बोकारो में झारखंड का सबसे बड़ा वनभूमि घोटाला, वेदांता-इलेक्ट्रोस्टील ने ऐसे खोली जमीन हड़पने की नई राह

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समरथ के नहिं दोष गोसाईं… ईमानदार अधिकारी काटते रह गए कोर्ट-कचहरी के चक्कर और अतिक्रमित भूमि हो गई ‘वैध’, दोषी कौन?

ब्यूरोक्रेट्स, नेताओं और पत्रकारों को कृतज्ञ बना हड़पी जमीन, किसी को दी नौकरी; तो किसी की चल रहीं गाड़ियां

‘I Came, I Saw and I Conquered’ यानी मैं आया, मैंने देखा और मैंने कब्जा कर किया। जी हां, बोकारो में इलेक्ट्रोस्टील ने इस रोमन कहावत को शत-प्रतिशत चरितार्थ करने का काम किया है। पहले सैकड़ों एकड़ वनभूमि पर कब्जा जमाया और ऐसी चाल चली कि वही हड़पी गई जमीन आज तथाकथित ‘वैध’ हो गई। इस पूरे ‘खेल’ को कैसे अंजाम दिया गया, यह जानने के लिए पढ़ें मामले की तह तक को उजागर करती यह रिपोर्ट-

