौजूदा हालात में पंजाब सरकार को दलगत राजनीति से ऊपर उठकर इसे राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से देखना चाहिए, क्योंकि आग लगेगी तो सभी को आंच आएगी। एक अच्छी बात है कि समाज में कटुता नहीं है और सामाजिक सरोकारों में असर नहीं हो रहा है। देश की जनता को मालूम है कि इसके पीछे छिपे साजिशों के तार कहां से जुड़े हैं। बस सरकारें उचित समय पर एकजुट होकर कदम उठाएं, जिससे हिंसा के दौर न शुरू हो जाए। वाणिज्यिक दूतावास पर हमले को सरकार भारतीय राज्य पर हमला माने। सरकार इनके विदेशी संबंधों को खोजकर निकाले और उनके वीसा रद्द कर दे। भारतीय नागरिकों में जो भी लोग इस में शामिल हैं, उनके
पासपोर्ट रद्द कर दिए जाएं और उन्हें भारत लाकर उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलाए।
अब बदल चुका है भारत
हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई, आपस में भाई-भाई- अनेकता और विविधता में एकता ही हमारे भारत की पहचान, राष्ट्रीय ताकत और विरासत रही है। इसे अक्षुण्ण बनाए रखना हम सभी देशवासियों की जिम्मेदारी है। देशवासियों को भी आपसी प्रेम-सौहार्द बनाए रखने में सहयोग करना होगा और इन खालिस्तानी खुराफातियों और उनके आकाओं को वे बता दें कि अब भारत बदल चुका है। जिनलोगों ने खालिस्तान के नाम पर तिरंगे का अपमान किया, उन्हें वे जानें, पहचानें और सबक सिखाएं।