शशांक शेखर

बोकारो : गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरितमानस में वर्णित उक्तियां आज बोकारो में जमीन घोटाले के संदर्भ में बिल्कुल सत्य प्रतीत हो रही हैं। गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है कि ‘समरथ के नहिं दोष गोसाईं’। यह बात आज यहां वेदांता-इलेक्ट्रोस्टील के मामले में बिल्कुल ही सही और सटीक साबित हो रही है। मालूम हो कि वन विभाग ने अधिसूचित एवं सीमांकित वन भूमि के अतिक्रमण के खिलाफ इलेक्ट्रोस्टील पर 50 से अधिक केस दर्ज किए। लेकिन, इस ताकतवर कम्पनी की सेहत पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। उल्टे वन विभाग के कर्मियों के साथ मारपीट की गई, कम्पनी के कर्मचारियों तथा उसके पाले गये पिट्ठुओं ने उसके विभाग की सैकड़ों एकड़ जमीन हड़प ली और तत्कालीन ईमानदार अधिकारियों ने सरकार को त्राहिमाम संदेश भेजकर वन विभाग की भूमि को लुटने से बचाने की गुहार लगाई, परन्तु आज शासन-प्रशासन पर काबिज लोगों ने ही राज्य सरकार के वन विभाग के अधिकारियों के ईमानदार प्रयासों की मिट्टी पलीद कर दी है। सरकार की जिस जमीन को अवैध कब्जे से बचाने के लिए विभाग के अधिकारी कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटते रह गए, ऊपर तक पत्राचार करते रह गए, मोंटी-मोंटी संचिकाएं तैयार कर संबंधित अधिकारियों को भेजी गईं, ताकि वन विभाग की अतिक्रमित जमीन को अवैध कब्जे से मुक्त कराया जा सके, वेकिन वही जमीन आज ‘अवैध’ से ‘वैध’ होने जा रही है। ऐसा इस कम्पनी ने सिर्फ अपनी ‘ताकत’ पर कर दिखाया है। लिहाजा, जिन अफसरों व कर्मियों ने उन दिनों सीमा पर युद्ध-भूमि में लड़ने वाले सिपाहियों की तरह लड़ाई लड़ी, उन्हें आज शर्मिन्दगी महसूस करनी पड़ रही है।
    पता नहीं दोष किसका है, लेकिन जिस विभाग ने 15 वर्षों में 50 से अधिक केस किए, मुकदमे लड़े, ईमानदार अफसरों की फजीहत हुई, उन अधिकारियों को आज घुटने टेकने पड़े हैं। क्योकि, इलेक्ट्रोस्टील अपनी बाजी जीत गया और वन विभाग के अधिकारी अपनी लड़ाई हार गए। अब वेदांता ग्रुप की इलेक्ट्रोस्टील ने हड़पी गई 174.39 एकड़ भूमि को अवैध से वैध बनाने के लिए उसे वैधानिक जामा पहनाकर उसे अपने नाम बंदोबस्त कराने की तैयारी लगभग पूरी करवा ली है।
    गौरतलब है कि जमीन हड़पने के लिए वेदांता-इलेक्ट्रो स्टील कंपनी ने ब्यूरोक्रेट्स, बोकारो स्टील के सेवानिवृत्त अधिकारियों, नेताओं के साथ-साथ मजदूर यूनियन के नेताओं और कुछ पत्रकारों तक को कृतज्ञ किया। क्योंकि, इतने बड़े जमीन घोटाले में आईएएस, आईपीएस अफसरों, मजदूर नेताओं और कुछ पत्रकारों की भी मदद ली गई। खुद को बचाने तथा माहौल को सकारात्मक बनाने के लिए ऐसे लोगों और उनके रिश्तेदारों को नौकरी देकर या उनके वाहनों के परिचालन का ठेका देकर उन्हें कृतज्ञ किया है।  (आरटीआई के तहत संवाददाता को प्राप्त कागजात के अनुसार)। जाहिर है, ऐसे में ये लोग जानते हुए भी चुप रहे।
    12 साल पहले की बात है, विभाग के एक अधिकारी ने जब इलेक्ट्रोस्टील के एक शीर्ष अधिकारी (मालिक के करीबी रिश्तेदार) से पूछा और कहा कि – ‘आपने अवैध भूमि कब्जा कर रखी है, तो उस ईएसएल अफसर ने कहा कि आपने व्यापारी वर्ग की पहुंच नहीं देखी है। सभी सरकारों में व्यापारियों की ही चलती है, चाहे वह यूपीए की हो या एनडीए की। आने वाले दिनों में यह अवैध भूमि वैध होगी, इसकी मैं आपको गारंटी देता हूं।’ इसे सत्यापित किया राज्य की यूपीए और एनडीए, दोनों की सरकारों ने। जब वर्तमान मंत्रिमंडल शपथ ग्रहण की स्थिति में थी, उससे 10 दिन पहले केंद्रीय विभाग ने इसकी फाइल क्लियर कर दी। न केवल 174.39 एकड़ वही हड़पी गई जमीन, बल्कि इसके अलावा भी 15 एकड़ सहित कुल 183.4 एकड़ अवैध भूमि को कम्पनी के नाम बंदोबस्त करने की सहमति दे दी गई। आश्चर्य तो इस बात की है कि कम्पनी ने बिना जमीन का मूल्यांकन किये ही वर्तमान मूल्य की लगभग 80 प्रतिशत राशि राज्य सरकार के खजाने में जमा भी कर दी है, जो यह दर्शाता है कि जमीन को हड़पने की साजिश वर्षों से चल रही थी।  
    अब सवाल यह उठता है कि यदि गलत का विरोध करने का नतीजा गलत ही होता है, तो भला कोई भी अधिकारी अब इसके खिलाफ कदम क्यों उठाएगा? जाहिर है, शायद कोई नहीं! इतिहास साक्षी है कि भारतीय स्वतंत्रता के बाद इतने बड़े पैमाने में वन विभाग की जमीन का घोटाला कभी नहीं हुआ है। यह काला अध्याय जुड़ा भी तो बोकारो से। झारखंड में दशकों से वन विभाग की जमीन पर रह रहे हजारों आदिवासी और गरीब परिवार चंद डिस्मिल जमीन के क्लीयरेंस के इंतजार में हैं, वहीं वेदांता इलेक्ट्रोस्टील ने कुछ ही दिनों में सारा ‘खेल’ कर लिया। उसने रोमन कहावत – ‘आई केम, आई सॉ एंड आई कॉन्कर’ (मैं आया, मैंने देखा और मैंने कब्जा कर लिया) को भी चरितार्थ किया है। सच्चाई क्या है, लोग जानते हैं। लेकिन, इस पूरे प्रकरण ने वन भूमि हड़पने की एक नई राह खोल दी है। यह बता दिया कि वन भूमि हड़पना हो, तो इलेक्ट्रोस्टील से सीखिए।
जमीन संबंधी धांधली का ही नतीजा रहा है कि अपनी स्थापना के बाद से ही इलेक्ट्रोस्टील विवादों में घिरा रहा। कंपनी की स्थापना के बाद उसी के द्वारा पोषित लोगों ने जमीन को कई छद्म नामों से बेचा, जिनके पास मालिकाना हक भी नहीं था, वे भी सौदेबाजी में शामिल हुए। दु:खद यह है कि वन विभाग के अधिकारी उपायुक्त से लेकर रजिस्ट्रार तक को लिखते रहे कि ये सारी रजिस्ट्रियां फर्जी हो रही हैं, इन्हें रोकी जाय। लेकिन, सारे के सारे अधिकारी खामोश रहे। ग्रामीण-रैयतों के साथ भी खूब लड़ाई हुई। धनबाद के तत्कालीन मासस विधायक अरूप चटर्जी ने भी लंबा विरोध किया, परंतु इन सबका एक ही नतीजा निकला- ढाक के तीन पात। उस समय के एक डीएसपी ने इस संवाददाता को बताया कि किसी भी हालत में अवैध जमीन पर ईएसएल का ही कब्जा होना है, क्योंकि इनकी ‘ऊपर’ की सेटिंग जबदरस्त है। उन्होंने भी अपने बेटे को इस कम्पनी में अधिकारी बनवा लिया। स्पष्ट है, ऐसे में यह बात साबित होती है कि समरथ के नहिं दोष गोसाईं। यदि आपकी पहुंच राजनीतिक है, आप केन्द्र तथा राज्य सरकार में सक्रिय हैं, तो कोई भी जमीन हड़प सकते हैं, अगर पहुंच है तो किसी भी जमीन पर कब्जा कर उसे अपने नाम दर्ज करा सकते हैं।

ईएसएल की ओर से नहीं मिला जवाब
इस सन्दर्भ में वेदांता-इलेक्ट्रोस्टील का पक्ष जानने के लिए उसके सक्षम अधिकारियों से कई बार फोन तथा ई-मेल पर सम्पर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन उनलोगों ने इसका कोई जवाब देना मुनासिब नहीं समझा। खबर लिखे जाने तक उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिल सका था।

जब मंत्री ने विभागीय अधिकारी को दी थी नसीहत

इस मामले में पूछने पर वन विभाग के एक उच्च पदस्थ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि इलेक्ट्रोस्टील ने भागाबांध में बाजाब्ता फ्लड लाइट जलाकर रात के अंधेरे में लैण्डमूवर के सहारे सुरक्षित एवं अधिसूचित वनभूमि पर जंगलों को उजाड़ा और जमीन समतल की। इलेक्ट्रो स्टील द्वारा सैकड़ों     एकड़ वन भूमि की प्रकृति को चीन से लाये गये भाड़े के कर्मचारियों ने रातों-रात बदलने का काम किया। कम्पनी का यह अभियान लगातार जारी रहा। लेकिन, किसी भी उच्च पदस्थ सरकारी अधिकारी ने भी वन विभाग के अधिकारियों की फरियाद नहीं सुनी। सब जान-बूझकर अनजान बने रहे। बाद में सरकार के तत्कालीन भूमि सुधार व राजस्व मंत्री ने वन विभाग के अधिकारियों सहित अन्य शीर्ष पदाधिकारियों के साथ एक बैठक बुलायी, जिसमें मंत्री जी ने कर्मठ व ईमानदार अधिकारियों की पीठ थपथपाने की जगह उन्हें खरी-खोटी सुनाई और खुद को कम्पनी के पक्षकार के रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने उस बैठक में संबंधित अधिकारियों को यह कहते हुए नसीहत भी दी कि ‘यदि आप लोगों का यही रवैया रहा तो झारखंड में कोई भी उद्यमी अपना उद्योग नहीं लगाना चाहेगा।’ अब सवाल उठता है कि आखिर इस नसीहत के पीछे क्या राज था? सवाल यह भी है कि वन विभाग के पास वन-भूमि के सारे साक्ष्य रहने के बावजूद सरकार ने इस कम्पनी का साथ क्यों दिया? यह जांच का एक गंभीर विषय है।

जमीन के मालिकाना हक का मामला आज भी लंबित

 दरअसल, वन विभाग ने उक्त जमीन के मालिकाना हक को लेकर न्यायालय में टाइटल अपील सं0- 33/2007 दायर कर रखी है। वन विभाग की ओर से मुकदमे की पैरवी कर रहे अधिवक्ता मो. इकबाल ने इस संबंध में पूछने पर बताया कि इस मामले में फिलहाल सुप्रीम कोर्ट से स्टे लगा हुआ है। उन्होंने यह भी बताया कि सुप्रीम कोर्ट में लंबित रहने के कारण बोकारो के जिला न्यायालय में इस मामले की सुनवाई स्थगित है। आगामी 18 अप्रैल, 2023 को जिला न्यायालय में इसकी तारीख मुकर्रर है, जबकि इसके पूर्व विगत 20 फरवरी को भी इस मामले में तारीख मुकर्रर थी। दूसरी ओर विधि विशेषज्ञों ने इस पूरे प्रकरण में आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा कि जब वन विभाग और इलेक्ट्रोस्टील के बीच जमीन के मालिकाना हक को लेकर जारी मुकदमा न्यायालय में लंबित है तो फिर इसी बीच उक्त जमीन इलेक्ट्रोस्टील को लीज पर बंदोबस्त करने की प्रक्रिया जारी रखने का क्या औचित्य है? जानकारों ने सवाल किया कि क्या इलेक्ट्रोस्टील ने यह मान लिया है कि उसके द्वारा हड़पी गई जमीन वन विभाग की ही है, जिसे वह झूठ का सहारा लेकर अपना बताता रहा है?

BJP के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश बोले- जिसने भी गलती की, उस पर हो कानूनी कार्रवाई

प्रेसवार्ता में बोलते भाजपा के झारखंड प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश।

इस मामले में पूछे जाने पर भारतीय जनता पार्टी के झारखंड प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश ने कहा कि ‘राजा हो या रंक, कानून सबके लिए एक है।’ पिछले दिनों बोकारो में एक संवाददाता सम्मेलन में इस संदर्भ जब उनसे पूछा गया, तो उन्होंने कहा- अगर किसी ने भी गलती की है, चाहे वह दीपक प्रकाश हो या कोई उद्योगपति, जिस किसी ने गलती की है और कानून का उल्लंघन किया है तो उस पर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।

DC बोले- जमीन का करा रहे मूल्यांकन

उपायुक्त कुलदीप चौधरी।

इस मामले में पूछे जाने पर जिले के उपायुक्त कुलदीप चौधरी ने कहा कि सरकारी निर्देश के आलोक में वेदांता इलेक्ट्रो स्टील की कुल जमीन का मूल्यांकन किया जा रहा है। यह फाइल अपर समाहर्ता को सुपुर्द कर दी गई है, जिनकी रिपोर्ट का इंतजार है। इस संबंध में फिलहाल विभागीय स्तर पर काम चल रहा है। सूत्रों के अनुसार उपायुक्त, बोकारो के पत्रांक-3206/रा0, दिनांक-21.12.2022 के प्रसंग में राज्य सरकार के राजस्व, निबंधन एवं भूमि सुधार विभाग के पत्रांक-5/स0भू0 बोकारो (ईएसएल)-80/16 237 (5)/रा0/, दिनांक- 20 जनवरी, 2023 के द्वारा विभागीय पत्रांक-4321/रा0, दिनांक-07.12.2022 तथा वर्ष 2018 में विभागीय संकल्प सं0- 48/रा0, दिनांक- 03.01.2017 के आलोक में उपायुक्त, बोकारो को इलेक्ट्रोस्टील लिमिटेड द्वारा अवैध रूप से धारित भूमि की लीज बंदोबस्ती हेतु अद्यतन बाजार दर पर उक्त जमीन का मूल्यांकन करवाने का निर्देश दिया गया है।

– Varnan Live Report.

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